Nikay Chunav: याचिकाकर्ताओं के तर्कों ने फैसले को दिया आधार, जानें सुप्रीम कोर्ट का ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला

Bihar Nikay Chunav: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पिछड़ी जातियों के राजनीतिक पिछड़ेपन को खत्म करने के लिए आयोग बनना चाहिए. यह संबंधित डेटा कलेक्ट करेगा और फिर उसके आधार पर आरक्षण लागू करेगा.

By Prabhat Khabar News Desk | October 7, 2022 12:11 PM

बिहार नगर निकाय चुनाव को लेकर दायर पिटीशन मामले में मुख्य याचिकाकर्ता सुनील कुमार के अलावा 19 अन्य याचिकाकर्ता थे. इसमें कुल 15 मामलों की सुनवाई एक साथ की गयी. इस मामले में फैसले का आधार सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ द्वारा के कृष्णमूर्ति के मामले में तय किये गये ट्रिपल टेस्ट को बनाया गया है. ट्रिपल टेस्ट के अंतर्गत स्थानीय स्वशासी निकायों के चुनावों को संवैधानिक होने के लिए तीन टेस्ट पर खरा उतरना होता है.

जानिए क्या है सुप्रीम कोर्ट का ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला

  • क्या स्थानीय निकाय में पिछड़ापन को किसी कमीशन द्वारा प्रयोग सिद्ध विधि द्वारा प्रमाणितकिया गया है?

  • क्या आरक्षण पिछड़ापन जांचने के लिए बने कमीशन द्वारा किया गया अध्ययन तय मानकों व प्रतिशतपर आधारित है?

  • क्या 50 प्रतिशत आरक्षण का ध्यान रखा गया है?

क्या कहा है सुप्रीम कोर्ट ने इस पर

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पिछड़ी जातियों के राजनीतिक पिछड़ेपन को खत्म करने के लिए आयोग बनना चाहिए. यह संबंधित डेटा कलेक्ट करेगा और फिर उसके आधार पर आरक्षण लागू करेगा. 2010 के इस जजमेंट की 2021 में महाराष्ट्र के किशन राव गावली केस में ट्रिपल टेस्ट के रूप में विस्तृत व्याख्या की गयी थी. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि जब भी कोई राज्य सरकार निकाय चुनाव करायेगी, तो पिछड़ों को आरक्षण देने के लिए उनका आकलन ट्रिपल टेस्ट के आधार पर ही होगा. कमीशन डेटा के आधार पर अनुशंसित करेगा कि कौन जाति पिछड़ी है?

Also Read: बिहार नगर निकाय चुनाव में पिछड़ों के लिए आरक्षण को लेकर लंबी चलेगी लड़ाई, जानें अब तक क्या रहा गतिरोध
सुप्रीम कोर्ट का यह है आदेश…

सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर, 2021 में यह स्पष्ट किया था कि स्थानीय निकायों में अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए आरक्षण की अनुमति तब तक नहीं दी जा सकती है, जब तक कि सरकार वर 2010 वर्ष में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित तीन जांच अर्हताओं को पूरा नहीं कर लेती है. प्रावधानों के अनुसार अन्य पिछड़ा वर्गों के पिछड़ेपन पर आंकड़ा जुटाने के लिए एक विशेष आयोग का गठन करने व आयोग की अनुशंसा के आलोक में प्रत्येक स्थानीय निकाय में आरक्षण का अनुपात निर्धारित करने की जरूरत है.

इस बात को भी सुनिश्चित करने की जरूरत है कि एससी, एसटी, ओबीसी के लिए आरक्षण की सीमा कुल उपलब्ध सीटों के 50% की सीमा से अधिक नहीं हो. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्रावधानों के अनुसार स्थानीय निकायों में अति पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण की अनुमति नहीं दी जा सकती, जब तक सरकार 2010 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित तीन जांच अर्हताएं नहीं पूरी कर लेती.

Next Article

Exit mobile version