कुमार गौरव / मुजफ्फरपुर: जिस तरह अस्पताल में लोगों के बीमारियों को सिटी स्कैन कर फूल बॉडी चेकअप होता है, ठीक इसी प्रकार अब यहां भी वाहनों के फिटनेस की जांच मैनुअल तरीके की जगह ऑटोमेटिक मशीन से होगी. सिटी स्कैन में गाड़ी के ध्वनि, धुआं का प्रदूषण, जर्जर बॉडी सहित एक-एक चीज की बारीकी से जांच होगी. यह सेंटर सभी जिलों में खोले जाने है. इसके पीछे विभाग का मानना है कि इससे काफी हद तक सड़क दुर्घटना पर अंकुश लगेगा, साथ ही साथ पर्यावरण की स्वच्छता को बढ़ावा मिलेगा.
इसको लेकर एसटीसी पटना के कार्यालय में दो एजेंसी की ओर से आवेदन दिया गया है. आवेदन मिलने के बाद एक माह के भीतर विशेष टीम गठित कर आवेदन की जांच कर भौतिक निरीक्षण किया जायेगा. इसके बाद योग्य आवेदकों का चयन किया जायेगा. यह नया नियम आने वाले नये वित्तीय वर्ष से लागू करना है, इसको लेकर विभाग समय से पहले इन सेंटरों की स्थापना को लेकर कार्रवाई शुरू कर दी है.
विभाग के ऑनलाइन रिकॉर्ड के अनुसार करीब 9.05 लाख कुल वाहनों का निबंधन जिले में है. इसमें सात लाख दो पहिया और 76516 निजी चौपहिया वाहन. इसके अतिरिक्त 1.23 लाख के करीब छोटे बड़े कॉमर्शियल वाहन है. इन सभी के फिटनेस की जांच अब इसी सेंटर से आने वाले वित्तीय साल से शुरू होगी. डीटीओ सुशील कुमार ने बताया कि इसको लेकर अभी मुख्यालय में आवेदन की प्रक्रिया चालू है. विभाग से इस संबंध में जारी निर्देश के बाद इसमें आगे की कार्रवाई की जायेगी.
वर्तमान में वाहनों के फिटनेस की जांच एमवीआइ द्वारा मैनुअली तरीके से की जाती है. इस जांच के दौरान मैनुअली ब्रेक, कलच, स्पीडोमीटर, विंडो ग्लास, हॉर्न, लाईट्स, वाइपर आदि को देखकर फिटनेस प्रमाण पत्र जारी किया जाता है. जो बहुत वैज्ञानिक नहीं है, लेकिन ऑटोमेटिक टेस्टिंग स्टेशन बनने के बाद इन वाहनों की ऑटोमेटिक जांच होगी. एमवीआइ रंजीत कुमार ने बताया कि अगले वित्तीय वर्ष से इसे लागू करने की योजना है, बड़े बड़े शहरों में इसकी शुरुआत हो चुकी है. सभी गाड़ियों की एक निश्चित लाइफ होती है. यह सेंटर एमवीआइ के अधीन रहेगा, ताकि यह पता चले कि सेंटर पर सही से जांच चल रही है. सारा डाटा ऑनलाइन होगा.
इस सेंटर के चालू होने के बाद कई वाहन मालिक पुराने वाहनों का चालान कटाकर दोबारा रजिस्ट्रेशन करा लेते है. वहीं कई बार दुर्घटना ग्रस्त गाड़ी को बनवाकर फिर से विभाग का शुल्क जमा कर फिटनेस प्रमाण पत्र ले लेते है. लेकिन इस सेंटर के चालू होने के बाद इस पर पूरी तरह से रोक लग जायेगी. इसके बाद काफी पुराने और जर्जर वाहन सड़क से हटेंगे, इससे वाहनों की संख्या में कमी आयेगी. सरकार की ओर से 15 साल पुराने गाड़ियों के परिचालन पर रोक व रद्दीकरण की घोषणा की गयी है. इसे लागू करने में भी आसानी होगी. जो निजी गाड़ियां 15 साल बाद दोबारा रजिस्ट्रेशन के लिए आती हैं, उसके भी फिटनेस की जांच यही होगी. फिटनेस नहीं होने पर गाड़ी पर 5000 रुपये जुर्माना का नियम है, इसके अलावा प्रदूषण प्रमाण पत्र फेल होने पर 10000 रुपये इसी तरह अन्य पेपर की जांच कर जुर्माना किया जायेगा.
यह सेंटर काफी बड़ा होगा, जिसमें गाड़ी के मॉडल के डीजल व पेट्रोल इंजन अनुसार छोटे तिपहिया, चौपहिया, बड़े-बड़े वाहनों की जांच की जायेगी. साथ ही इलेक्ट्रिक वाहनों के फिटनेस की भी जांच होगी. इसके साथ ही जांच रिपोर्ट की डिजिटल रिकॉर्डिंग होगी. पहले गाड़ी के प्रदूषण जांच होगी तब प्रदूषण प्रमाण पत्र मिलेगा. फिर इंजन के आवाज की जांच होगी, इसके बाद ध्वनि प्रदूषण का प्रमाण पत्र मिलेगा. तब जाकर बॉडी, टायर आदि की जांच की जायेगी. अलग-अलग पैरामीटर पर ब्रेक का टेस्ट, स्पीड लिमिट, हेडलाइट आदि की अलग अलग तरीके से जांच होगी. यही कारण है कि एक गाड़ी की जांच में 30 से 50 मिनट तक का समय लगेगा. इस सेंटर के शुरू होने के बाद फिटनेस टेस्ट आसान नहीं रहेगा.
क्योंकि गाड़ियों का टेस्ट अलग-अलग मशीनों से होगी, पूरी फिटनेस होने के बाद ही उस गाड़ी को फिटनेस दिया जायेगा. यह सेंटर सीसीटीवी से लैश होगा, इंट्री प्वाइंट से लेकर एक एक जांच पर नजर रखी जायेगी कि मानक के अनुसार जांच हो रहा है कि नहीं. इस फिटनेस सेंटर के केवल मशिनीरी को लगाने में करीब एक करोड़ रुपये से अधिक का खर्च का आयेगा, क्योंकि इसकी मशीन बहुत ही हाइटेक होगी. इसके अलावा भवन निर्माण का खर्च अलग होगा.