Handloom Day: मुजफ्फरपुर खादी ग्रामोद्योग में लगी 10 हैंडलूम मशीनें बुनकरों के नहीं आने से खराब हो रही हैं. पहले यहां करीब 100 बुनकर आकर कपड़ा बुनते थे और चरखे से सूत कातते थे, लेकिन अब कारीगरों की कमी के कारण न तो चरखे का उपयोग होता है और न ही कपड़े बुने जाते हैं. फिलहाल जिला खादी ग्रामोद्योग में सिर्फ 32 बुनकर हैं, जो यहां से सूत ले जाते हैं और घर पर ही कपड़ा बुनते हैं. शहर के अलावा सकरा में 14 बुनकर हैं. जिले के अन्य प्रखंडों में बुनकर नहीं है. यहां 388 कत्तिन हैं, जो अपने घर पर चरखा से सूत कात कर खादी ग्रामोद्योग को सप्लाई करते हैं.
प्रतिदिन हो रहा 220 मीटर कपड़ा का उत्पादन
एक बुनकर रोज करीब पांच मीटर कपड़ा बुनते हैं. इस लिहाज से जिले में रोज महज 220 मीटर कपड़ा का उत्पादन हो रहा है. कपड़ा का उत्पादन कम होने के कारण खादी दुकानों के लिए दूसरे जिले के खादी ग्रामोद्योग संघ से कपड़ा मंगाना पड़ता है. हालांकि एक दशक पहले यह स्थिति नहीं थी. यहां कत्तिन और बुनकरों की संख्या 400 से अधिक थी. उस वक्त यहां बाहर से कपड़े नहीं मंगाने पड़ते थे, लेकिन समय के साथ बुनकर और कत्तिन घटते गए. खादी कमीशन ने भी इसके सुधार के लिए कोई इंतजाम नहीं किये.
मुर्शिदाबाद में हो रही धुलाई और जयपुर में रंगाई
खादी ग्रामोद्योग से उत्पादित कपड़े की धुलाई मुर्शिदाबाद में होती है ओर रंगाई जयपुर में की जाती है. यहां के बने कपड़े पहले धोने के लिए भेजे जाते हैं, फिर जयपुर भेज कर उसकी विभिन्न रंगों में रंगाई करायी जाती है. इसके बाद यह कपड़ा जिले के खादी ग्रामोद्योग के सेंटर में बिक्री के लिये आता है. ग्रामोद्योग से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि खादी ग्रामोद्योग पर सरकार का ध्यान नहीं होने के कारण यह स्थिति आयी है. पहले यहां साबुन का निर्माण भी होता था, लेकिन अब यह बंद है ओर मशीन खराब हो रही है. सरकार इसे पुनर्जीवित करे तो बहुत सारे बेराेजगारों को रोजगार मिलेगा.
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बुनकरों को एक मीटर कपड़े की बुनाई पर 42 रुपये मिलता है. एक बुनकर दिन भर में पांच मीटर कपड़ा बुनता है. इस हिसाब से वह रोज 220 रुपये कमा पाता है. कम राशि होने के कारण बुनकर बुनाई करना नहीं चाहते. वह जीवन-यापन के लिए दूसरा काम कर रहे हैं. खादी कमीशन की ओर से बुनकरों का मेहनताना नहीं बढ़ाये जाने के कारण बुनकरों की कमी है. हमलोग बुनाइ का दर बढ़ा दें तो कपड़ों की कीमत बढ़ जायेगी. इससे कपड़ों की बिक्री पर असर पड़ेगा.
– वीरेंद्र कुमार, सचिव, खादी ग्रामोद्योग