मुजफ्फरपुर. उत्तर बिहार से जो एइएस पीड़ित बच्चे एसकेएमसीएच के पीकू में पहुंच रहे हैं, उनमें ज्यादातर कमजोर पृष्ठभूमि वाले परिवारों से आते हैं. यह बच्चे रात को तो अपने घर में खाना खाकर सोए लेकिन सुबह में उन्हें चमकी बुखार हो गया. पीकू में परिजन जब उन्हें लेकर पहुंचे तो उनका शुगर लेवल कम बताया गया और एइएस की पुष्टि हुई. एसकेएमसीएच के पीकू में अब तक 23 बच्चे एइएस से पीड़ित होकर पहुंचे हैं. उनके परिजनों ने डॉक्टरों को बताया कि बच्चे आम के पेड़ और लीची के बागों के आस-पास हमेशा रहते हैं. रात 8 या 9 बजे के बीच वह खाना खाकर सोए थे. भोर होते-होते वह जोर-जोर से हिलने-डुलने लगे. मुट्ठियां भींचने लगे. सिर भी लगातार हिलने लगा है और वे दांत पीस रहे थे. जब उन्हें नजदीकी डॉक्टर के पास ले जाया गया तो वहां डॉक्टर ने कहा एसकेएमसीएच लेकर जायें. कच्चे घरों में रहने वाले तथा आधे-अधूरे कपड़े पहने और कुपोषित बच्चों के साथ, पिता या तो किसान हैं या मजदूर हैं. एक बच्ची के पिता ने बताया कि वह सुबह 8 बजे उठी और पानी मांगी. उसकी मां ने उसे दूध भी पिलाया. वह फिर सो गई और एक घंटे बाद अजीब तरह से कांपने लगी. हम उसे सीधे पीकू लेकर आ गये. दूसरे बच्चे के परिजन ने कहा कि उनकी बेटी एक दिन पहले ठीक लग रही थी. दूसरे बच्चों के साथ खेल-कूद रही थी. लेकिन अगले दिन उसे एइएस हो चुका था. गर्मी अधिक पड़ने पर एइएस बीमारी ने पैर पसार लिया है. लगभग हर गांव में एक परिवार चमकी बुखार या एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एइएस) से अपने बच्चे की पीड़ित नहीं होने की कामना कर रहा है.
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