छत्तीसगढ़, पंजाब, दिल्ली, राजस्थान व हरियाणा में पकड़ी जा चुकी है विवि के नाम की फर्जी डिग्री
छत्तीसगढ़, पंजाब, दिल्ली, राजस्थान व हरियाणा में पकड़ी जा चुकी है विवि के नाम की फर्जी डिग्री
मुजफ्फरपुर. बीआरएबीयू के नाम पर जारी की जा रही फर्जी डिग्री पहले में छत्तीसगढ़, पंजाब, दिल्ली, राजस्थान व हरियाणा में पकड़ी जा चुकी है. डिग्री के लिए शातिरों की टीम 20 से लेकर 50 हजार रुपये तक चार्ज करते हैं. कोर्स के हिसाब से डिग्री की रकम तय होती है. डिग्री का पैटर्न विश्वविद्यालय के मूल प्रमाणपत्र से मिलता-जुलता है. इस कारण ठीक से नहीं देखे जाने पर वैसी डिग्री पर सैकड़ों लोग विभिन्न जगहों पर जॉब भी कर रहे हैं. सत्यापन के समय कई जगह फर्जीवाड़ा का खुलासा हुआ है. इस मामले में आरोपित मो.अबरार हुसैन ने पुलिस को बताया है कि इस कार्य से आसानी से बड़ी राशि मिलने लगी. यही वजह है कि उसने विभिन्न विश्वविद्यालयों की डिग्री बनाने का कार्य शुरू कर दिया. इसके लिए प्रोफेशनल एडिटिंग साॅफ्टवेयर का उपयोग किया. उसने विभिन्न कंसल्टेंसी से भी संपर्क साधा. विशेषकर वीजा लेकर दूसरे देश जाने वाले लोगों को वह फर्जी प्रमाणपत्र देता था. उसने पुलिस को बताया कि किसी आवेदक को वीजा मिल जाने पर कंसल्टेंसी एजेंसी उसे 40 हजार तक रुपये देती थी. उसने पुलिस को बताया है कि कंसल्टेंसी के अलावा आरोपित मो.अबरार हुसैन सीधे जरूरतमंदों के साथ भी डिलिंग करता था. वह अपने नाम से एक कंसल्टेंसी कार्यालय का भी संचालन करता था. यहीं से फर्जी प्रमाणपत्र बनाये जाते थे. पुलिस ने उसके पास से महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी के 20, बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय के छह फर्जी प्रमाण पत्र के साथ ही दो मोबाइल और लैपटाॅप भी बरामद किये गये हैं. आरोपित हैदराबाद के मेंहदीपटनम के नानल नगर का रहने वाला है. इसमें कर्मचारी के रूप में कार्य करने वाले सैय्यद इसनैन मोहम्मद, हैदराबाद के गोलकंडा के खादर बाग लंगर हाउस का रहने वाला है. —– विश्वविद्यालयों से जारी मूल प्रमाणपत्र व पेपर को करते फॉलो : फर्जी प्रमाणपत्र तैयार करने वाले आरोपित इतने शातिर हैं कि डिमांड मिलने पर उनके कर्मी संबंधित विश्वविद्यालय के प्रमाणपत्र का फॉर्मेट और हो रहे बदलाव पर भी नजर रखते हैं. प्रमाणपत्र पर लगे वाटर मार्क, पेपर की क्वालिटी, उस समय के पदाधिकारी का विवरण और हस्ताक्षर तक को फॉलो करते हैं. सरकारी नौकरी और लिमिटेड कंपनियां अभ्यर्थियों को रोजगार देने के क्रम में संबंधित विश्वविद्यालयों से प्रमाणपत्राें का सत्यापन करती हैं. इस क्रम में ही फर्जी प्रमाणपत्रों को पकड़ा जा रहा है.
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