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शास्त्रीय नृत्य सत्रिय का देश-विदेश में प्रसार कर रहीं नृत्यांगना प्लाबीता

Dancer Plabita is spreading the classical dance Satriya

उपमुख्य संवाददाता, मुजफ्फरपुर शास्त्रीय नृत्य सत्रिय शैली को अपने नृत्य से देश-विदेश में प्रसारित कर रही नृत्यांगना प्लाबीता बोर ठाकुर इस नृत्य को उपासना का माध्यम मानती हैं. नौंवी कक्षा से कथक सीख रहीं प्लाबीता पहले इस शैली में पारंगत हुई, फिर सत्रिय नृत्य में अपनी पहचान बनायीं. देश के विभिन्न राज्यों सहित फ्रांस, बहरीन और ऑस्ट्रेलिया में सत्रिय नृत्य की प्रस्तुति कर चुकी प्लाबीता शनिवार को शहर में आयोजित नूपुर कला महोत्सव में अपनी प्रस्तुति देने शहर पहुंची थी. प्रभात खबर से विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि वे असम के शिव सागर जिले में रहती हैं. पहले वे पद्मश्री बिरजू महाराज और जयकिशन महाराज से कथक सीखा. इसके बाद पद्मश्री जतिंद्र स्वामी से सत्रिय नृत्य की शिक्षा ली. कुछ वर्ष पूर्व संगीत नाटक अकादमी ने इस नृत्य को शास्त्रीय नृत्य की श्रेणी में रखा है. प्लोबीता ने बताया कि नृत्य की इस शैली के विस्तार के लिये पिछले वर्ष संगीत नाटक अकादमी का सीनियर फेलोशिप उन्हें मिला है. वे लगातार इसके विस्तार में लगी हुई हैं. असम में उन्होंने भंगिमा कला केंद्र की स्थापना की है. यह संस्था विभिन्न राज्यों में सत्रिय नृत्य की प्रस्तुति करती है. सत्रिय नृत्य के संदर्भ में उन्होंने बताया कि 15वीं सदी के आसपास संत शकर देव ने नृत्य की नयी शैली को जन्म दिया था, जो नियो वैष्णव धर्म पर आधारित था, जिसे सत्रिय नृत्य के नाम से जाना जाता है. इस नृत्य शैली के अंतर्गत अंग प्रत्यंग, दृष्टि भेद, ग्रीवा भेद और नाट्य भेद सभी कुछ आते हैँ. इस नृत्य शैली में मुख्य रूप से वैष्णव मत आधारित कथायें व प्रमुख देवी देवताओं की वंदना, स्तुति आती है. कथक और सत्रिय नृत्य में अंतर के संदर्भ में प्लाबीता ने कहा कि कथक में नवरस है़ इसमें सभी आराध्य की आराधना का भाव है, लेकिन सत्रिय नृत्य की शैली भक्ति मार्ग है. यह वैष्णव शैली का प्रतिनिधित्व करता है. इसमें कृष्ण भगवान की भाव नृत्य से उपासना है़

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