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आज बहनें बांधेंगी भाइयों को राखी

बिहारशरीफ (नालंदा) : भाई–बहन के पवित्र रिश्ते का पर्व रक्षाबंधन को लेकर शहर से लेकर गांव तक विशेष उत्साह देखा जा रहा है. भाई–बहन के प्यार और विश्वास का प्रतीक रक्षाबंधन पर्व बंधा तो बेशक कच्चे धागे से है, लेकिन दोनों का विश्वास और प्यार उतना हीं मजबूत है. सावन माह की पूर्णिमा को मनाया […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 21, 2013 3:47 AM

बिहारशरीफ (नालंदा) : भाईबहन के पवित्र रिश्ते का पर्व रक्षाबंधन को लेकर शहर से लेकर गांव तक विशेष उत्साह देखा जा रहा है. भाईबहन के प्यार और विश्वास का प्रतीक रक्षाबंधन पर्व बंधा तो बेशक कच्चे धागे से है, लेकिन दोनों का विश्वास और प्यार उतना हीं मजबूत है.

सावन माह की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला रक्षाबंधन इस वर्ष दो दिन 20 एवं 21 अगस्त को मनाया जा रहा है. इसमें बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षाबंधन बांध कर उसके दीर्घायु होने की कामना करती है, जबकि भाई अपनी बहन को मुश्किल घड़ी में सुरक्षा देने का वचन देता है.

हमारे देश में रक्षाबंधन को अलगअलग नामों से जाना जाता है. कहीं इसे लुंबा राखी कहा जाता है, कहीं काजाली पूर्णिमा तो कहीं पोंगल कहा जाता है. नाम भले हीं कोई हो लेकिन राखी का यह त्योहार हर भाईबहन के लिए बहुत हीं खास तथा स्नेह भरा होता है.

रक्षाबंधन से जुड़ीं कथाएं

पंडित श्री कांत शर्मा बताते हैं कि भविष्य पुराण के अनुसार राक्षसों के आक्रमण से बचने के लिए स्वर्ग के राजा इंद्र ने बृहस्पति देव से मदद की गुहार लगायी. बृहस्पति देव ने इंद्र को सावन मास की पूर्णिमा के दिन अपनी कलाई पर मंत्रों की शक्ति वाला एक धागा बांधने के लिए कहा.

इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने एक शक्ति धागा बृहस्पति देव को बांध दिया. इस धागे की शक्ति की मदद से देवताओं ने युद्ध जीत लिया. इसी कारण इस धागे को रक्षा सूत्र कहा गया है. एक अन्य कथा के अनुसार बाली की शक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे वरदान दिया. बाली ने विष्णु भगवान से मांगा कि वे दिनरात उसकी आंखों के सामने रहें. भगवान विष्णु बाली का द्वार पाल बन कर रहने लगे.

इससे चिंतित देवी लक्ष्मी ने नारद मुनी के कहने पर साध्वी के रूप में बाली की नगरी में गयी. उन्होंने सावन मास की पूर्णिमा को बाली की कलाई पर एक पवित्र धागा बांधा और प्रार्थना की कि भगवान विष्णु को बैकुंठ जाने की आज्ञा दें. महाभारत में भी इसका उल्लेख मिलता है.

जब भगवान कृष्ण ने शिशुपाल का वध किया तो उनकी उंगली में चोट लग गयी थी. उस समय द्रौपदी ने साड़ी के एक टुकड़े को कृष्ण की उंगली पर बांधी थी. इतना हीं नहीं मुगल शासक हुमायूं ने भी इस त्योहार को महत्वपूर्ण माना था. जब शेरगाह सूरी ने हुमायूं पर हमला किया तो हमले का जवाब देने की बजाय उसने चितौड़ की रानी कर्णावती जो कि विधवा थी, मदद करना जरूरी समझा. रानी कर्णावती ने हुमायूं को अपना भाई मानते हुए राखी भेजी थी.

रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त

कोई भी कार्य शुभ मुहूर्त में किया जाता है तो उस कार्य की शुभता में वृद्धि हो जाती है. भाईबहन की रिश्ते की अटूट बनाने के लिए राखी बांधने का कार्य भी शुभ मुहूर्त में किया जाना चाहिए. 21 अगस्त को रक्षाबंधन सुबह सात बज कर 26 मिनट के पहले सुबह भद्रामुक्त समय में भाइयों की कलाई पर राखी बांधना शुभ है.

21 अगस्त को 07 बज कर 26 मिनट तक पूर्णिमा तिथि रहेगी. इसलिए सुबह 7:26 से पहले हीं यह त्योहार मनाना शुभ है.

ऐसे मनाया जाता है रक्षाबंधन

सुबह स्नान आदि से निवृत होकर लड़कियां और महिलाएं पूजा की थाली सजाती हैं. थाली में राखी के साथ रोड़ी या हल्दी का चूर्ण, चावल, दीपक और मिठाई होता है. लड़के और पुरुष स्नान आदि कर पूजा या किसी उपयुक्त स्थान पर बैठते हैं. उन्हें रोड़ी या हल्दी का टीका लगा कर चावल को टीके पर लगाया जाता है.

फिर चावल को सिर पर छिड़का जाता है. इसके बाद आरती उतारी जाती है और तब भाई के दाहिने कलाई पर राखी बांधी जाती है. भाईबहन को उपहार या धन देता है. रक्षाबंधन का अनुष्ठान पूरा होने के बाद भोजन किया जाता है.

40 वर्षो के बाद ऐसा संयोग

हिंदू पंचांग के अनुसार रक्षाबंधन हर वर्ष सावन माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. यह दिन भाईबहन के प्यार जताने का प्रतीक है. बहन अपने भाई की कलाई में राखी बांधती है और उनकी दीर्घायु प्रसन्नता के लिए प्रार्थना करती है. इस बार रक्षाबंधन 20 एवं 21 अगस्त को पड़ रहा है.

इस साल ग्रहों का योग 40 वर्ष बाद बन रहा है. इसके पहले 13 एवं 14 अगस्त 1973 को ऐसा संयोग बना था. 20 अगस्त को प्रात: से रात्रि के तक अद्रा रहेगी. लिहाजा इस दिन राखी बंधवानी हो तो रात्रि के 08:45 के बाद हीं बंधवायें. बेहद शुभ मुहूर्त की बात करें तो 21 अगसत की सुबह 7:35 तक हीं है.

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