एमसीए कर मुर्गीपालन को बनाया जीविका का साधन

दर्जनों ग्रामीण युवाओं को दे रहे मुर्गीपालन का मुफ्त प्रशिक्षण बिहारशरीफ. यदि आप में कुछ कर गुजरने का संकल्प है तो आप मुर्गीपालन कर भी लाखों का मुनाफा कमा सकते हैं. जिसे बहुत कम लागत से शुरू करके लाखों– रुपये में लाभ कमाया जा सकता है. मुर्गीपालन एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें शून्य से शुरू […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 17, 2017 1:37 PM
दर्जनों ग्रामीण युवाओं को दे रहे मुर्गीपालन का मुफ्त प्रशिक्षण
बिहारशरीफ. यदि आप में कुछ कर गुजरने का संकल्प है तो आप मुर्गीपालन कर भी लाखों का मुनाफा कमा सकते हैं. जिसे बहुत कम लागत से शुरू करके लाखों– रुपये में लाभ कमाया जा सकता है. मुर्गीपालन एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें शून्य से शुरू कर कंपनी का रूप दे सकते हैं.
इसका एक उदाहरण रौशन कुमार हैं. थरथरी प्रखंड की नारायणपुर पंचायत अंतर्गत बांसडीह गांव निवासी रौशन कुमार ने वर्ष 2014 में एमसीए कर दिल्ली में कंप्यूटर सॉफटवेयर डेवलमेंट कंपनी में एक लाख 25 हजार सालाना के पैकेज की जॉब ज्वाइन की, लेकिन छह माह नौकरी करने के बाद खुद का व्यवसाय करने की सोच लेकर घर वापस आ गये और कंप्यूटर संबंधित दुकान खोली. काम, पूंजी और मेहनत के हिसाब से लाभ कम होता देख नवंबर 2016 में 20 हजार पूंजी से अपने गांव बांसडीह में ही मुर्गीपालन का काम शुरू कर दिया. जिसमें वर्तमान में 10 से 15 हजार रुपये तक मुनाफा कमा रहे हैं.
22 से 25 दिनों में चूजा एक किलो का होता है –: मुर्गीपालक रौशन कुमार बताते हैं कि 50 से 100 ग्राम का चूजा 22 से 25 दिनों में तैयार होकर एक किलो 200 ग्राम का मुर्गा तैयार हो जाता है. जिसे चंडी व परबलपुर प्रखंड मुख्यालय बाजार में थोक विक्रेताओं को सप्लाई करते हैं. थोक विक्रेता से प्रखंड मुख्यालय से पंचायत व ग्रामीण क्षेत्र के मुर्गा विक्रेता यहां से मुर्गा ले जाते है.
दर्जनों ग्रामीण युवक ले रहे प्रशिक्षण:– मुर्गीपालन के दौरान चूजा को दवा, दाना और पानी देने के साथ अन्य गतिविधियों को जानकारी लेने लिए ग्रामीण युवक रौशन कुमार से प्रशिक्षण ले रहे हैं. श्री कुमार बताते हैं कि प्रशिक्षण के दौरान ग्रामीण युवक को पॉकेट खर्च के रूप में दो से तीन हजार दिये जाते हैं.
साथ ही चूजा की बीमारी और तैयार मुर्गा को थोक विक्रेताओं तक पहुंचाने की गतिविधियों से अवगत कराया जाता है. श्री कुमार बताते हैं कि मुर्गीपालन कार्य में सहयोग करने के रूप में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले युवक मिल जाते हैं, जो दो से तीन माह तक मुर्गी से संबंधित सहयोग करते हैं. उनसे प्रशिक्षण प्राप्त कई युवक अपना खुद का मुर्गीपालन काम शुरू भी कर दिया है.
मुर्गी का विष्ठा उन्नत उर्वरक: मुर्गी का मल (विष्ठा)फसल के लिए उन्नत किस्म की उर्वरक के रूप में काम करती है. जिसकी मांग ग्रामीण क्षेत्रों में काफी है. ग्रामीण क्षेत्रों में मुर्गीपालन करने से लागत भी कम आती है. साथ ही मुर्गी पालन के साथ मछली पालन करने से और अधिक लाभ होता है.
लेकिन श्री कुमार बताते हैं कि पूंजी कम होने के कारण मछली पालन कार्य शुरू नहीं किया है. 40 मुर्गी का विष्ठा एक गाय के गोबर के बराबर उर्वरक का काम करती है. मुर्गीपालक रौशन कुमार बताते हैं कि मुर्गीपालन व्यवसाय में सरकार की ओर से आर्थिक सहायता मिलती है, लेकिन व्यवसाय को समझने और स्थानीय बाजार में मुर्गी की मांग को देखते हुए कम पूंजी से मुर्गीपालन का कार्य शुरू कर दिया. वर्तमान में पेशा लाभदायक लग रहा है. इसे विस्तार रूप देने की सोच है.

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