* पान अनुसंधान केंद्र, इस्लामपुर को मिली बड़ी उपलब्धि
बिहारशरीफ (नालंदा) : पान अनुसंधान केंद्र, इस्लामपुर को पान के अनुसंधान के अलावा मक्का एवं चावल पर अनुसंधान करने की अहम जिम्मेवारी सौंपी गयी है. मॉनसून की दगाबाजी से किसानों को हो रही परेशानी को देखते हुए कौन सा मक्का का बीज स्थानीय किसानों के लिए उपयुक्त होगा, इस पर अनुसंधान करने की जिम्मेवारी सौंपी गयी है. अंतरराष्ट्रीय मक्का अनुसंधान संस्थान (सिमिट) द्वारा मक्का पर चार अनुसंधान करने का टास्क दिया गया है.
मक्का के करीब 120 वेराइटिज हैं, इनमें से कौन वेराइटिज स्थानीय लोगों के लिए उपयुक्त होगा, इस पर अनुसंधान किया जाना है. इसके अलावा बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर द्वारा मक्का के दो वेराइटिज पर अनुसंधान करने की जिम्मेवारी दी गयी है. मल्टी नेशनल कंपनियों के हाइब्रिड मक्का पर अनुसंधान किया जाना है.
बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर द्वारा आगाज किये गये शंकर मक्का का ट्रायल भी पान अनुसंधान केंद्र इस्लामपुर में किया जा रहा है. मल्टी नेशनल कंपनियों के मक्का के हाइब्रिड काफी ऊंची कीमत में किसानों को मिलते हैं. कृषि विश्वविद्यालय सबौर द्वारा पान अनुसंधान केंद्र, इस्लामपुर को यह निर्देश दिया गया है कि किस प्रकार मक्का के इन हाइब्रिड किस्मों को किसानों के बीच काफी कम कीमत पर सुलभ कराया जा सकता है.
हाइब्रिड टेस्टिंग प्रोग्राम के को–ऑर्डिनेटर सह प्रिंसिपल इंवेस्टीगेटर डॉ. एस एस मंडल के नेतृत्व में असिस्टेंट प्रिंसिपल इंवेस्टीगेटर द्वारा इस पर लगातार शोध कार्य किये जा रहे हैं. मक्का अनुसंधान के दौरान यह पता लगाना है कि मक्का की कौन सी किस्म बेबी कॉर्न, कॉर्न, ग्रेन के लिए उपयुक्त होगा. इसके अलावा यह भी अनुसंधान किया जाना है कि क्लाइमेट चेंज होने से मक्का सीओ-2 ज्यादा अवशोषित करता है. यह सीओ-2 मिट्टी में चला जाता है, जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति प्रभावित होती है.
वैज्ञानिकों को यह देखना है कि सीओ-2 (कार्बन डायऑक्साइड) ज्यादा मात्र में मिट्टी के अंदर न जाने पाये. राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान हैदराबाद द्वारा एरोविक राइस पर दो अनुसंधान करने का टास्क पान अनुसंधान केंद्र, इस्लामपुर के वैज्ञानिकों को दिया गया है. परंपरागत तरीके से धान की खेती में किसान पहले खेत की पटवन कर उसमें धान का बिचड़ा डालते हैं.
बिचड़ा तैयार हो जाने पर धान की रोपनी के लिए किसानों द्वारा कदबा (कादो) किया जाता है. इससे पानी की काफी बरबादी होती है. कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि एक किलो चावल का उत्पादन करने में तीन हजार लीटर पानी की जरूरत पड़ती है. इसमें से करीब दो हजार लीटर पानी खेत को कदबा करने में खर्च हो जाता है. एरोविक पद्धति में किसान सीधे धान का बिचड़ा खेत में लगायेंगे.
इसके लिए बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर द्वारा दो वेराइटिज बीआर 006 एवं बीआर 007 पान अनुसंधान केंद्र, इस्लामपुर के उपलब्ध कराया गया है. कृषि अनुसंधान संस्थान, पटना के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार के लीडरशिप में अनुसंधान केंद्र में कार्य किया जा रहा है. इसके अलावा बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के दो वेराइटिज आरएयू 724 एवं आरएयू 759 का ट्रायल भी चल रहा है और पान अनुसंधान केंद्र में इसका प्रत्यक्षण चल रहा है. अगले साल तक ये दोनों वेराइटिज किसानों को समर्पित कर दिया जायेगा.