बीआरए बिहार विवि का पीजी संस्कृत विभाग वाल्मीकि रामायण से पर्यावरण बचाने के उपाय बतायेगा. विभाग में रामायण और पर्यावरण संरक्षण पर शोध किया गया है. शोध में बताया गया है कि रामायण काल में किस तरह पर्यावरण संरक्षण के काम किये जाते थे और उसे अभी किस तरह अमल में लाया जा सकता है. पर्यावरण संरक्षण पर विभाग की छात्रा कुमारी प्रियंका प्रियदर्शनी ने शोध किया है.
संस्कृत विभाग के प्रोफेसर और विवि के परीक्षा नियंत्रक प्रो मनोज कुमार ने बताया कि शोध में रामायण काल के वातावरण व पर्यावरण को उदाहरण के तौर पर लिया गया है. वाल्मीकि रामायण में बताया गया है कि नदियों और दूसरे जलस्रोतों को किस तरह पवित्र रखा जा सकता है. इसी उपाय को हम इस समय भी प्रयोग कर बिगड़ते पर्यावरण को बचा सकते हैं.
शोध में बताया गया है कि नदियों के प्रवाह में अवरोध आने से जल प्रदूषित होने लगता है. इसलिए हमें नदियों के प्रवाह पर अवरोध नहीं लगाना चाहिए. जल को बचाने के लिए नदियों को हमेशा प्रवाहमान बनाये रखना जरूरी है. शोध रामायण से उदाहरण लेते हुए बताया गया है कि छोटी नदियां भी बड़े जलस्रोत बन सकती हैं. शोध में नये जलस्रोत विकसित करने के बारे में भी बताया गया है.
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शोधार्थी ने अपने शोध में वनों को बचाने के उपाय बताये हैं. वाल्मीकि रामायण की बातों को बताते हुए कहा गया है कि रामायण काल में ऋषि-मुनी लगातार पौधरोपण करते थे. इससे पेड़ नष्ट भी हुए, तो वन का अधिक ह्रास नहीं होगा. विभाग के शिक्षक प्रो मनोज कुमार ने बताया कि बिहार विवि में पौराणिक आख्यान से जोड़ते हुए शोधकार्य पहली बार हुआ है.
संस्कृत विभाग के शोध जल व वन के साथ मिट्टी को भी बचाने के उपाये बताये गये हैं. शोध में बताया गया है कि मिट्टी के प्रदूषण को हम खुद की सजगता से बचा सकते हैं. प्राचीन काल में ऋषि हवन कर वायु को शुद्ध करते थे. इससे मिट्टी भी प्रदूषण से मुक्त होती थी. खेती में प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल कर मिट्टी को बचाया जा सकता है.