-तिलस्मी उपन्यास के जनक देवकीनंदन खत्री की जयंती पर विशेषमुजफ्फरपुर. तिलस्मी उपन्यास के जनक देवकी नंदन खत्री का जन्म मुजफ्फरपुर से करीब 30 किलोमीटर दूर पूसा के मालीनगर गांव में 18 जून 1861 को हुआ था. खानदानी व्यवसायिक घराने से आनेवाले देवकीनंदन का एक व्यवसायी से महान उपन्यासकार के रूप में तब्दील होना भी कम रोचक नहीं है. शोधकर्ता व लेखक वीरेन नंदा बताते हैं कि 1839 ई. में शेर-ए-पंजाब महाराजा रंजीत सिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र शेर सिंह के समय लाहौर में अराजकता के कारण स्थिति खराब होने लगी. तब लाला अचरजमल के पांच पुत्रों में से उनके दो पुत्र लाला नंदलाल और लाला ईश्वरदास सन 1852 में लाहौर से बनारस आ बसे. बनारस आने के बाद लाला ईश्वरदास का विवाह इस गांव के रईस जमींदार जीवन लाल महथा की पुत्री गोविंदा बीबी से हुआ था. लाला ईश्वरदास के पुत्र देवकीनंदन खत्री का जन्म भी इसी गांव में हुआ. इनका लालन-पालन भी ननिहाल में ही हुआ. जब इल्म सीखने की उम्र हुई तो नाना ने घर पर तालीम के लिए मौलवी को बुलाया और उनकी शिक्षा उर्दू-फारसी में होने लगी. देवकीनंदन खत्री जब बालिग हुए तो पिता ने 1879 ई. में टिकारी का कामकाज देखने के लिए उन्हें वहां भेज दिया. टिकारी की खूबसूरत वादियों, पहाड़ों, झरनों और रजवाड़ों के भग्नावशेष महलों को वे घूमते रहे. जिसने बचपन की रहस्यमयी कल्पना-लोक में उड़ने को पंख दे दिए, जिन पर उड़ते हुए वे एक व्यवसायी से लेखक बन गये. चंद्रकांता संतति ने देवकी नंदन खत्री को दी ख्याति उपन्यास चन्द्रकांता संतति लिखी, जो उनके द्वारा प्रकाशित मासिक पत्र उपन्यास लहरी में सन् 1894 से 1905 तक छपती रही. यह उपन्यास भी जैसे-जैसे छपती गई, वैसे-वैसे उनकी ख्याति बढ़ती चली गई. यह चौबीस खंडों में लिखा गया उपन्यास था, किन्तु सोलह खंड के बाद बाकी आठ खंड उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र दुर्गा प्रसाद खत्री (1897-1973) ने पूरा किया. इस उपन्यास को छाप कर बेचने की प्रकाशकों में होड़ लग गयी थी. देवकीनंदन खत्री की अन्य रचनाओं में भूतनाथ 21 खंडों में लिखा गया उपन्यास है, जिसके छह खंड देवकीनंदन खत्री ने लिखे, जो 1907 से 1913 के मध्य छपी. शेष 15 खंड दुर्गा प्रसाद खत्री ने पूरा किया. उनकी अन्य रचनाओं में ””””””””कुसुम कुमारी””””””””, ””””””””काजर की कोठरी””””””””, ””””””””वीरेंद्र वीर अर्थात कटोरा भर खून””””””””, ””””””””नरेंद्र मोहिनी”””””””” एवं ””””””””गुप्त गोदना”””””””” प्रमुख है. ये सभी 1893 से 1902 के बीच प्रकाशित रचनायें हैं. इसके अतिरिक्त कुछ और रचनाओं का भी उल्लेख मिलता है जिनमें ””””””””गुप्त गोदना””””””””, ””””””””लैला मजनू””””””””, ””””””””नौलखा हार””””””””, ””””””””अनूठी बेगम”””””””” और ””””””””सौदागर”””””””” है, किन्तु इसकी प्रतियां उपलब्ध नहीं है. गुप्त गोदना उपन्यास के बारे में कहा जाता है कि उनकी मृत्यु के बाद इसे किशोरीलाल गोस्वामी ने पूरा किया.
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