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ऐतिहासिक शोध पद्धति का आधार: प्रत्यक्षवादी दर्शन, वैज्ञानिकता और वस्तुनिष्ठता है

ऐतिहासिक शोध पद्धति का आधार: प्रत्यक्षवादी दर्शन, वैज्ञानिकता और वस्तुनिष्ठता है

मुजफ्फरपुर.

आरडीएस कॉलेज स्नातकोत्तर इतिहास विभाग के तत्वावधान में गुरुवार को रिसर्च मेथोडोलॉजी इन हिस्ट्री विषय सेमिनार का आयोजन किया गया. इसमें मुख्य वक्ता विश्वविद्यालय इतिहास विभाग के प्राध्यापक डाॅ गौतम चंद्रा ने ग्रीको-रोमन काल से उत्तर- आधुनिकता तक इतिहास के शोध पद्धति में आये परिवर्तन, निरंतरता और विकास क्रम के बारे में जानकारी दी. कहा कि इतिहास विषय में शोध पद्धति की शुरुआत हेरोडोटस की पुस्तक द हिस्टोरीएस से होती है, जब सर्वप्रथम मानव समाज के अतीत को लिखने के लिए स्रोत पर आधारित वस्तुनिष्ठ लेखन की वकालत की गयी. लेकिन मध्यकाल में चर्च और धर्म के प्रवाह में वस्तुनिष्ठता का स्थान आत्मनिष्ठता ने ले लिया. 19वीं सदी के दौरान विज्ञान के प्रभाव में जर्मन दार्शनिक रैंके ने ऐतिहासिक शोध में प्रत्यक्षवादी दर्शन की वकालत करते हुए तथ्य आधारित वस्तुनिष्ठ एवं वैज्ञानिक लेखन पर जोर दिया. मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय इतिहास विभाग की अध्यक्षा डा. रेणु कुमारी ने कहा कि शोध पद्धति से शोधकर्ता अपनी परियोजना को प्रबंधनीय, सुचारू और प्रभावी बनाए रखता है. इतिहास विभागाध्यक्ष डॉ एम एन रजवी ने अतिथियों का स्वागत किया. उन्होंने कहा कि अतीत को बदलने या मिटाने की शक्ति वर्तमान के पास नहीं है, लेकिन अतीत काल के घटनाओं की व्याख्या विभिन्न दृष्टिकोणों से होती रही है. सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य डा. अनिता सिंह ने मुख्य वक्ता व मुख्य अतिथि का सम्मान किया और सारगर्भित व्याख्यान के लिए आभार प्रकट किया. वक्ताओं में इतिहास विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक सह सीनेट सदस्य डॉ संजय कुमार सुमन, डॉ नीलिमा झा, डॉ रमेश प्रसाद गुप्ता, डॉ सत्येंद्र प्रसाद सिंह ने प्रकाश डाला, इस दौरान डॉ अजमत अली, डॉ ललित किशोर, इतिहास विभाग के डॉ संजय सुमन, डॉ मनीष शर्मा, डॉ अनुपम, डॉ सत्येंद्र प्रसाद सिंह, डॉ रमेश गुप्ता, डॉ नीलिमा झा उपस्थित थे.

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