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प्रभात खबर संवाद में मातृ शक्तियों ने कहा- आंखों में प्यार के सिवा बच्चों से कुछ नहीं चाहती मां

मदर्स डे से एक दिन पहले शनिवार को प्रभात खबर कार्यालय में संवाद आयोजित किया गया. जहां महिलाओं ने बच्चों के लालन पालन और उसके परिवेश में मां की भूमिका पर विस्तार से चर्चा की़ यहां उनके विचारों को रखा जा रहा है -

Mothers Day: मां की ममता को परिभाषित करने लिये कोई सटीक शब्द नहीं बना हैं. मां संभवत: ईश्वर का एक रूप होती है, जो न केवल बच्चों को जन्म देती है, बल्कि उसकी परवरिश के लिये अपना सब कुछ कुर्बान कर देती है. मां बच्चों की खुशी में ही खुश रहती है. उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य होता है कि उनके बच्चे पढ़-लिख कर अच्छी नौकरी करे और अपना सुखमय जीवन बिताये. मां का प्यार निस्वार्थ होता है. जब वह अपने बच्चों की आंखों में खुशी देखती है तो उसकी सारी थकान एक पल में दूर हो जाती है.

मां की ऐसी ही संवेदनाये मदर्स डे की पूर्व संध्या पर शनिवार को प्रभात खबर कार्यालय में आयोजित संवाद में दिखी. विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी मातृ शक्तियों ने खुलकर कहा कि बच्चों के कॅरियर की राह तक पहुंचाने में अपनी खुशी से समझौता तो करना पड़ता है, लेकिन हम कभी भी बच्चों से कुछ पाने की उम्मीद नहीं करते. उसकी प्यार भरी नजर ही मां होने के गौरव का अहसास करा देता है.

मेरे बच्चे ही अब मेरी मां बन गये

मेरे तीन बच्चे हैं. तीनों सफल हाने के साथ अच्छे इंसान हैं. तीनों विदेश में रहते हैं. मेरा अक्सर आना-जाना होता रहता है, लेकिन अपनी मिट्टी से प्यार है, इसलिये लगातार साथ नहीं रहती, अपने घर लौट आती हूं. मेरे बच्चे मेरा बहुत ख्याल रखते हैं. हमेशा पूछते हैँ कि कोई समस्या हो तो बताये. जिस तरह मैँने बचपन में उनका ख्याल रखा था, उसी तरह अब मेरा वे लोग ख्याल रखते हैँ. कहा जाये तो मेरे बच्चे अब मेरी मां बन गय हैं. – प्रियंवदा दास, ब्रह्मपुरा

बच्चे बड़े हो जाते हैं, पर मां का प्यार कम नहीं होता

मां सिर्फ एक दिन के लिये नहीं होती. वह 365 दिन अपने बच्चों के लिये काम करती है. बच्चे बड़े हो जाते हैँ फिर भी मां का प्यार कम नहीं होता. मां हमेशा यह ध्यान रखती है कि बच्चों का लालन-पालन सही तरीके से हो. उसे अच्छा परिवेश मिले, जिससे वे अपने कॅरियर की राह में आगे बढ़े. मां के प्यार से ही बच्चों को जीवन संवरता है. मां क्या होती है, यह मां बन कर ही समझा जा सकता है. मां अपनी परवाह नहीं करती, वे हमेशा चाहती है कि बच्चे खुश रहें. – अर्चना सिंह, अखाड़ाघाट

मां की आंखों में प्यार की उम्मीद जगाये बच्चे

मां बनना खेल नहीं है, पूरी सृष्टि को संभालने जैसा है. मां बच्चों को पढ़ा-लिखा कर उसे कुछ करने लायक बनाती है. मां की उम्मीद रहती है कि बच्चे भी उससे प्यार करे और उसकी आंखों में उम्मीद जगाये. मां बच्चों से कुछ नहीं चाहती, बस बच्चे उनकी फिक्र करे, उनसे बात करें और उम्र ढलने पर अपनी मां को वृद्धाश्रम में नहीं भेजे. हर मां अपने बच्चों से यही चाहती है. – माधवी लता, जूरन छपरा

मां किसी प्रतिदान के लिये प्यार नहीं करती

बच्चा चाहे कहीं भी नौकरी करें, लेकिन माता-पिता अपनी जड़ों से दूर होना नहीं चाहते. वे कुछ दिन के लिये बच्चों के पास जाते हैं, फिर लौट आते हैं. कई मां अपने बच्चों के परवरिश और अच्छी शिक्षा के लिये नौकरी छोड़ दी, लेकिन अब उनके बच्चों की अपनी दुनिया है. उत्तर आधुनिक युग में सब कुछ यूज एंड थ्रो होता जा रहा है. मां किसी प्रतिदान के लिये बच्चों से प्यार नहीं करती. – डॉ पूनम सिन्हा, बेला रोड

बच्चों के सुख के लिये दुख सहती है मां

मां के बिना किसी जीव का अस्तित्व नहीं है. मां बच्चों का लालन-पालन से लेकर अपनी सभी जिम्मेदारियों का निर्वहन करती हैं. मां बच्चों के लिये दुख सहती है, लेकिन बच्चों को किसी तरह की दिक्कत नहीं हो, इसका ख्याल रखती है. मां की भूमिका के लिये कोई शब्द नहीं है. बच्चों के लिेय मां ईश्वर की तरह होती है, जो उसे सभी मुसीबत से बचाती है. मां होना एक गर्व की अनुभूति है – संगीता कुमार साह, रामदयालु

मां कभी बच्चों को दूर नहीं भेजना चाहती

मां और बच्चों का रिश्ता सबसे अलग होता है. मां बच्चों के कॅरियर के लिये उसे अपने से दूर भी भेजती है तो बस एक ही ख्याल रहता है कि बच्चा सफल हो जाये. मां बच्चे को अपने से दूर नहीं करना चाहती, बच्चा मां से फोन कर हालचाल लेता है तो वह सुकून का पल होता है. मां अंतत: बच्चों की खुशी चाहती है कि वह चाहे जितना भी कष्ट में रहे, बच्चे के चेहरे पर शिकन नहीं देखना चाहती – नूतन जायसवाल, सरैयागंज

बदले हुये दौर में बढ़ रहा एकाकीपन

आजकल के विवाह में पहले से ही तय हो जाता है कि माता-पिता को झेलना है या नहीं. आज का दौर बिल्कुल बदला हुआ है. मां और बच्चों का रिश्ता इतना भावनात्मक है कि इसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता. बच्चे जब मां से दूर होते हैं तो मां को दर्द होता है. यह दर्द एकाकीपन का है. बच्चों को पढ़ने के लिये हम बाहर भेजते हैं, तभी से जुड़ाव में कमी आने लगती है, लेकिन मां करे तो क्या – डॉ पूनम सिंह, गन्नीपुर

बच्चों क खुशी के लिये बस कुछ कुर्बान कर देती है मां

मां विमर्श का मुद्दा नहीं है. मां एक दरिया है. मां के आंचल में ममता का जो स्रोत है, उसके लिये शब्द नहीं है. मां पर न जाने कितनी कवितायें हैँ. मां अपने बच्चों के लिये जीवन के सारे झंझावात सहती है, लेकिन बच्चों की हर खुशी के लिये अपना सब कुछ कुर्बान करने के लिेय तैयार रहती है. बच्चे अगर मां का ध्यान नहीं रखते तो मां की आंख भर जाती है. किसी मां के लिये यह सबसे दुखद पल होता है – डॉ तारण राय, गन्नीपुर

मां खून का रिश्ता नहीं, भावनात्मक रिश्ता

मातृत्व का आनंद ही कुछ और होता है. मां अपने बच्चों का ख्याल रखती है, लेकिन मां की ममता सिर्फ अपने बेटे-बेटियों तक ही सीमित नहीं रहती. एक शिक्षिका होने के नाते मैंने स्कूल के सारे बच्चों को मां का प्यार देती थी. मां सिर्फ खून का रिश्ता नहीं होता. यह एक भावनात्मक रिश्ता है. आज वह बच्चे जब मिलते हैँ तो उनसे गले लगकर एक मां होने की अनुभूति होती है – डॉ पुष्पा प्रसाद, चकबासु लेन

मां बिना बच्चों का जीवन अधूरा

मां का जीवन 365 दिन के लिये होता है. मां बिना बच्चों का जीवन अधूरा होता है. एक मां के लिये सबसे खुशी का पल तब होता है जब बच्चे उनके साथ रहे और उनका ध्यान रखे. आजकल के समय में तो यह संभव नहीं होता, लेकिन बच्चों में मां के प्रति वही संवेदना होनी चाहिये. मां बच्चे से कुछ नहीं चाहती, बच्चों की आंखों में अपने लिये प्यार देखना चाहती है. – प्रतिमा कुमारी,

अच्छी परवरिश के लिये संघर्ष करती है मां

मां का जीवन अपने बच्चों के लिये होता है. वह बच्चों की अच्छी परवरिश के लिये संघर्ष करती हैं. बच्चे जब कुछ बन जाते हैँ तो मां को संतुष्टि मिलती है. मां बच्चों की जिंदगी में दखल नहीं देती. वह चाहती है कि बच्चे खुश रहे. मां बस इतना चाहती है कि बच्चे उनका भी ख्याल रखे. अपनी दुनिया के अलावा माता-पिता की भी देखभाल करे और वैसे ही प्यार करे, जैसा बचपन में किया करता था – रानू गुप्ता

बच्चे बड़े होकर मां से विमुख हा रहे

मां का दर्जा कोई नहीं ले सकता. परमात्मा ने मां के रूप में अपना अक्श धरती पर भेजा है. पहले मां-बाप की अहमियत ज्यादा हुआ करती थी, लेकिन आज के जेनरेशन में बच्चे बड़े होकर मां से विमुख हो रहे हैँ. आज के समय में बहुत बदलाव आया है. बच्चे अपनी मां से वैसा प्यार नहीं करते, जैसी मां अपेक्षा रखती है. बच्चे जब दूर चले जाते हैं तो मां का एकाकीपन उन्हें सालता रहता है. – पूनम गुप्ता

बच्चों का सही लालन पालन करे मां

आज के परिवेश में माताओं को बच्चों के अनुसार ढलना पड़ता है. बच्चों को अच्छी शिक्षा देनी है तो उसे बाहर भेजना होगा. बच्चा जब पढ़-लिख लेगा और नौकरी करेगा तो उसकी दुनिया अलग होगी. मां को इसमें सामंजस्य बढ़ाने की जरूरत होती है. मां बच्चों को सही लालन-पालन दे और संस्कारित करे तो बहुत सारी समस्याये समाप्त हो जाती है. आज के युग में मां को भी बदलना पड़ेगा – बबली कुमारी, सरैयागंज

स्कूली शिक्षा के साथ बच्चों को संस्कार सिखायें

मां बच्चों को संस्कार सिखाये तो बहुत सारी समस्याओं का समाधान हो सकता है. बच्चे जब संस्कारित होंगे तो वे माता-पिता की अहमियत को समझेंगे. उन्हें यह पता रहेगा कि कौन-सा काम गलत है और कौन सही. मां को चाहिये कि वे स्कूली शिक्षा के साथ बच्चों को नैतिकता का पाठ भी पढ़ाये. हमें एक अच्छी मां बनना है तो यह फर्ज भी पूरा करना होगा. – आशा सिन्हा, बालूघाट

कष्ट में रहते हुये भी बच्चों का ध्यान

बच्चा जन्म के बाद सबसे पहले मां ही बोलता है. मां बच्चों के लिये सबसे महत्वपूर्ण होती है. वह बच्चों का लालन-पालन के साथ उसकी एक-एक जरूरतों का ध्यान रखती है. बच्चे के जीवन में मां के होने का मतलब है कि उसकी सभी समस्याओं का समाधान. मां कष्ट में रहते हुये भी बच्चों की सारी सुविधाओं का ध्यान रखती है. मां का जीवन बच्चों के लिये सबसे महत्वपूर्ण होता है – डॉ पुष्पा गुप्ता, बीबीगंज

मां बनने के बाद ही मां के दर्द का पता

जब तक कोई लड़की मां नहीं बनती वह मां का दर्द नहीं समझ सकती. मां बनने के बाद पता चलता है कि मां की अहमियत क्या है और वे अपने बच्चों को कैसे देखभाल करेगी. मां बच्चों की हर जरूरत का ख्याल रखती है. एक मां ही होती है, जो जानती है कि उसके बच्चे को किस चीज की जरूरत है. यही बच्चे जब बड़े होते हैँ तो उनकी नजर में मां की अहमियत कम हो जाती है – सोनी झा, भगवानपुर

सृष्टि की जननी है मां, ईश्वर का स्वरूप

मां से बढ़कर दुनिया में कोई भी नहीं है. मां ही सृष्टि है, जननी है, ईश्वर का स्वरूप है. जब बच्चों पर मुसीबत आती है तो वो महाकाली का रूप भी धारण कर लेती है. मां अपने बच्चों के लिये सारा दुख सहती है, लेकिन बच्चों को किसी तरह की परेशानी नहीं हो, इसका ख्याल रखती है. मां की भूमिका परिभाषित नहीं की जा सकती. बच्चों की आंखों में ही मां होने का अर्थ पता चलता है – सविता राज, रामदयालु नगर

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