वरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुर बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के पीजी इतिहास विभाग में प्री-पीएचडी कोर्सवर्क प्रतिभागियों के बीच प्रमाण-पत्र का वितरण किया गया. इस मौके पर समारोह और व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो दिनेश चंद्र राय ने की. शोधार्थियों को कहा कि वे पुस्तकालय जाकर पढ़ने की आदत डालें. शोध में मौलिकता हो इसपर विशेष ध्यान दें. उन्होंने सभी छात्रों को अपने गुरु के प्रति समर्पण की भावना रखने की बात कही. कुलानुशासक प्रो विनय शंकर राय ने शोधार्थियों को पीएचडी से संबंधित सिनॉप्सिस, आर्टिकल व थीसिस खुद से लिखने की सलाह दी. इसके बाद विभाग में डॉ एचआर घोषाल व्याख्यानमाला के अंतर्गत दो अहम व्याख्यान आयोजित किए गये. भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के आयाम विषय के मुख्य वक्ता डॉ धर्मेंद्र कुमार थे. उन्होंने भारतीय संस्कृति की जड़ों व उसकी वर्तमान प्रासंगिकता पर विचार किया. कहा कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद केवल विचारधारा नहीं, बल्कि यह एक ऐसा आंदोलन है जो भारतीय विविधता को एकता में पिरोता है. सांस्कृतिक पहचान के संदर्भ में ऐतिहासिक घटनाओं का भी उल्लेख किया. वहीं दूसरे व्याख्यान का विषय “आधुनिक बिहार के इतिहास लेखन की समीक्षा : तथ्य की भूल के संदर्भ में ” था. इसमें डॉ राजू रंजन प्रसाद ने बिहार के इतिहास लेखन में तथ्यों की प्रस्तुति पर प्रकाश डाला. तर्क दिया कि कई बार इतिहासकार तथ्यों को अपने पूर्वाग्रहों के अनुसार प्रस्तुत करते हैं. इससे वास्तविकता को समझने में बाधा उत्पन्न होती है. डॉ प्रसाद ने उदाहरणों के माध्यम से बताया कि इतिहास लेखन में सत्यता का अभाव कई सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं को जन्म देता है. धन्यवाद ज्ञापन विश्वविद्यालय इतिहास विभाग की अध्यक्ष प्रो रेणु ने किया. कार्यक्रम में इतिहास विभाग के प्रो पंकज राय, डॉ सत्य प्रकाश राय, डॉ गौतम चंद्रा, डॉ अर्चना पाण्डेय, डॉ अमानुल्लाह, शोधार्थी हिमांशु, मणिरंजन, अनुराग, अन्नु सहित विद्यार्थी मौजूद रहे.
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