यहां आनंद व आस्था दोनों में बसा है संगीत
यहां आनंद व आस्था दोनों में बसा है संगीत
विश्व संगीत दिवस 2024 पर विशेष : -मिथिला के शासक नान्यदेव ने रचा भारतीय संगीत शास्त्र का मूल्यवान ग्रंथ -रागतरंगिणी”””” में तिरहुत गीत का उल्लेख, मार्गी व देशी संगीत की है व्याख्या अनुज शर्मा, मुजफ्फरपुर हर साल की तरह आज 21 जून को दुनिया विश्व संगीत दिवस मना रही है. अलग-अलग मन-मिजाज के लोग अपनी-अपनी धुनों व लय से झंकृत हो रहे हैं. भविष्य की पीढ़ियों को कला अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. उत्तर बिहार में संगीत का इतना महत्त्व है कि जनमानस के लिए आनंद व आस्था दोनों ही संगीत में निहित हैं. दैनिक जीवन में भी जो घटित हो रहा है उसका अपना एक लोकगीत है. बच्चे के जन्म पर गाये जाने वाला ””””सोहर”””” इसका ही एक हिस्सा है. मैथिली ठाकुर के रूप में युवा पीढ़ी इस परंपरा को नये सोपान तक ले जा रही है. जयशंकर प्रसाद के नाटकों में सांगीतिक चेतना पर शोध कर चुकीं महिला शिल्प कला भवन मुजफ्फरपुर (एमएसकेबी ) की असिस्टेंट प्रोफेसर शिखा त्रिपाठी कहती हैं कि बिहार के लोगों को संगीत से बेपनाह लगाव है. संगीत बाअसर है. वो किसी भी प्रार्थना से बढ़कर है. संगीत का यही आध्यात्मिक गुण ”””” रामलीला”””” नौटंकी में श्रोताओं को पात्रों से बांधता था. संगीत की विविधता को बचाए रखने के लिए जरूरी है कि लोक रस व संस्कृति की विभिन्न विधाएं बचें. बिहार में नौटंकी लुप्तप्राय हो रही है. संगीत ही इसको जीवित रखता है. — मिथिला ने रचा संगीत शास्त्र बिहार में संगीत महत्त्वपूर्ण है. रामायण काल, महाभारत काल, बौद्ध व जैन काल से लेकर वर्तमान तक संगीत के कई उतार चढ़ाव देखे हैं. बिहार की संगीत परंपरा पर शोध करने वाले संगीत शिक्षक विजय कुमार सिंह अपने शोध आलेख में लिखते हैं, ””””””””बिहार में सूफी संतों के माध्यम से संगीत की प्रगति हुई. वैष्णव धर्म आंदोलन के माध्यम से नृत्य और संगीत दोनों का विकास हुआ. मिथिला के शासक नान्यदेव रचित ””””सरस्वती हृदयालंकार”””” भारतीय संगीत शास्त्र का मूल्यवान ग्रंथ है. 1685 में पंडित लोचन ने ””””रागतरंगिणी”””” रची. यह संस्कृत में लिखा गया यह ग्रंथ मिथिला की संगीत परंपरा का प्रमाणित इतिहास है. इसमें इसमें तिरहुत गीत का उल्लेख करते हुए मार्गी व देशी संगीत की व्याख्या की गयी है. —— बेगम अख्तर ने माना लोहा, मशहूर था मुजफ्फरपुर का परिवार संगीत घरानों की बात करें तो बिहार में ध्रुपद के तीन घराने हुए इसमें एक अमता (दरभंगा) व दूसरा बेतिया है. अमता में पखावाज गायन की भी कला विकसित हुई. मिथिलांचल क्षेत्र के मांगन खवास व चंद्रशेखर खां (वनगांव) सिद्धहस्त ठुमरी गायक थे. बेगम अख्तर ने भी उनकी तारीफ की थी. मुजफ्फरपुर के नाहर परिवार के गायकों एवं वादकों ने भी बिहार के संगीत परंपरा में बड़ा योगदान दिया है. बिहार के प्रमुख कलाकार क्षितिपाल मल्लिक, भैया लाल पखावजी, पद्मश्री राम चतुर मल्लिक, पद्मश्री सियाराम तिवारी, रामू जी, कामेश्वर पाठक, अभय नारायण मल्लिक, पन्ना लाल उपाध्याय, श्यामनारायण सिंह, डॉ नागेंद्र मोहनी, अरुण कुमार भास्कर आदि. प्रचलित गीत : बारहमासी गीत, वात्सल्य गीत, जीवनी गीत, भजन, श्रावण गीत, विवाह गीत, कविता गायी जाती है. लोक संगीत में स्थानीय वाद्ययंत्रों के साथ समद, बचन, थुमरी, चैती, बागी मारवा, निर्गुणिया, धुन, ग़ज़ल, झुमर, बिरहा, घोड़बंदी, कोथी गीत आदि प्रचिलित हैं. प्रचलित वाद्ययंत्र : मंजीरा, ढोलक, सारंगी, सितार, सरोद, शहनाई, तबला सबसे आम लोक वाद्ययंत्र हैं. मण्डल, ताल, खड़बज, तुरही, सरंगी, बंसुरी, खम्बजा, ज्ञाला, नागाड़ा, ढोल, बांसुरी, नगाड़ा, तुरही, दुफ्ली, सारंगी, खड़बज, सरंगा, सारंग, एकतारा और विदाला.
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