अगले सत्र से डिग्री के लिए अलग से नहीं करना होगा आवेदन
सुविधा के लिए विवि का प्रस्ताव तैयार
मुजफ्फरपुर. बीआरएबीयू में अगले सत्र से स्नातक, पीजी, वोकेशनल, बीएड, लॉ समेत अन्य सभी ट्रेडिशनल, प्रोफेशनल व वोकेशनल कोर्स में नामांकित छात्र-छात्राओं को डिग्री के लिए अलग से आवेदन नहीं करना होगा. न आवेदन के बाद उसकी पावती लेकर कॉलेज से विवि तक का चक्कर काटना होगा. फाइनल परीक्षा का फॉर्म भरते समय ही डिग्री का शुल्क छात्र-छात्राओं से ले लिया जाएगा. इसके बाद परिणाम जारी होते ही पहले प्रोविजनल डिजीलॉकर पर जारी किया जाएगा. साथ ही डीम्ड डेट मिलते ही डिग्री की सॉफ्ट कॉपी डिजीलॉकर पर भेज दी जाएगी. इसके बाद कॉलेज को डिग्री की हार्ड कॉपी भेज दी जाएगी. विद्यार्थी वहां से अपना मूल प्रमाणपत्र प्राप्त कर सकेंगे. छात्र-छात्राओं की परेशानी को देखते हुए विवि ने इसका प्रस्ताव तैयार कर लिया है. परीक्षा बोर्ड की अगली बैठक में इस प्रस्ताव को रखा जाएगा. वहां से स्वीकृति मिलते ही अगले सत्र से छात्रों को इसका लाभ मिलने लगेगा. तीन सत्र का प्रोविजनल किया पोर्टल पर अपलोड: विवि ने पहली बार स्नातक के तीन सत्र के विद्यार्थियों का प्रोविजनल डिजीलॉकर पोर्टल पर अपलोड कर दिया है. छात्र-छात्राएं अपनी आइडी बनाकर अपना प्रोविजनल ऑनलाइन देख व डाउनलोड कर सकते हैं. साथ ही उसका हार्ड कॉपी भी कॉलेजों को भेजी गयी है. स्नातक सत्र 2018-21, 2019-22 व सत्र 2020-23 के स्टूडेंट्स के लिए प्रोविजनल अपलोड किया गया है. पुराने छात्रों का डाटा अपलोड करने में परेशानी : विवि ने कहा कि 2018 से पूर्व के छात्रों का प्रोविजनल पोर्टल पर अपलोड करने में परेशानी हो रही है. पोर्टल पर एक साथ उस सत्र के सभी स्टूडेंट्स का डाटा अपलोड करना है, जबकि काफी स्टूडेंट्स अपना प्रमाणपत्र ले जा चुके हैं. ऐसे में फिर से उसी प्रमाणपत्र को अपलोड करना मुश्किल है. साथ ही उनका डाटा भी ऑफलाइन मोड में है. 2016 रेगुलेशन से पीएचडी की थीसिस भी अपलोड : विवि ने 2016 रेगुलेशन से पीएचडी करने वाले अभ्यर्थियों की थीसिस भी शोधगंगा पर अपलोड करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. करीब चार सौ अभ्यर्थियों की पीएचडी इस रेगुलेशन से हुई है. इनकी थीसिस को स्कैन कर उसकी सॉफ्ट कॉपी तैयार की गयी है. इसके बाद इसे शोधगंगा पर अपलोड किया जाएगा. पूर्व में विवि ने शोधगंगा पर 9675 अभ्यर्थियों की थीसिस अपलोड की थी. इन थीसिस के अपलोड होने के बाद शोध में दोहराव की संभावना कम होगी. वहीं मिलते-जुलते टॉपिक पर शोध के क्रम में डाटा का उपयोग दूसरे शोधार्थी भी कर पाएंगे.
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