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सुजनी कला में चमका बिहार का ये गांव, ग्रामीण महिलाएं बनीं अंतरराष्ट्रीय कलाकार

Muzaffarpur News: मुजफ्फरपुर के भूसरा गांव की महिलाएं सुजनी कला से आत्मनिर्भरता की मिसाल बनी हैं. करीब 1000 महिलाएं इस कला से जुड़कर आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं. देश-विदेश में इनकी सुजनी कला की मांग है, जिससे वे लाखों की कमाई कर रही हैं और अन्य महिलाओं को भी प्रेरित कर रही हैं.

Muzaffarpur News: मुजफ्फरपुर जिले का गायघाट प्रखंड स्थित भूसरा गांव आज सुजनी कला का प्रमुख केंद्र बन चुका है. यह गांव जिले का पहला ऐसा स्थान है, जहां करीब एक हजार ग्रामीण महिलाएं सुजनी कला से आत्मनिर्भर बन रही हैं. सुई-धागे के जरिए बनने वाली इस कला ने महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण की राह दिखाई है. यहां की महिलाएं सुजनी कला से सजी रजाई, साड़ी, कुर्ता, बेडशीट और अन्य कपड़ों पर अपनी कला का जादू बिखेरती हैं. इनकी इस कला को देश ही नहीं, विदेशों में भी पहचान मिली है.

सुजनी कला से आत्मनिर्भरता और रोजगार का सृजन

सुजनी फाउंडेशन, जीविका और अन्य संस्थाओं के सहयोग से महिलाओं को नियमित रूप से काम मिल रहा है. एक बेडशीट पर सुजनी कला बनाने के लिए 10,000 रुपये तक का मेहनताना मिलता है. बीते वर्ष यहां की महिलाओं ने एक करोड़ रुपये तक की कमाई की. महिलाओं द्वारा बनाए गए उत्पादों की बिक्री न केवल देशभर में हो रही है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इनकी मांग बढ़ रही है.

पद्मश्री निर्मला देवी सुजनी कला की पहचान

सुजनी कला में अग्रणी पद्मश्री निर्मला देवी ने 39 वर्षों तक इस कला को सींचा है. उनकी मेहनत और समर्पण ने भूसरा गांव को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई. उन्होंने इस कला को नई पीढ़ी की महिलाओं तक पहुंचाया, जिससे कई महिलाएं इस क्षेत्र में प्रशिक्षित होकर आत्मनिर्भर बनीं.

दादी-नानी की परंपरा से बना रोजगार का साधन

पहले इस कला का उपयोग पुराने कपड़ों पर सिलाई छुपाने या फूल बनाने तक सीमित था, लेकिन अब इस कला ने एक नई ऊंचाई हासिल कर ली है. इसे जीआई टैग भी मिल चुका है. महिलाओं ने सुजनी कला की छाप रजाई, खादी, सिल्क साड़ी, दुपट्टा, झोला और अन्य वस्त्रों पर छोड़ते हुए भूसरा गांव को पहचान दिलाई है.

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ग्रामीण महिलाएं सशक्त और प्रेरणादायक

गांव की महिलाएं न केवल इस कला से आत्मनिर्भर हो रही हैं, बल्कि अन्य महिलाओं को प्रशिक्षित करके रोजगार के अवसर भी प्रदान कर रही हैं. सुजनी कला अब सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि महिलाओं के लिए आर्थिक सशक्तिकरण का जरिया बन चुकी है.

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