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कोरोना के बाद बिहार में बढ़ा कुटीर उद्योग का चलन, घर से ही महिलाएं शुरू कर रही उद्यम

मुजफ्फरपुर में महिलाएं कुटीर उद्योग के तहत मसाला फैक्ट्री या गिफ्ट आइटम बनाकर शहर में कारोबार कर रही हैं. कोरोना के बाद से घर में कुटीर उद्योग का प्रचलन बढ़ा है

मुजफ्फरपुर. उद्यम के क्षेत्र में अब पुरुष नहीं, बल्कि महिलाएं भी आगे बढ़ रही हैं. विभिन्न ट्रेडों में महिलाएं प्रशिक्षण लेकर घर में ही छोटे स्तर से कारोबार की शुरुआत कर रही हैं. कोई खिलौना और स्टाइलिश कुर्ती बना कर मार्केटिंग कर रही हैं तो कोई कुटीर उद्योग के तहत मसाला फैक्ट्री या गिफ्ट आइटम बना कर शहर में उसका व्यवसाय कर रही हैं. कोरोना के बाद से घर में कुटीर उद्योग का प्रचलन बढ़ा है.

इससे न केवल महिला उद्यमियों की अच्छी कमाई हो रही है, बल्कि नये क्षेत्र वे कदम भी बढ़ा रही हैं. जिले में ऐसी कई महिलाएं हैं, जिसने उद्यम के क्षेत्र में अपनी पहचान बनायी हैं. यहां ऐसी ही महिलाओं के उद्यम पर फोकस किया जा रहा है

खिलौने और गिफ्ट आइटम का कर रहीं कारोबार

खिलौने और गिफ्ट आइटम बना कर सेल कर रहीं गोला रोड निवासी रुचिका मोटानी ने उद्यम का नया रास्ता निकाला है. करीब एक साल से वे घर पर ही खिलौने और गिफ्ट आइटम बना रही हैं. शहर में आयोजित प्रदर्शनी में भी इनके आइटम को सराहा गया. रुचिका कहती हैं कि घर से ही बहुत सारे काम किये जा सकते हैं. शुरू में थोड़ी परेशानी होती है, लेकिन अब आपका प्रोडक्ट अच्छा हो और लोगों को उसके बारे में जानकारी हो तो छोटे-मोटे उद्यम से भी अच्छी कमाई की जा सकती है. रुचिका अपने व्यवसाय को अब बड़ा रूप देने की तैयारी में हैं.

बंधनवार और कुर्ती बना कर खड़ा किया उद्यम

लड्डू गोपाल के कपड़े, बंदवार और कुर्ती के स्टाइलिश ड्रेस बनाने वाली पूजा केजरीवाल शहर में अपने उद्योग को लेकर जानी जाती हैं. अमर सिनेमा रोड स्थित अपने आवास पर ही ये कपड़े तैयार करती हैं. इनका व्यवसाय भी घर से ही संचालित होता है. ऑर्डर पर भी ये कपड़े तैयार करती हैं. पूजा बताती हैं कि चार साल पहले जब यह काम शुरू किया था तो मन में एक डर था कि पता नहीं, घर से यह काम चलेगा या नहीं, लेकिन धीरे-धीरे लोग उनके कामों से परिचित होते गये तो कारोबार भी बढ़ता गया. वे अपना व्यवसाय घर से ही कर रही हैं.

पशु सखी दीदी समीना कर रहीं अच्छी कमाई

सरैया की गोरिगमाडीह पंचायत की समीना बेगम पशु-सखी दीदी के नाम से पहचानी जाती हैं. दसवीं तक शिक्षित समीना बेगम की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, जब इनके गांव में समूह निर्माण का कार्य हो रहा था तो अपनी बड़ी बहन से आर्थिक मदद लेकर दीपक ग्राम संगठन के गुलाब स्वयं सहायता समूह से जुड़ गई तथा साप्ताहिक बचत करने लगी.

जब पशु सखी का चयन प्रक्रिया चल रहा थी तो इन्हें उसे पद के लिए चयनित किया गया. अब ये दरभंगा, वैशाली, मधुबनी सहित दूसरे जिलाें में भी पशु सखी के ट्रेनिंग के लिए जाती हैं. यह गांव में बकरियों का इलाज करती हैं. ये बकरियों का चारा अजोला बना कर बेचती हैं. इससे इनकी अच्छी कमाई होती है.

मसाला उद्योग लगा कर आत्मनिर्भर बनीं सुनीता

सकरा की बेरूआ निवासी सुनीता भी आर्थिक रूप से काफी कमजोर थी. जीविका के सहयोग से सुनीता ने करीब एक साल पहले मसाला उद्योग लगाया. दो लाख के लोन से उन्होंने अपना उद्यम शुरू किया. फिर अपने ब्रांड से वे मसाले की सप्लाई करने लगी. इनका मसाला पूरे प्रखंड में जाता है. सुनीता कहती है कि महीने में 15 से 20 क्विंटल हल्दी, धनिया और मिर्च पाउडर का पैकेट निकल रहा है. अब दूसरे प्रखंड में इसकी मार्केटिंग करेगी और मसाले को शहर में भी भेजेंगी. सुनीता कहती हैं कि जीविका से जुड़कर उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने का मौका मिला है.

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