सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर पढ़ें विशेष, मुजफ्फरपुर के तिलक मैदान में 70 मिनट भाषण देकर जगायी थी क्रांति की ज्वाला

Netaji Subhas Chandra Bose Jayanti: मुजफ्फरपुर के तिलक मैदान में नेताजी सुभाष चंद्र बोस 70 मिनट भाषण देकर क्रांति की ज्वाला जगायी थी. इसके साथ ही बंका बाजार के समीप चाय की दुकान कल्याणी केबिन का उद्घाटन किया था. पढ़ें सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर विशेष स्टोरी

By Radheshyam Kushwaha | January 23, 2025 4:35 AM

Netaji Subhas Chandra Bose Jayanti: मुजफ्फरपुर. नेताजी सुभाष चंद्र की स्मृतियां शहर की यादों में बसी है. वह 26 अगस्त, 1939 को मुजफ्फरपुर आए थे. उन्होंने क्रांतिकारी ज्योतिंद्र नारायण दास और शशधर दास की बंका बाजार स्थित कप-प्लेट वाली चाय की दुकान का उद्घाटन किया था. यह कप-प्लेट की पहली चाय दुकान थी. दोनों क्रांतिकारियों ने इस दुकान के बहाने क्रांतिकारियों को एकत्र होने की जगह बनायी थी. उस समय शहर के सोशलिस्ट नेता रैनन राय ने सुभाष चंद्र बोस को यहां बुलाया था. दुकान के उद्घाटन के बाद सुभाष चंद्र बोस तत्कालीन गवर्नमेंट भूमिहार ब्राह्म्ण कॉलेज (अब एलएस कॉलेज) पहुंचे थे. यहां इनको सम्मानित किया गया था. नेताजी ने तिलक मैदान की सभा में करीब 70 मिनट भाषण देकर क्रांतिकारियों मे आजादी का जज्बा फूंका था. इसके बाद नेताजी ओरियेंट क्लब पहुंचे़. यहां बांग्ला भाषी समुदाय की ओर से उनहें सम्मानित किया गया.

सुभाष चंद्र बोस के निजी सचिव थे कर्नल महबूब

मुजफ्फरपुर निवासी महबूब अहमद नेताजी सुभाष चंद्र बोस के मिलेट्री सेक्रेटरी और निजी सचिव थे. इनके पिता डॉ वली अहमद ने इनहें 1932 में देहरादून मिलेट्री स्कूल भेज दिया था. 1940 में इनकी नियुक्ति ब्रिटिश इंडियन आर्मी में सेकेंड लेफ्टिनेंट के तौर पर हुई थी. ये सुभाष चंद्र बोस के विचारों से काफी प्रभावित थे. इस कारण 1942 में नौकरी छोड़ कर आजाद हिंद फौज में शामिल हो गये. सुभाष चंद्र बोस से इनकी पहली मुलाकात सिंगापुर में हुई. इन्हें सुभाष रेजीमेंट का एड-ज्वाइंट के पद पर नियुक्त किया गया. कर्नल महबूब का पहला मोर्चा भारत- बर्मा, सीमा, पर चीन हिल पर था. इस युद्ध में आजाद हिंद फौज के सिपाहियों को कामयाबी हासिल हुई. इस युद्ध की जीत पर नेताजी ने कर्नल महबूब को शाबाशी देते हुए कहा कि, ‘‘महबूब 23 वर्ष की उम्र में तुमने तो कमाल कर दिया.’’

सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर पढ़ें विशेष

1943 के आखिरी महीने में ‘सुभाष रेजीमेंट को मयरांग मोर्चे पर भेज दिया गया, जहां अंग्रेजी फौज व आजाद हिंद फौज के बीच युद्ध हुआ, इसमें कर्नल महबूब के सिपाहियों को जीत मिली. 14 मई, 1944 को हुए युद्ध में कर्नल महबूब के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज का क्लांग घाटी पर अधिकार हो गया. 1945 में पोपा हिल पर भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें सुभाष चंद्र बोस के मिलेर्टी सेक्रेटरी से कर्नल महबूब अहमद थे. इस युद्ध में आजाद हिंद फौज की जीत हुई. बाद में वर्मा में ही उन्हें अरेस्ट कर लिया गया. देशद्रोह के सिलसिले में यह गिरफ्तार हुए़ इनका केस पं.जवाहर लाल नेहरू और इनके बड़े भाई शफी दाऊदी ने लड़ी. इसमें इनकी जीत हुई. देश की आजादी के बाद इन्हें भारतीय विदेश सेवा में शामिल किया गया. इनका निधन 9 जून, 1992 को पटना में हो गया. इतिहास लेखक आफाक आजम ने अपनी पुस्तक में इनकी जीवनी का उल्लेख किया है. कर्नल महबूब अहमद के भतीजे डॉ अल्तमश दाऊदी ने कहा कि चाचा कर्नल महबूब अहमद सुभाष चंद्र बोस के मिलेट्री सेक्रेटरी सह निजी सचिव रहे. आजाद हिंदी फौज के विस्तार में भी उनका अहम योगदान रहा.

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