World Theatre Day 2024 मुजफ्फरपुर. रंगमंच के क्षेत्र में उत्तर बिहार हमेशा से समृद्ध रहा है. यहां के कई कलाकारों ने रंगमंच को अपना करियर बनाया तो कई ने हिंदी फिल्मों से अपने नये सफर की शुरुआत की. रंगमंच ही पहली पाठशाला थी, जहां से कलाकारों ने अपने अभिनय को निखारा.
करीब तीन दशक पहले जब स्मार्ट मोबाइल का जमाना नहीं था और मनोरंजन का माध्यम फिल्म और थियेटर हुआ करते थे. उस अंतराल में भी यहां के कई कलाकारों ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा दिखायी. दरभंगा के रहने वाले पद्मश्री रामगोपाल बजाज बतौर अभिनेता और एनएसडी के निदेशक के तौर पर रंगमंच को नयी दिशा दी. इसके बाद फिल्मकार प्रकाश झा, मनोज वाजपेयी ने यहां के रंगकर्मियों को आगे बढ़ने का हौसला दिया. इन दिनों चंदन रॉय, रंजन उमा कृष्ण, नंदन सिंह, रामचंद्र सिंह और प्रियंका सिंह सहित अन्य रंगकर्मी रंगमंच को समृद्ध कर रहे हैं.
एनएसडी रिपेटरी चीफ बने राजेश सिंह
पं.चंपारण के रामनगर के रहने वाले राजेश सिंह रंगमंच के क्षेत्र का एक जाना-पहचाना नाम है. कठिन मेहनत और लंबे संघर्ष के बाद राजेश सिंह ने खुद को स्थापित किया है. स्कूली शिक्षा के बाद राजेश सिंह ने दिल्ली के श्रीराम सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स से पढ़ाई की. राजेश सिंह ने एनएसडी में पढ़ाई की. फिर फिर लंदन एकेडमिक एंड म्यूजिक एंड ड्रामेटिक आर्ट से भी रंगमंच के विभिन्न पहलुओं का प्रशिक्षण लिया. फिलहाल ये नेशनल म्यूजिक एंड ड्रामा के रिपेटरी चीफ हैं. इनके निर्देशन में तैयार नाटक की प्रस्तुति पूरे देश भर में हो रही है. बिहार की नौटंकी शैली पर आधारित इनका नाटक बाबूजी इन दिनों काफी चर्चित हो रहा है.
मुजफ्फरपुर में रंगमंच को समृद्ध कर रहे सुनील
युवा रंगकर्मी और आकृति रंग संस्थान के निदेशक सुनील फेकानिया शहर के रंगमंच को समृद्ध कर रहे हैं. पिछले दो वर्षों से शहर में पांच दिवसीय नाटक महोत्सव का आयोजन कर सुनील ने शहर के रंगकर्मियों का आगे बढ़ने का उत्साह बढ़ाया है. सुनील पिछले 15 वर्षों से रंगमंच में सक्रिय हैं और देश के विभिन्न राज्यों में अपनी टीम के साथ नाटकों की प्रस्तुति करते हैं. इन्हें संस्कृति मंत्रालय से स्कॉलरशिप भी मिला है और इनका अपना रिपेटरी ग्रुप भी है. सुनील फिलहाल संगीत नाटक अकादमी के पूर्व उप निदेशक डॉ ओम प्रकाश भारती के निर्देशन में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे हैं.
समाज को बदलने का माध्यम रंगमंच
बिहार विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ रवींद्र कुमार रवि ने 1977 में रंगमंच के क्षेत्र में कदम रखा था. उनका यह सफर आज भी जारी है. डॉ रवि ने मुंशी प्रेमचंद की कहानियों पर आधारित नाटक करना शुरू किया. छात्र जीवन से शुरू रहा यह सफर प्रोफेसर बनने तक भी जारी रहा. मशीन, पूस की रात, सवा सेर गेहूं और कफन नाटक के जरिये इन्होंने समाज में एकता व आपसी सद्भाव का संदेश दिया. डॉ रवि कहते हैं कि नाटक सिर्फ शौक पूरा करने के लिये नहीं, समाज को जगाने के लिये किया जाता है. नाटक के जरिये हमारी टीम लोगों को अन्याय और अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने का हौसला देती थी.