Engineer’s Day: मुजफ्फरपुर के इंजीनियरों का कमाल, ऐप्स से लेकर सेफ्टी डिवाइस तक हर क्षेत्र में बनायी पहचान
Engineer's Day: देश में विकास में अभियंताओं का अहम योगदान है. बात चाहे पुल और बांध की हो या कंप्यूटर साइंस की, इन अभियंताओं ने ही नए आविष्कार से देश को प्रगति दिलायी है. अभियंता आधुनिक समय की जरूरतों को देखते हुए नित्य नये तरह के एप और डिवाइस तैयार करा रहे हैं और उसका पेटेंट भी करा रहे हैं. सिविल, इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल और इलेक्ट्रॉनिक के क्षेत्र में अभियंताओं ने हर क्षेत्र को विकास के पथ पर लाया है.
Engineer’s Day: मुजफ्फरपुर शहर के कई ऐसे अभियंता हैं, जिन्होंने अपनी प्रतिभा से देश ही नहीं विदेशों में भी पहचान बनायी है. शहर से बीटेक करने के बाद कई अभियंताओं ने बाहर का रुख किया और एम टेक सहित पीएचडी कर नये अन्वेषण से अपना मुकाम बनाया. यहां मुजफ्फरपुर के ऐसे ही अभियंताओं की कहानी लिखी जा रही है, जिन्होंने अपने क्षेत्र में विशेष उपलब्धि प्राप्त की और दूसरों को भी इसके लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं.
प्रो आशीष का बनाया माइ अटेंडेंस एप बिहार में लागू
मार्क माइ अटेंडेंस एप से राज्य के सभी इंजीनियरिंग और पॉलिटेक्निक कॉलेजों में प्राध्यापक, स्टाफ और छात्र अपनी हाजिरी बनाते हैं. इस एप का निर्माण एमआइटी के सहायक प्राध्यापक प्रो आशीष कुमार ने किया है. इसका पेंटेंट कराने के बाद राज्य सरकार ने इस एप को ले लिया. अब तक इस एप पर उपस्थिति दर्ज करने की सुविधा सिर्फ प्राचार्य को दी गई थी, लेकिन अब संबंधित विभागाध्यक्ष और छात्र भी एप के जरिए अपनी उपस्थिति की स्थिति देख सकेंगे.
मार्क माई अटेंडेंस नाम के इस ऐप को एक्सेस करने के लिए सभी छात्रों को एक लॉग इन आईडी और पासवर्ड दिया गया है. एप पर उपस्थिति कम होने पर अलर्ट भी भेजा जाएगा. इस दिशा में काम चल रहा है. फिलहाल ऐप की मदद से छात्र, एचओडी और प्रिंसिपल छात्रों की उपस्थिति की स्थिति देख सकेंगे. प्रो आशीष कुमार ने कहा कि इसकी मदद से छात्र देख पाएंगे कि उन्होंने कक्षाओं में कितनी उपस्थिति दर्ज कराई है. सेमेस्टर में उपस्थिति मानक से कम होने पर छात्रों को परीक्षा फॉर्म भरने की अनुमति नहीं दी जाती है. ऐसी स्थिति में ऐप की मदद से छात्र अपनी उपस्थिति प्रतिशत को सही कर सकेंगे.
टॉप प्रोजेक्ट में चयनित हुआ था वाटर फ्लो मीटर हुआ पेंटेंट
एमआइटी के छात्रों द्वारा तैयार लो कॉस्ट रेजिडेंशियल वाटर फ्लो मीटर का मॉडल देश के टॉप प्रोजेक्ट के रूप में चयनित किया गया था. इसे कॉमर्शियल रूप में ढालने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से 4.50 लाख रुपए की सहायता राशि दी गयी. इसे इंट्यूबेशन सेंटर में भेजा गया. अब तक एक्सटर्नल वाटर मीटर का उपयोग किया जाता है. इसकी खरीदारी पर 30-40 हजार रुपए खर्च आता है. छात्रों का मॉडल तैयार होने के बाद यह एडवांस मॉडल केवल तीन-चार हजार में ही तैयार हो जाएगा.
प्रोजेक्ट का नेतृत्व कर रहे एमआइटी के सिविल विभाग के प्रो. आकाश प्रियदर्शी ने बताया कि यह मॉडल पानी की बर्बादी को भी रोकेगा. एमएचआरडी व एआइसीटीइ की ओर से देश के सभी तकनीकी संस्थानों से इनोवेटिव आइडिया मांगा गया था. जिसमें इसमें आइआइटी, एनआइटी, इंजीनियरिंग कॉलेजों से लेकर मेडिकल कॉलेज के छात्र-छात्राओं ने अपने-अपने आइडिया भेजे थे. इसमें सभी को पीछे छोड़ते हुए एमआइटी के छात्रों द्वारा भेजे गए मॉडल ने प्रथम स्थान पाया मिला है. यह प्रोजेक्ट पेटेंट हो चुका है. जल्द ही यह बाजार में उपलब्ध होगा.
सेफ्टी डिवाइस खदान मजदूरों की बचाएगा जान
एमआइटी से निकले इं. उत्पल कांत का सेफ्टी डिवाइस फॉर कोल माइन वर्कर एप पेटेंट की प्रक्रिया में है. इसके बाद कोल माइन में इसका उपयोग शुरू हो जाएगा. यह एप खदान में काम करने वाले मजदूरों को सुरक्षित करेगा. इं. उत्पल कुमार ने बताया कि इस एप में सेंसर लगा हुआ है. अगर खदान में मिथेन गैस निकलती है या उमस बढ़ती है तो इसका सेंसर इसकी पहचान कर कंट्रोल रूम को सूचित करेगा़ इससे समय रहते मजदूरों को बाहर निकाला जा सकेगा. इसके अलावा उत्पल ने गाड़ियों में लगे लीथियम बैटरी को अधिक समय तक चलाने और समय रहते बैट्री चार्जिग की पहचान के लिए एक उपकरण भी बनाया है. इससे अचानक बैट्री डिस्चार्ज होने से पहले उसकी क्षमता को बता देगा. इससे ड्राइवर अपनी गाड़ियों को बैटरी की क्षमता के अनुसार निर्धारित किमी के अंदर चार्ज कर पाएगा.
गलत ड्राइविंग की तो अपने आप पार्क हो जाएगी गाड़ी
इस वर्ष ऐसी गाड़ियां लांच होगी, जिसमें एक मास्टर डिवाइस लगा रहेगा. यह बालक की आंख की पुतली, गर्दन की हरकत और स्टेयरिंग के संचालन से पता कर लेगा कि चालक नशे में तो नहीं है. अगर चालक ऊंघ रहा है तो भी यह डिवाइस समझ जाएगा. ऐसी हालत में यह डिवाइस गाड़ी की गति को धीमी करके सड़क किनारे पार्क कर देगा इसका निर्माण विभिन्न देशों के 18 सॉफ्टवेयर, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरों ने मिल कर किया है. इसका नेतृत्व शहर के इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर सत्यकाम शाश्वत कर रहे हैं. शाश्वत इससे पहले लंदन के कैंब्रिज ब्रॉडबैंड नेटवर्क लिमिटेड में कार्यरत थे.
इं.सत्यकाम शाश्वत ने बताया कि डिवाइस की टेस्टिंग हो चुकी है. अब विभिन्न कंपनियां इस डिवाइस को अपने वाहन में लगाएगी. यदि चालक ठीक तरह से ड्राइविंग नहीं कर रहा है तो गाड़ी सड़क किनारे पार्क हो जाएगी और गाड़ी में लगा डिवाइस निकटम पुलिस स्टेशन या परिवहन विभाग के कार्यालय में बने कंट्रोल रूम में एक पासवर्ड भेजेगा. इस पासवर्ड को डिवाइस में डालने पर ही गाड़ी स्टार्ट होगा. इसके अलावा यह डिवाइस जिस क्षेत्र में है, वहां के मौसम, ट्रैफिक, रास्ता सहित अन्य जानकारी भी दूसरी गाड़ियों से शेयर करता रहेगा. इससे चालक को यह जानने में सुविधा मिलेगी कि किस रास्ते की क्या स्थिति है और निर्धारित समय में वहां तक पहुंचा जा सकता है या नहीं
मुहल्ले के आठ छात्रों को निशुल्क पढ़ा कर बनाया इंजीनियर
राजकीय अभियंत्रण महाविद्यालय, मधुबनी में सहायक प्राध्यापक धीरेंद्र कुमार ने अपनी इच्छा शक्ति की बदौलत समाज की धारा बदल दी. मालीघाट निवासी धीरेंद्र ने अपने आसपास के छात्रों को निशुल्क इंजीनियरिंग की तैयारी करा उन्हें इंजीनियर बनाया. दरभंगा अभियंत्रण महाविद्यालय से बीटेक करने के बाद इन्होंने निशुल्क शिक्षा की शुरुआत की़. इन्होंने आसपास के वैसे बच्चों को जेइइ की तैयारी के लिए प्रोत्साहित किया, जिनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी. इनके प्रयास से मालीघाट मुहल्ले के आठ छात्रों ने जेइइ की परीक्षा पास की.
धीरेंद्र जब एम टेक की पढ़ाई के लिए धनबाद आइआइटी गए तो यहां इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे अन्य छात्रों ने निशुल्क शिक्षा की कमान अपने हाथ में ली़. एक छोटे से इलाके से निशुल्क कोचिंग संस्थान में पढ़ाई कर रिक्की कुमार, विशाल कुमार, राजू कुमार, आनंद कुमार, रूपा कुमारी, समृद्धि विश्वास, अमन कुमार और अंश आदित्य में पांच इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर चुके हैं और अन्य अंतिम वर्ष में हैं. धीरेंद्र तो अब यहां छात्रों को नहीं पढ़ाते, लेकिन निशुल्क कोचिंग में पढ़ने वाले छात्रों का ध्यान रखते हैँ. किताब सहित पठन-पाठन की अन्य सामग्री उपलब्ध कराते हैं. धीरेंद्र बताते हैं कि सही मार्गदर्शन नहीं मिलने के कारण छात्र भटक जाते हैं. अगर पढ़ने का जज्बा हो तो मजदूरों के बच्चे भी अच्छा कर जाते हैं
यूरोपियन कमीशन के लिए प्रोजेक्ट बना रहीं गीतांजलि
लक्ष्मी चौक की रहने वाली डॉ गीतांजलि ठाकुर इन दिनों यूरोपियन कमीशन के बायो ट्रांसफॉर्म के प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं. इस प्राेजेक्ट के तैयार होने के बाद यूरोपियन कमीशन के अंदर आने वाले 27 देशों के बायो इकोनॉमी और सर्कुलर इकोनॉमी को कैसे एक्सेस किया जाए, इस पर पॉलिसी बनेगी. इसके लिए इनवॉयरमेंटल और इकेनोमिकल सहित सोशल इंडिकेटर का लिस्ट तैयार किया जा रहा है. साथ ही अंब्रेला थीम ग्रीन हाउस को कैसे कम किया जाए, इस पर प्रोजेक्ट में काम किया जा रहा है.
डॉ गीतांजलि ठाकुर इन दिनों लक्समबर्ग में हैं. इन्होंने बीटेक कलिंगा यूनिवर्सिटी, एम टेक आयरलैंड के डबलिन यूनिवर्सिटी और सिविल इंजीनियरिंग एंड इनवॉयरमेंटल साइसेंसज में पीएच-डी जर्मनी के कार्ल्सरूहे इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से किया है. डॉ गीतांजलि ने बताया कि यूरोपियन कमीशन के लिए फ्रेम वर्क तैयार तैयार करने के बाद इसे यहां के 27 देशों में लागू किया जाएगा. उन्होंने कहा कि यूरोपियन कंट्री में आधुनिक तकनीक है. यहां बायो इकोनॉमी पर बहुत काम हुआ है. अपने देश में भी इस तरह का इंन्फ्रास्ट्रक्चर बने तो वहां की कृषि की हालत सुधरेगी.
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एमआइटी के छात्र-छात्रा को अवार्ड देंगे राज सिन्हा
न्यूयॉर्क में रहने वाले राज सिन्हा एमआइटी के 1990 बैच के स्नातक हैं. इस बार 25 सितंबर को एमआइटी स्थापना दिवस के मौके पर माता-पिता की याद में एक छात्र और एक छात्रा को सुभद्रकृष्ण अवार्ड देंगे. इसके अलावा अलग-अलग 12 अवार्ड भी वे प्रदान करेंगे. राज सिन्हा पिछले 21 वर्षों वे से न्यूयॉर्क स्टेट मेडिकेड सिस्टम के लिए सीनियर मैनेजर के रूप में सेवा दे रहे हैं. राज सिन्हा ओरैकल सर्टिफाइड प्रोफेशनल, लीन सिक्स सिग्मा सर्टिफाइड व ऑस्ट्रेलिया से प्रोजेक्ट मैनेजमेंट और टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट में डिप्लोमा लिया है.
इसके अलावा यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनिया से हेल्थकेयर एडमिनिस्ट्रेशन मैनेजमेंट, बिजनेस इंटेलिजेंस मैनेजमेंट सिस्टम्स और बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में भी उन्होंने प्रमाणपत्र प्राप्त किए हैं. एमआइटी के साथ अमेरिका स्थित अलूननी संस्था के माध्यम से इनकी भागीदारी गहरी है. ये एमआइटी के छात्रों और फैकल्टी के संपर्क में रहते हैं और छात्रों को सलाह भी देते हैं.
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