Muzaffarpur News: नाटक एक प्रोडक्ट, अच्छा बनाएंगे तो दर्शक जुड़ेंगे, प्रभात खबर संवाद में रंगकर्मियों ने रखे विचार

Muzaffarpur News: प्रभात खबर के कार्यालय में शहर के रंगकर्मियों ने नाटक को लेकर अपने विचार रखे. इस दौरान रंगकर्मियों ने कहा कि शहर में पृथ्वी राज कपूर अपने नाटक को लेकर आये थे, इसी से समझा जा सकता है कि मुजफ्फरपुर रंगकर्म में कितना समृद्ध था. पढ़ें पूरी खबर…

By Aniket Kumar | February 4, 2025 10:21 PM
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Muzaffarpur News: थियेटर से लोगों का जुड़ाव बढ़ाने के लिए अच्छे नाटकों की तैयारी सबसे बड़ी जरूरत है. आज की ऐसी कई सामयिक समस्याएं हैं, जिसकों केंद्र में रखकर हम नाटक तैयार कर सकते हैं. हमें संदेश परक नाटकों को दर्शकों तक ले जाना होगा, तभी नाटक को दर्शक मिलेंगे. इसके लिए नाटक की विभिन्न विधाओं से जुड़े कलाकारों को मेहनत करनी पड़ेगी. हमें नुक्कड़ पर नाटक को ले जाना होगा. शहर के रंगकर्मियों ने मंगलवार को प्रभात खबर कार्यालय में आयोजित संवाद में कुछ ऐसे ही विचार रखे. रंगकर्मियों ने शहर में थियेटर की समृद्ध परंपरा और उसकी संभावनाओं पर बात की. रंगकर्मियों को कहना था कि शहर में पृथ्वी राज कपूर अपने नाटक को लेकर आये थे, इसी से समझा जा सकता है कि मुजफ्फरपुर रंगकर्म में कितना समृद्ध था. 

आज भी शहर के रंगकर्म से निकले कई कलाकार मुंबई में अपनी पहचान बना चुके हैं. रंगकर्मियों को वैसी ही प्रतिबद्धता दिखानी होगी, जिससे हमारा शहर समृद्ध हो सके. कलाकारों ने प्रभात खबर से जुड़कर विभिन्न मुद्दों पर नाटकों के प्रदर्शन पर अपनी सहमति दी. यहां रंगकर्मियों के विचार रखे जा रहे हैं –

ज्वलंत मुद्दो पर नाटक तैयार करने की जरूरत

इप्टा के सचिव अजय विजेता ने कहा कि 1960 से पहले शहर में बांग्ला नाटकों का प्रभाव था. उस दौरान हिंदी नाटकों का मंचन नहीं होता था. हालांकि इसके बाद तपेश्वर लाल विजेता और यादवचंद्र जैसे शख्सियतों ने हिंदी नाटकों की परंपरा शुरू की. यहां नाटक का मंचन करने पृथ्वीराज कपूर, राजकपूर और शमी कपूर भी आये. आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री के यहां सभी रुके थे. शहर में नाटक का माहौल बना, जो दो दशकों तक कायम रहा, लेकिन अब नाटकों की वैसी परंपरा नहीं रही. आज के रंगकर्मी नुक्कड़ नाटक से दूर हो गये हैं, जबकि नुक्कड़ नाटक संप्रेषण का सबसे सशक्त माध्यम है.कला श्री और इप्टा विश्वविद्यालय स्तर पर प्रतिभा खोज अभियान चला कर कलाकारों को तैयार करेगी.

म्यृजिक और डांस की तरह थियेटर पर भी हो काम

रंगकर्मी प्रियांशु ने कहा कि यूनिवर्सिटी की इस्ट जोन थियेटर प्रतियोगिता में पिछले साल हिस्सा लिया था. हमलोगों को पता नहीं था कि थियेटर क्या होता है. नाटक में काम करने से अभिनय की बारीकियां सीखने को मिली. उस वक्त म्यूजिक और डांस में बहुत काम होता था, लेकिन थियेटर पर काम बहुत कम होता था. हालांकि नाट्य निर्देशक सुनील फेकानिया के निर्देशन में बहुत कुछ सीखने को मिला. यहां कलाकारों का भी एक एसोसिएशन होना चाहिए.

रंगकर्मियों को दिया जाता नचनिया का संबोधन

रंगकर्मी मिहिर मनीष भारती ने कहा कि जब छह साल का था तो पिताजी नाटक देखने लेकर जाया करते थे. अभिनय में रुचि बचपन से थी, इसलिए थियेटर से जुड़ा, लेकिन थियेटर से जीवन-यापन मुश्किल है. शहर में तो लोग बतौर रंगकर्मी लोग जानते हैं, लेकिन गांवों में अब भी नचनिया ही कहा जाता है. कलाकारों को जो सम्मान मिलना चाहिए, नहीं मिलता. थियेटर से पैसे नहीं आते, इसलिए मजबूरी में दूसरा काम करने के लिए विवश होना पड़ता है.

नाटक एक प्रोडक्ट है

आकृति रंग संस्थान के निर्देशक सुनील फेकानिया ने कहा कि थियेटर से पैसे नहीं, यह धारणा गलतयह कहना गलत है कि थियेटर से पैसे नहीं हैं या रोजगार नहीं है. नाटक एक प्रोडक्ट है, हम उसे कैसा बनाते हैं, यह महत्वपूर्ण है. हमारा प्रोडक्ट अच्छा होगा तो उसकी मांग होगी. इससे नाटकों के शो बढ़ेंगे और कलाकारों को आर्थिक लाभ भी होगा. ऐसे कई पुराने नाट्य निर्देशक रहे हैं, जिनके द्वारा तैयार नाटक 20-30 वर्षों के बाद भी हर महीने पांच से दस शो होते हैं. नाट्य निर्देशक हबीब तनवीर के नाटकों की अभी भी मांग है, लेकिन हमें अपना प्रोडक्ट तैयार करने में मेहनत करनी होगी. यह काम शॉर्ट कट तरीके से नहीं हो सकता. पूरी प्रतिबद्धता के साथ जब नाटक के विभिन्न आयाम पर मेहनत की जायेगी तो हमारे नाटक भी दर्शकों को आकर्षित करेंगे.

मुजफ्फरपुर में थियेटर का विकास हो

रंगकर्मी विवेक कुमार ने कहा कि चार साल से नाटक कर रहा हूं. पहले नाटकों से जुड़ाव नहीं था, लेकिन नाट्य निर्देशक सुनील फेकानिया की प्रस्तुति देखी तो इनके नाट्य दल में शामिल हो गया. नाटक करने से मुझे आत्मिक संतुष्टि मिलती है. थियेटर ही मेरा जुनून है और इसी क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहता हूं. मैं लगातार अभिनय सीख रहा हूं और बेहतर अभिनय का प्रयास करता हूं. मुजफ्फरपुर में थियेटर का विकास हो, यही उम्मीद लेकर काम कर रहा हूं.

नाटक के लिए भाषा की शुद्धता जरूरी

रंगकर्मी कृति ने कहा कि पिछले साल यूनिवर्सिटी के इस्ट जोन की प्रतियोगिता की नाटक कैटेगरी में मेरा चुनाव हुआ था. इससे पहले नाटक के बारे में कुछ पता नहीं था. नाटक के रिहर्लसल के दौरान बहुत कुछ सीखने का मौका मिला. फिलहाल एक नाटक की तैयारी कर रही हूं. नाटक के लिए भाषा की शुद्धता और सही टोन बहुत जरूरी है. इसका भी अभ्यास कर रही हूं. थियेटर से जुड़ कर मुझे अच्छा लग रहा है और मैं चाहती हूं कि बेहतर नाटक का प्रदर्शन करूं.

नाटक के लिए शहर में बनाया जाये माहौल

रंगकर्मी शीतल रानी ने कहा कि रंगकर्म से जुड़कर अच्छा लग रहा है. फिलहाल एक नाटक की तैयारी कर रही हूं. लोगों को अभी थियेटर के बारे में पता नहीं है. शहर में इसके लिए माहौल बनाने की जरूरत है. जब लाग थियेटर के बारे में जानेंगे तभी तो नाटक देखेंगे. नाटक का माहौल कैसे बने, इसके लिए विभिन्न संगठनों के कलाकारों को सोचने की जरूरत है. शहर में नाटकों की निरंतरता हो तो लोगों को जुड़ाव बढ़ेगा और कलाकारों की लोकप्रियता बढ़ेगी.

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नये सब्जेक्ट पर नाटक तैयार करने की जरूरत

रंगकर्मी ने दीनबंधु ने कहा कि नाटक से नए दर्शक नहीं जुड़ रहे हैं, यह बड़ी समस्या है. नाटक देखने वही लोग आते हैं, जो नाटक करते हैं. नाटक करने के लिए कोई युवा नाट्य संगठन से जुड़ना चाहता है तो माता-पिता सहमत नहीं होते, उन्हें लगता है कि इससे समय बर्बाद होगा और बेटे का कॅरियर खराब हो जायेगा. यह स्थिति ठीक नहीं है. कलाकारों को नये नाटक पढ़ना भी चाहिए, जिससे वे नये सब्जेक्ट पर काम कर सके. कलाकारों का एक संघ भी होना चाहिए.

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