पत्थर के कण से बरबाद हो रही जिंदगी
।। निरंजन/विपिन सरमेरा ।। नालंदा : क्रशर मशीन पर काम करनेवाले मजदूरों की त्रासदी यही है कि उन्हें मौत को गले लगाना पड़ता है. संजय राम ने भी विगत 24 जुलाई को मौत को गले लगा लिया. वह भी औरों की तरह शेखपुरा में पत्थर उत्खनन में लगे क्रशर मशीन पर मजदूरी का काम करता […]
।। निरंजन/विपिन सरमेरा ।।
नालंदा : क्रशर मशीन पर काम करनेवाले मजदूरों की त्रासदी यही है कि उन्हें मौत को गले लगाना पड़ता है. संजय राम ने भी विगत 24 जुलाई को मौत को गले लगा लिया. वह भी औरों की तरह शेखपुरा में पत्थर उत्खनन में लगे क्रशर मशीन पर मजदूरी का काम करता था.
संजय राम सरमेरा के अकेले ऐसे मजदूर नहीं हैं, जो क्रशर मशीन पर काम करते–करते दुनिया को अलविदा कह दिया. सरमेरा बाजार में रहनेवाले ऐसे करीब 10 लोग हैं, जो शेखपुरा में क्रशर मशीन पर काम करते–करते अपनी जान गवां दी और छोड़ गये त्रासदी भरी जिंदगी जीने के लिए अपने परिवार को. आज ऐसे मजदूरों के परिवार और उनके बच्चे दूसरे के यहां मजदूरी करने को विवश हैं.
संजय राम तो अरमान लेकर निकले थे क्रशर मशीन पर मजदूरी करने को इसलिए कि उनकी बच्चियों की शादी हो जाये और बच्चे पढ़ लिख लें, लेकिन संजय राम अपनी बड़ी लड़की की शादी करने से पहले ही टीबी की बीमारी से चल बसे.
क्रशर मशीन पर काम करनेवाले मजदूरों को ऐसी ही भयंकर बीमारी होती है, जैसे संजय राम को हुआ. इस बीमारी में मजदूर तिल–तिल कर मरते हैं. क्योंकि क्रशर मशीन पर काम करनेवाले मजदूरों को टीबी से भी भयावह बीमारी जकड़ लेती है. क्रशर मशीन पर पत्थर पिसाई के दौरान उससे निकलने वाले सूक्ष्म कण मजदूरों के फेफड़े की आंतरिक सतह पर बैठ जाता है, जिससे मजदूरों को यक्ष्मा रोग से अलग हट कर भयावह रूप ले लेता है और फिर उसकी जान चली जाती है.
इसी बीमारी से सरमेरा बाजार के रामाकांत महतो, भोल साव, श्लोकी राम, गोकुल साव, कृष्ण महतो, शंकर राम आदि मजदूरों की मौत हो चुकी है, जो शेखपुरा के क्रशर मशीन पर काम करते थे. इसमें भोला साव और गोकुल साव सगे भाई थे और दोनों एक ही क्रशर मशीन पर काम करते थे.
इन मजदूरों की मौत पिछले दो साल के अंतराल में हुई है, जबकि देवनंदन पासवान, राकेश राम, राजेश राम, सीताराम, दिलीप राम सहित कई अन्य मजदूरी भी हैं, जो इस बीमारी से ग्रसित होकर घर में बिस्तर पर पड़े हुए हैं. इस बीमारी से ग्रसित देवनंदन राम कहते हैं कि वे 35 वर्ष की आयु में शेखपुरा के क्रशर मशीन पर काम करने गये थे.
दस वर्ष काम करने के बाद उन्हें यह बीमारी हो गयी और तब से वे इलाज कराते–कराते थक गये, लेकिन वे अभी भी बिस्तर पर लेटे हुए हैं. वे कहते हैं कि उन्हें क्या मालूम था कि क्रशर मशीन पर काम करने से उनकी जिंदगी इस कदर बरबाद हो जायेगी कि वे खुद अपने परिवार पर बोझ बन जायेंगे. किसी तरह से इनके घर में दो वक्त की रोटी का गुजारा हो पा रहा है. तीन छोटे–छोटे बच्चे और एक बच्ची की जिम्मेवारी भी इनकी पत्नी पर आन पड़ी है.
अंदाजा लगाया जा सकता है कि इनके घर की क्या स्थिति होगी. इसी प्रकार उन मृतक मजदूरों के परिवारों की भी हालत भी है, जिनके घर में किसी तरह चूल्हा जलता है. हर ऐसे घर में उनकी विधवा दूसरे के यहां मजदूरी कर घर चला रही है. मृतक शंकर राम की पत्नी शगुना देवी कहती है कि पारिवारिक लाभ की राशि दस हजार रुपये के अलावा कोई सहयोग आज तक उन्हें नहीं मिला.
स्वयं ही मेहनत मजदूरी कर बच्चों का पालन पोषण कर रही हूं. ऐसी ही पीड़ित मनोरमा देवी भी है, जिन्हें तीन लड़का और दो लड़की है, वे भी मजदूरी कर बच्चों को पाल रही है. वे कहती है कि किसी तरह से कर्ज उधार लेकर एक बेटी की शादी की लेकिन अब उन्हें लगता है कि दूसरी बेटी की शादी वे कैसे कर पायेगी.
विडंबना है कि क्रशर पर काम करने वाले इन मजदूरों के पीड़ित परिवारों के प्रति क्रशर मालिकों ने कभी रहमदिली नहीं दिखाई. प्रशासन भी ऐसी भयावह बीमारियों से मरनेवालों के आश्रितों को पारिवारिक लाभ देकर अपनी जिम्मेवारी निभा दी, लेकिन उनके परिवारों का क्या होगा. यह सवालिया निशान आज भी बना हुआ है.