World Literacy Day मुजफ्फरपुर. साक्षरता सिर्फ किताबी शिक्षा नहीं है, बल्कि यह लोगों में उनके अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूकता पैदा करता है, जो आगे चलकर सामाजिक विकास का आधार बनता है. एक समय था जब साक्षर और शिक्षित होने के मामले में मुजफ्फरपुर काफी पीछे था. महिलाओं की शिक्षा तो दूर की बात थी. बेटियों को घर से निकलने की अनुमति नहीं थी. परिवार और समाज की रूढ़िवादी विचारधारा के कारण बहुत कम बेटियां उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सफल रही, लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है. बेटियां अब शिक्षा पाकर न केवल अपने परिवार का, बल्कि समाज की तस्वीर बदल रही है. आंकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में बेटियों के स्कूल जाने का प्रतिशत बढ़ गया है और बेटियां शिक्षित होने लगी हैं तो बाल विवाह में भी काफी कमी आयी है. जिले में साक्षरता अभियान चला कर कई एनजीओ बेटियों को आत्म निर्भर बनाने में ुटी हुई हैं. बेटियों में बढ़ते शिक्षा के आयाम पर पढ़िए रिपोर्ट –
जिले में बढ़ रहा साक्षरता दर का ग्राफ
जिले में साक्षरता दर का ग्राफ अब बढ़ रहा है. कोरोना के कारण दो साल तक साक्षरता अभियान प्रभावित रहा है, लेकिन अब ग्रामीण स्तर पर साक्षरता कैंप का आयोजन किया जा रहा है. फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार जिले में 63 प्रतिशत महिलाएं और 72 प्रतिशत पुरुष साक्षर थे.अब टोला स्तर पर कैंप लगा कर साक्षर करने के अभियान से साक्षरता दर को गति मिल रही है. टोला सेवक और तालिमी मरकज निरक्षर पुरुषों और महिलाओं को साक्षर कर रही हैं़ केंद्र पर महिलाओं व पुरुषों को बुलाकर उन्हें अक्षर ज्ञान कराया जा रहा है़ साक्षरता अभियान के लिए बने केंद्रों पर पढ़ने आने वाली महिलाओं व पुरुषों के लिए कॉपी व पेंसिल भी दिये जा रहे हैं. साक्षर होने में महिलाएं अधिक अग्रसर हैं, इसमें जीविका का भी सहयोग मिल रहा है़.
बुनियादी शिक्षा से बढ़ेगी साक्षरता दर
नयी शिक्षा नीति के तहत देश में बुनियादी शिक्षा शुरू हो गयी है. शिक्षा विभाग ने पढ़ना-लिखना अभियान शुरू किया है. इसमें 2025 तक सभी असाक्षर वयस्कों को इस योजना से जोड़ कर साक्षर बनाने का प्रयास किया जा रहा है, इसमें निरक्षर लोगों को बुनियादी शिक्षा दी जा रही है़ जिससे वे समाचार पत्र का शीर्षक पढ़ने, यातायात चिह्न समझने, साधारण गणना और दो अंकों का जोड़-घटाव, गुणा-भाग करना समझ जाएं. 15 वर्ष या उससे अधिक उम्र, असाक्षर महिला, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति, अल्पसंख्यक व वंचित कमजोर तबके के लोगों को इस अभियान से जोड़ने की पहल की जा रही है. असाक्षरों की पहचान एवं उन्हें बुनियादी साक्षरता प्रदान करने के कार्य में पंचायती राज व्यवस्था, ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, जिला परिषद, प्रखंड स्तरीय समिति का सहयोग लिया जाएगा.
लड़कियों के स्कूल जाने का प्रतिशत भी सुधरा
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि बिहार के प्रत्येक जिले में यह बदलाव हुआ है. महिलाओं में साक्षरता दर बढ़ी है. पिछले पांच वर्षों में छह वर्ष से अधिक उम्र की लड़कियों में स्कूल जाने का प्रतिशत 7.3 फीसदी बढ़ा है. अब 65.1 फीसदी लड़कियां स्कूल जा रही हैं. वहीं 10 वर्ष से अधिक उम्र की लड़कियाें में भी 10.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. जिले की 33.8 फीसदी लड़कियां मध्य विद्यालय में शिक्षा ले रही हैं. लड़कियों के शैक्षणिक और सामाजिक स्तर में हुए बदलाव में राज्य सरकार की कई योजनाओं की भूमिका रही है. साइकिल योजना और छात्रवृत्ति सहित कई लाभ लड़कियों को दिये जा रहे हैं.
बाल-विवाह में पांच फीसदी की आयी कमी
मुजफ्फरपुर में बाल विवाह में पांच फीसदी की कमी आयी है. 2015 तक जिले में 36.5 फीसदी लड़कियों की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में हो जाती थी, जो अब घट कर 23.6 फीसदी तक हो गयी है. फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार बाल विवाह में कमी आयी है. साथ ही मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता का पालन करने में लड़कियां काफी जागरूक हुई हैं. पहले 34.2 फीसदी लड़कियां ही स्वच्छता का मानक अपनाती थीं. अब 67.8 फीसदी लड़कियां स्वच्छता का मानक पूरा कर रही हैं.
ढाई लाख महिलाओं ने सीखा हस्ताक्षर करना
पिछले दो वर्षों में ढाई लाख महिलाओं ने हस्ताक्षर करना सीखा है. जीविका नेमहिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने के साथ उन्हें साक्षर बनाने की पहल शुरू की है. जिले में जीविका के 52 हजार समूह हैं, जिसमें छह लाख पांच हजार महिलाएं जुड़ी हुई हैं. इनमें से करीब ढाई लाख महिलाओं को हस्ताक्षर करना सिखाया गया है. इसके साथ ही उन्हें साक्षर बनाने की पहल भी जारी है. जीविका के संचार प्रबंधक राजीव रंजन ने बताया कि जिले में जीविका से जुड़ी दीदियां अब पढ़ना-लिखना सीख रही हैं, इससे समाज में एक बदलाव आ रहा है.
साक्षर महिलाएं कर रही आर्थिक उन्नति
साक्षर महिलाएं समाज की तस्वीर बदल रही हैं. ये महिलाएं अब विभिन्न प्रकार के स्वरोजगार से जुड़कर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर रही हैं. बियाडा का बैग उद्योग में काम करने वाली महिलाएं हों या छोटे स्तर पर दुकान चला कर जीविकोपार्जन करने वाली महिलाएं, सभी साक्षर होकर अपने रोजमर्रा के कार्य कर रही हैं. साक्षर होने के कारण अब उन्हें ग्राहकों के साथ हिसाब करने में किसी दूसरे का सहारा नहीं लेना पड़् रहा है.
लड़कियों को घर से बाहर जाने की नहीं थी अनुमति
सत्तर के दशक तक लड़कियों को घर के चौखट से बाहर जाने की अनुमति नहीं थी़ ऐसे में शिक्षा प्राप्त करना कितना मुश्किल रहा होगा, यह समझा जा सकता है. पहले ढाई-तीन किमी दूर हाई स्कूल हुआ करता था. अगर कोई अभिभावक चाहते भी कि उनकी बेटियां पढ़ाई करे तो गांव के लोग सहमत नहीं होते थे, उनका मानना था कि इससे गांव की प्रतिष्ठा चली जाएगी. ऐसे मुश्किल दौर में मेरी पढ़ाई हुई. उस दौरान हाई स्कूल और उच्च शिक्षा में लउ़कियां काफी कम हुआ करती थी, लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है. लड़कियां जीवन के हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा दिखा रही है. हालांकि अभी भी लड़कियों का अनुपात लड़कों से कम है. सरकार और समाज को इस कमी को पाटने की जरूरत है.
डॉ तारण राय, पूर्व विभागाध्यक्ष, भौतिकी, बिहार विश्वविद्यालय
अभिभावकों को मंजूर नहीं था लड़कियों को पढ़ाना
साठ के दशक में लड़कियों को उच्च शिक्षा की अनुमति नहीं थी. मेरे नाना डिप्टी कलेक्टर थे, भतीजा आइपीएस था, मैं आइएएस बनना चाहती थी, लेकिन पिता नहीं चाहते थे कि उच्च शिक्षा ग्रहण करूं. समाज बहुत रूढ़िवादी था. ऐसे समय में पढ़ाई के लिए मुझे सघर्ष करना पड़ा. एमएससी, एमएड की डिक्री शादी से पहले ली और पीएचडी की उपाधि शादी के बाद. पहले समाज में लड़कियों के प्रति उदार मानसिकता नहीं थी, लेकिन अब समय बदल चुका है. लड़कियों को आगे बढ़ाने में सरकार भी प्रयास कर रही है. लोगों की सोच में भी बदलाव आया है. लड़कियां अब आगे बढ़ रही हैं तो उन्हें एक बात ख्याल रखना होगा कि वह कभी अपनी मर्यादा न तोड़ें
डॉ पुष्पा प्रसाद, पूर्व प्राचार्या, जिला स्कूल
अप्पन पाठशाला में शिक्षित हो रहे स्लम एरिया के बच्चे
स्लम बस्ती के बच्चों को शिक्षित करने के लिए 2017 में मुक्तिधाम में अप्पन पाठशाला की शुरुआत की गयी. पाठशाला के संस्थापक सुमित कुमार ने इस विद्यालय की स्थापना की. पहले इस पाठशाला में आठ दस बच्चे ही पढ़ने आते थे. अब 130 बच्चे यहां पढ़ाई कर रहे हैं. शुरुआत में बच्चों को लाने के लिए इन्हें काफी परेशानी झेलनी पड़ी. अभिभावकों को समझाना पड़ा. चार सालों में अब यहां की स्थिति बदल गयी है. यहां आकर बच्चे नियमित पढ़ाई कर रहे हैं. इन सभी बच्चों का नाम सरकारी स्कूल में लिखाया गया है. स्कूल से जब छुट्टी होती है तो बच्चे इस पाठशाला में आकर पढ़ते हैं. सुमित ने बताया कि यहां बच्चों की पढ़ाई निशुल्क करायी जाती है और बच्चों को ड्रेस, कॉपी, पेंसिल रबर सहित अन्य पठन-पाठन सामग्री मुफ्त दी जाती है.
वंचित समुदाय के बच्चों को पढ़ा रहे पुलिस अधिकारी
वंचित समुदाय के बच्चों को शिक्षित करने के लिए कन्हौली नाका परिसर में पाठशाला की शुरुआत की गयी है. मानवाधिकार आयोग के सलाहकार समिति की सदस्य नसीमा खातून और सिटी एसपी अवधेश सरोज दीक्षित की पहल से यहां बच्चों की पढ़ाई शुरू की गयी है. इस कार्य में सिटी एसपी भानु प्रताप सिंह और उनकी पत्नी पूजा सिंह का सहयोग रहा. यहां कन्हौली नाका प्रभारी नागेंद्र प्रसाद, रंगकर्मी स्वाधीन दास, धीरज श्रीवास्तव, हेमंत सिंह, सुमित कुमार, जीतलेश कुमार, राकेश कुमार, कृष्ण कुमार और मो आरिफ बच्चों को पढ़ाते हैं.
साक्षरता दर
पुरुष – 73
महिलाएं – 63
लड़कियों में स्कूल जाने का बढ़ा प्रतिशत – 7.3
बाल विवाह में कमी का प्रतिशत – 12.9
स्वच्छता का पालन करने वाली लड़कियों का बढ़ा प्रतिशत – 33