दिव्यांग बेटी को स्कूल पहुंचाने के लिए पिता ने छोड़ी नौकरी, हादसे में शिप्रा ने गंवाया था दोनों पैर
मुजफ्फरपुर जिले की आठ साल की शिप्रा यूपीएससी करना चाहती है लेकिन चार साल पहले उसने एक सड़क हादसे में अपना पैर गंवा दिया था. शिप्रा के पिता ने अपनी बेटी के लिए नौकरी छोर दी और प्रतिदिन अपनी दिव्यांग बेटी को साइकिल से स्कूल पहुंचाने जाते हैं.
मुजफ्फरपुर जिले के बनघारा गांव की आठ साल की शिप्रा हादसे में अपने दो पैर गंवाने के बाद भी यूपीएससी करने का सपना संजोए हुए है. यूकेजी की छात्रा शिप्रा को आज तक सरकारी स्तर पर ट्राई साइकिल भी नसीब नहीं हुआ है. पिता प्रतिदिन बेटी को साइकिल से स्कूल पहुंचाते हैं. हिम्मत ऐसी कि वह अपने हाथ व सिर के बल कुछ दूर तक चल भी लेती है. होनहार ऐसी कि अपनी कक्षा में वह हमेशा अव्वल आती है. आज शिप्रा से आसपास के बच्चे सीख लेते हैं.
2018 में हुआ था हादसा
वर्ष 2018 में शिप्रा जब स्कूल जा रही थी उसी दौरान तेज रफ्तार से आ रहे बालू लदे ट्रक ने शिप्रा को बुरी तरह रौंद दिया. एक पैर तो घटनास्थल पर ही शरीर से अलग हो गया वहीं दूसरा पैर भी बुरी तरह जख्मी हो गया. डॉक्टरों के काफी मशक्कत के बाद भी उस पैर को नहीं बचाया जा सका और पटना एम्स में इलाज के बाद उसे भी काट कर हटा दिया गया था.
पिता ने छोड़ी नौकरी
घटना के वक्त पिता शैल कुमार दास माइक्रो फाइनेंस कम्पनी में जॉब करते थे. शिप्रा दोनों पैर गंवाने के बाद स्वस्थ होकर घर लौटी तो वह फिर से स्कूल जाने की जिद्द पर अड़ गयी. बेटी की जिद्द के आगे पिता को माइक्रो फाइनेंस कम्पनी की जॉब छोड़नी पड़ी. अब वह साइकिल पर बेटी को स्कूल ले जाते हैं. शिप्रा का सरकारी स्कूल में नामांकन किया गया है. किंतु शिप्रा की मेधा को देखते हुए बनघारा के रोज बर्ड पब्लिक स्कूल ने नि:शुल्क शिक्षा देने की घोषणा की है.
पिता की मदद से साइकिल पर स्कूल जाती है
शिप्रा रोज अपने पिता की मदद से साइकिल पर स्कूल जाती है. अब वह आठ साल की हो गयी है. यूकेजी क्लास की वह तेज तर्रार छात्रा है. शिप्रा की पढ़ाई तो नियमित हो गयी है. किंतु आर्थिक तंगी के कारण दाल रोटी का संकट आ गया है. बेटी के हठ के आगे पिता शैल कुमार दास ने जॉब भी छोड़ दिया है. पत्नी अनिता कुमारी बीमार रहती है.
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सरकारी सहायता के लिए कई बार प्रखंड मुख्यालय का चक्कर
पिता कहते हैं कि बेटी की सरकारी सहायता के लिए कई बार प्रखंड मुख्यालय का चक्कर लगाया. किंतु कोई सुनने वाला नहीं है. उसे एक ट्राइ साइकिल की भी मदद नहीं मिली है. हालांकि शिक्षा विभाग की ओर से लगे दिव्यांगता शिविर में शिप्रा का आवेदन लिया गया है. उसे हर संभव सहायता का आश्वासन दिया गया है. शिप्रा के पिता कहते हैं कि बेटी की पढ़ाई अब बाधित नहीं होने देंगे. जीविका उपार्जन के लिए घर पर ही कारोबार शुरू करेंगे लेकिन बेटी का मिशन पूरा करेंगे.
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