बौद्धकाल से भी आगे का है नालंदा का इतिहास : डॉ लांबा
उत्खनन में प्राप्त हो रहे अवशेष 3000 से 3200 वर्ष पुराने होने के प्रमाण चंडी : नालंदा का इतिहास बौद्ध काल से भी आगे का हो सकता है. चंडी के रूखाई गांव में हो रहे पुरातात्विक उत्खनन में प्राप्त हो रहे अवशेषों के आधार पर यह संभावना व्यक्त की जा रही है. रूखाई पुरातात्विक स्थल […]
उत्खनन में प्राप्त हो रहे अवशेष 3000 से 3200 वर्ष पुराने होने के प्रमाण
चंडी : नालंदा का इतिहास बौद्ध काल से भी आगे का हो सकता है. चंडी के रूखाई गांव में हो रहे पुरातात्विक उत्खनन में प्राप्त हो रहे अवशेषों के आधार पर यह संभावना व्यक्त की जा रही है. रूखाई पुरातात्विक स्थल के उत्खनन में प्राप्त हो रहे अवशेषों के आधार पर यह संभावना व्यक्त की जा रही है.
रूखाई पुरातात्विक स्थल के उत्खनन निदेशक डॉ गौतम कुमार लाम्बा ने बताया कि बुद्धकाल का इतिहास लगभग 2500 वर्ष पूर्व का है, जबकि यहां उत्खनन में प्राप्त हो रहे अवशेष 3000 से 3200 वर्ष पुराने होने के प्रमाण मिल रहे हैं. उन्होंने बताया कि प्राप्त अवशेषों का सही-सही काल निर्धारण जांच रिपोर्ट के बाद ही पता चलेगा.
कुएं की दीवारों में चार सौ सालों का अंतर
टीले में बने कुएं गोलाकार है. पक्की ईंटों के तीन दीवारों से कुआं निर्मित है. तीनों दीवारों के ईंट को देखने से इसमें काफी अंतर दिखता है. डॉ लांबा ने बताया कि पहली दो दीवारें प्रथम शताब्दी में बनने वाली ईंटों से बनी है. उन्होंने कहा कि इस कुएं की मरम्मत अंदर से एक और दीवार खड़ी कर की गयी, जिसकी ईंटें पांचवीं शताब्दी की बनी हुई है. डॉ. लांबा के मुताबिक यहां मध्य काल, गुप्त, शुंग काल तथा मौर्य काल के सभ्यता एवं संस्कृति के अवशेष मिले हैं. घोड़ा कटोरा एवं जुआफरडीह उत्खनन से मिलते-जुलते अवशेष रूखाई में भी प्राप्त हो रहे है जो ताम्र पाषाण काल के प्रमाणित हो चुके हैं.
कई किलोमीटर तक टीले का विस्तार :
रूखाई गढ़ का टीला दो किलोमीटर तक विस्तृत होगा. ऐसी संभावना पुरातात्विदों ने व्यक्त की है. इसकी खुदाई बाद में की जायेगी. फिलहाल मुख्य टीलों की खुदाई चल रही है. अब तक की खुदाई से प्राकृतिक मिट्टी नहीं मिली है. इससे खुदाई की गहराई बढ़ती जा रही है. विशेषज्ञों ने बताया कि खुदाई में मिट्टी कूट कर फर्श बनाने के प्रमाण मिले हैं.
20 दिनों तक चलेगी उत्खनन
खुदाई बीस दिनों तक चलेगी. विशेषज्ञों एवं सहयोगियों की टीम गांव में ही खुदाई स्थल के निकट डेरा डाल रखा है. इसका उद्देश्य है नालंदा के इतिहास को और आगे ले जाना है. उत्खनन विशेषज्ञ अरूण कुमार पांडेय ने बताया कि अब तक बुद्धकाल से पांच से सात सौ साल पहले की सभ्यता के साक्ष्य मिले हैं. संभव है कि इससे भी पहले का साक्ष्य मिल जायें.
यहां भेजे जायेंगे नमूने
उत्खनन में प्राप्त अवशेषों के नमूने एकत्र कर उसके काल निर्धारण के लिए आवश्यकतानुसार चार जगहों पर भेजे जायेंगे. बनारस हिंदु विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग के पुरातात्विक अवशेष के काल निर्धारण पूणो स्थित डेक्कन कॉलेज में, लखनऊ स्थित बीरबल साहनी, पैलियो बॉटनी, इंस्टीच्यूट हैदराबाद स्थित एलआरसी तथा लंदन स्थित कैंब्रिज विश्वविद्यालय से संबद्धता है.
अब तक जो मिले अवशेष
खन-खन आवाज करने वाली सुनहले पेंट की हुई मिट्टी, मनुष्यों की हड्डी, मृदभांड, मिट्टी के जार, कोयरे का अवशेष, ब्लैक, रेड एवं ग्रे स्लिपवेयर, पॉट्री डिस, मनके, अनाज रखने का बरतन, सतरंज का मोहरा, दवात के आकार का बरतन, कूट कर बनाया हुआ मिट्टी का फर्श, दीपक का घर, पक्की मिट्टी के नाग का फण, माला में गुंथे जाने वाले पक्की मिट्टी के मनके.