Cyber Fraud: फर्जी एप व सोशल मीडिया अकाउंट बनाकर कर ग्राहकों के खाते से उड़ा रहे पैसे, जानें बचने के उपाय

Cyber Fraud: इन दिनों बैंकिंग फर्जीवाड़े को अंजाम देने के लिए धोखेबाज फर्जी एप, हेल्पलाइन नंबर, सिम स्वैप आदि का सहारा ले रहे हैं. इसके साथ ही बैंकों के फर्जी सोशल मीडिया अकाउंट बनाकर भी ग्राहकों से अहम जानकारियां चुराकर पैसा निकालने की घटनाएं सामने आई हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 28, 2023 2:59 AM

Cyber Fraud: इन दिनों बैंकिंग फर्जीवाड़े को अंजाम देने के लिए धोखेबाज फर्जी एप, हेल्पलाइन नंबर, सिम स्वैप आदि का सहारा ले रहे हैं. इसके साथ ही बैंकों के फर्जी सोशल मीडिया अकाउंट बनाकर भी ग्राहकों से अहम जानकारियां चुराकर पैसा निकालने की घटनाएं सामने आई हैं. अगर किसी ने भी ‘एनीडेस्क’ नाम का एप डाउनलोड किया है तो उसे तुरंत अपने फोन या लैपटॉप से हटा ले. ऑनलाइन बैंकिंग बढ़ने के साथ धोखेबाज नए-नए तरीके ईजाद कर फर्जीवाड़ा को अंजाम दे रहे हैं. सूबे सहित मुजफ्फरपुर में बीते छह माह में एनी डेस्क, रिंग, धानी, बजाज वेलेट नामक एप के जरिए ठगी के 72 से अधिक मामले पहुंच चुके हैं. साइबर एक्सपर्ट नवीन कुमार चौधरी ने बताया कि साइबर ठगों ने इन सभी मामलों तकरीबन एक ही तरीका अपनाया है. वे अपने टारगेट को विश्वास में लेकर फोन में गूगल प्ले स्टोर से एप डाउनलोड कराते हैं.

ऐसे लूटा जा रहा हैं बैंक अकाउंट

सोशल मीडिया पर लोगों को ‘एनीडेस्क’ जैसे ऐप को डाउनलोड करने का विज्ञापन दिया जाता है. मोबाइल पर ऐप डाउनलोड करने के बाद नौ अंकों का एक कोड आता है, जब आप कोड डालेंगे तो वह मोबाइल फोन पर परमिशन देने को कहेगा. इसके बाद उसे आपके मोबाइल का रिमोट एक्सेस मिलेगा. इसके बाद फोन या कंप्यूटर का सभी डाटा चुरा लेता है. इस दौरान अगर आपके मोबाइल पर यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) एप है तो खाते की पूरी रकम उड़ा लेगा.

दूसरे कंप्यूटर का मिल जाता है एक्सेस

दरअसल एनीडेस्क सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किसी भी कंप्यूटर का रिमोट एक्सेस लेने के लिए होता है. उदाहरण के लिए यदि आपके लैपटॉप में एनीडेस्क सॉफ्टवेयर है और किसी अन्य के पास भी एनीडेस्क है तो दोनों यूजर्स एक दूसरे के सिस्टम को दूर बैठे कंट्रोल कर सकते हैं, हालांकि इसके लिए एक्सेस देना होता है.

फर्जी एप से डाटा चोरी कर धोखाधड़ी

बताया कि बैंकिंग फ्रॉड करने वाले धोखेबाज इन दिनों फर्जी मोबाइल एप का सहारा लेकर थोखेथाड़ी को अंजाम दे रहे हैं. बैंकों के मूल एप से मिलते जुलते एप बनाकर वो गूगल प्ले-स्टोर पर डाल रहे हैं. अगर कोई ग्राहक गलती से वह एप डाइनलोड कर अपने मोबाइल पर इंस्टॉल कर ले रहा है, तो उसके जरिए वो डाटा चोरी कर उसके खाते से पैसा निकाल रहे हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, कई ऐसे भी एप हैं जो बैंकिंग करने में सुविधा मुहैया कराने के नाम पर डाटा चोरी कर रहे हैं.

इस तरह पहचानें सही एप

नवीन कुमार चौधरी ने बताया कि किसी भी मोबाइल एप को गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करने से पहले उसके बारे में जांच करें कि उस ऐप को किसने तैयार किया है. अगर आप भारतीय स्टेट बैंक एप डाउनलोड करना है तो सबसे पहले एसबीआई गूगल प्ले स्टोर पर सर्च करें. इसके बाद एसबीआई के ऐप पर क्लिक करें. उस पर क्लिक करें और उसके बाद ऑफर्ड वाई और डेवलपर वाई की जांच करें. अगर ऑफर्ड बाय में एसबीआई और डेवलपर में भी एसबीआई का नाम है तो ही एप को डाउनलोड करें. अन्यथा नहीं. दूसरा तरीका है कि आप बैंक की वेबसाइट से सीधे एप डाउनलोड करने का लिंक प्राप्त कर सकते हैं.

सिम स्वैप से एक झटके में खाली खाता

बताया कि बैंक खाते में फर्जीवाड़ा करने के लिए इन दिनों सिम स्वैप का भी इस्तेमाल भी हो रहा है. इसमें आपका जो माबाइल नंबर बैंक खाता से जुड़ा होता है वह वह अचानक बंद हो जाता है. असल में होता यह है कि आपके नाम से जो सिम होता है उसे हैकर स्वैप कर लेते हैं. फिर स्वैप किए गए सिम को क्लोन करके उसका नकली सिम बना लिया जाता है. फिर ओटीपी की मदद से खाते से चंद मिनटों में पैसे निकाले जाते हैं. सिम स्वैप के बारे में जागरूक करने के लिए आईसीआईसीआई बैंक ने अपने ग्राहकों को मेल भेज रहा है.

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