38 करोड़ रुपये खर्च के बाद भी बागमती की नहीं बदली धारा, मचा रही तबाही
38 करोड़ रुपये खर्च के बाद भी बागमती की नहीं बदली धारा, मचा रही तबाही
– 03 साल में मुख्यधारा से पानी बहाव के लिए जल संसाधन विभाग खर्च कर चुका है 38 करोड़ रुपये, अब विधानसभा में विधायक उठायेंगे आवाज-वर्ष 2019 से 2021 तक में तीन बार में खर्च हुई है राशि, जिले के औराई, कटरा व गायघाट से होकर बहती है बागमती नदी मुजफ्फरपुर. जिले के उत्तरी पूर्वी औराई, कटरा, गायघाट क्षेत्र से बहने वाली बागमती नदी बरसात से पहले ही तबाही मचानी शुरू कर दी है. नदी में अचानक पानी बढ़ने से इससे सटे कई गांवों में बाढ़ का पानी प्रवेश कर गया है. यही नहीं, नदी किनारे के गांवों को जोड़ने के लिए स्थानीय जनप्रतिनिधि व पब्लिक की तरफ से बांस के चचरी का जो पुल बनाया गया था. इसमें से कई पुल पानी के तेज बहाव में बह गया है. ऐसे में अब चार साल पहले बागमती नदी से सटे गांवों को बाढ़ से बचाने के लिए मुख्य धारा को फिर से चालू करने की मांग उठने लगी है. वहीं, चार साल पहले अलग-अलग तीन बार में सरकार से मिले 38 करोड़ रुपये के खर्च पर भी सवाल उठना शुरू हो गया है. औराई के विधायक रामसूरत राय ने मंत्रिमंडल निगरानी के अपर मुख्य सचिव को एक पत्र लिखा है. इसमें कहा है कि जल संसाधन विभाग बागमती प्रमंडल रुन्नीसैदपुर द्वारा बेनीपुर ग्राम के पास बागमती नदी के उपधारा को बंद कर मुख्यधारा को चालू करने के लिए वर्ष 2019 में लगभग 24 करोड़ रुपये खर्च किया गया था. लेकिन, जिस उद्देश्य से कार्य किया गया. वह घटिया निर्माण के कारण 45 दिनों के भीतर ही नदी के पानी में बह गया. अब वे इस मुद्दे को विधान सभा में उठाने की बात कह रहे हैं. बना था कॉफर डैम, 45 दिनों में ही बहा वर्ष 2019 में 24 करोड़ रुपये खर्च कर कॉफर डैम बनाया गया था, जो 45 दिनों के अंदर टूटने के कारण नदी अपने दाये तटबंध को रगड़ते हुए आज भी लगभग 19 किलोमीटर में बह रही है. इससे गांवों में निवास करने वाले एक बड़ी आबादी को हर साल नदी में पानी बढ़ने पर बाढ़ की समस्या से जूझना पड़ता है. बाद में विभाग से दूसरी बार उपधारा को बंद करने के लिए 04 करोड़ रुपये एवं तीसरी बार वर्ष 2021 में पायलट चैनल के तहत मेन नदी की उड़ाही हेतु 10 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गयी. कुल 38 करोड़ रुपये खर्च हुए, लेकिन इसका फायदा पब्लिक को शून्य मात्र का मिला है. विधायक के अनुसार, राशि खर्च करने में बड़े पैमाने पर अनियमितता बरती गयी है. उड़नदस्ता टीम ने जांच की. गड़बड़ी पकड़ी गयी, लेकिन बाद में मामले की लीपापोती कर विभाग सुस्त पड़ गया. इन चार कारणों से कॉफर डैम नहीं कर सका काम – कॉफर डैम का डिजाइन जो बनाया गया था. वह ही गलत था. – कॉफर डैम की ऊंचाई एनएसएल तक नहीं रखा गया. इस कारण मुख्य धारा की उड़ाही के बाद भी पानी बढ़ने पर कॉफर डैम को तोड़ते हुए उपधारा में बहाव शुरू हो गया. – मुख्य धारा की उड़ाही के बाद निकली मिट्टी को किनारे पर ही रखा गया था, जिससे पहली बरसात में ही दोबारा मिट्टी नदी के अंदर भर गया. – योजना कार्य में प्रयुक्त बालू से भरी बोरियों को 50 किलोग्राम में रखा जाना था, जो नहीं रखा गया. मानक के विपरीत काम होने से योजना अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सका.
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