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वोटरों ने सभी दलों को दिया है मौका
अस्थावां अस्थावां विधानसभा क्षेत्र से जदयू के प्रत्याशी जितेंद्र कुमार लगातार तीन बार से चुनाव जीतते आ रहे हैं. यहां से उनके पिता अयोध्या प्रसाद भी एक बार विधायक रह चुके हैं. यह कुर्मी बहुल्य क्षेत्र है और अब तक ज्यादातर इसी जाति से विधायक होते रहे हैं. गैर कुर्मी विधायक के रूप में आरपी […]
अस्थावां
अस्थावां विधानसभा क्षेत्र से जदयू के प्रत्याशी जितेंद्र कुमार लगातार तीन बार से चुनाव जीतते आ रहे हैं. यहां से उनके पिता अयोध्या प्रसाद भी एक बार विधायक रह चुके हैं. यह कुर्मी बहुल्य क्षेत्र है और अब तक ज्यादातर इसी जाति से विधायक होते रहे हैं. गैर कुर्मी विधायक के रूप में आरपी शर्मा यहां से दो बार निर्दलीय विधायक रह चुके हैं. मुख्यमंत्री का गृह जिला होने के नाते अस्थावां जदयू का सबसे सुरक्षित सीट माना जाता है. पिछले विधानसभा चुनाव में लोजपा के प्रत्याशी कपिलदेव प्रसाद सिंह को छोड़ सभी की जमानत जब्त हो गयी थी. लोकसभा चुनाव में भी जदयू ने ही बढ़त ली थी.
इस बार जदयू-राजद गंठबंधन में यह सीट जदयू के लिए और भी मजबूत हो गयी है, लेकिन इस बार चेहरे बदलने की भी संभावना भी दिख रही है. ऐसे में बदलाव की संभावना से कई जदयू नेता इस सीट पर अपने-अपने दावे पेश कर रहे है और क्षेत्र में जनता के बीच अपनी पैठ बनाने में लगे हुए हैं. एनडीए के घटकों के बीच तालमेल में यह सीट लोजपा को मिलती है या भाजपा अपना दावा करती है, इस भी बहुत कुछ निर्भर करेगा. वैसे, लोजपा की ओर से कहा जा रहा है यह सीट उसे ही मिलने के आसार हैं.
अब तक
जदयू लगातार तीन बार इस सीट से चुनाव जीत चुका है. कांग्रेस, समता पार्टी और निर्दलीय प्रत्याशी भी यहां से निर्वाचित हो चुके हैं.
इन दिनों
जदयू की सक्रियता तेज हुई है. पार्टी कार्यक्रमों को लागू किया जा रहा है. भाजपा ने अपना जनसंपर्क अभियान तेज कर दिया है.
उलटफेर से रोमांच बढ़ा
बिहारशरीफ
इस बार के चुनाव में बागियों की भूमिका पर बहुत कुछ निर्भर करेगा. जदयू के बागी हुए विधायक डॉ. सुनील कुमार के इस बार भाजपा से चुनाव मैदान में उतरेंगे. वहीं राजद से पूर्व विधायक पप्पू खान की पत्नी आफरीन सुल्ताना या फिर जदयू से ई. सुनील कुमार प्रत्याशी बनाये जायेंगे तो लड़ाई सीधे कांटे की होगी. इधर पप्पू खान के जेल से रिहा होने के बाद सरगरमी तेज हो गयी है. जदयू और राजद इस सीट पर अपना-अपना दावा ठोक रहे हैं.
इस बार जदयू-राजद गंठबंधन का प्रत्याशी जो भी होगा वह डॉ सुनील कुमार को कड़ी टक्कर देगा. चूंकि कोयरी जाति से आने वाले डॉ. सुनील कुमार का अपने समाज का काफी वोट परिसीमन के बाद नालंदा विधानसभा क्षेत्र में चला गया है. जबकि रहुई प्रखंड का वोट बिहार विधानसभा में जुट जाने से कुर्मी का वोट सर्वाधिक हो गया है. ऐसे में पूर्व विधायक ई. सुनील कुमार जदयू से अपनी दावेदारी ठोक रहे हैं. जबकि राजद इस सीट पर अपना दावा कर रहा है. राजद का मानना है कि पूरे मगध क्षेत्र में मुसलिम का एक भी सीट नहीं है. वैसे में बिहारशरीफ विधानसभा से मुसलिम को टिकट देकर अपने समीकरण को मजबूत करना है. इस कारण लगातार तीन बार से राजद की हार के बावजूद इस सीट से आफरीन सुलताना राजद से टिकट का दावा कर रही है.
अब तक
परिसीमन के बाद जो परिदृश्य बदला है उसका फायदा जदयू को अधिक मिला. यही कारण है कि जदयू तीन बार से जीत रही है.
डॉ. सुनील कुमार, समता पार्टी से लेकर अब तक जदयू का प्रतिनिधित्व करते रहे है. इसके पहले राजद से पप्पू खान पहली बार जीत हासिल की थी. लेकिन पप्पू खान के सजायाफ्ता होने के बाद उनकी पत्नी आफरनी सुल्ताना यहां से दो बार राजद से चुनाव लड़ी लेकिन दोनों बार करारी हार हुई. वर्ष 1985-90 तक कांग्रेस से शकील उज्जमा विधायक रहे.
इन दिनों
जदयू की ओर से हर घर दस्तक कार्यक्रम चल रहा है. भाजपा लगातार बिहारशरीफ में कार्यकर्ता सम्मेलन और बैठकें कर रही है.
आंठवी बार कौन !
राजगीर (अजा)
राजगीर विधानसभा क्षेत्र की सीट पर सात बार से भाजपा के प्रत्याशी सह पूर्व मंत्री सत्यदेव नारायण आर्य का कब्जा रहा है. इस बार भी श्री आर्य ही भाजपा के सबसे मजबूत प्रत्याशी नजर आ रहे हैं. उनकी क्षेत्र में सक्रियता बढ़ने से भी लोगों को एहसास होने लगा है कि श्री आर्य ही इस बार भी भाजपा से प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरेंगे. पूर्व में श्री आर्य लोजपा एवं राजद के प्रत्याशियों को हरा कर इस सीट पर कब्जा करते आये हैं.
नये राजनीतिक समीकरण में लोजपा का साथ मिल जाने से उनका जनाधार और भी मजबूत हो गया है. दूसरी तरफ भाजपा छोड़ राजद व कांग्रेस के साथ गंठबंधन बनाने वाला जदयू भाजपा के पुराने किले को ध्वस्त करने का भरपूर प्रयास करेंगा. इस विधान सभा सीट पर राजद अथवा जदयू में से किस दल का प्रत्याशी होगा यह अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है. हालांकि जदयू इस सीट के लिए मजबूत दावेदारी पेश करेगा. राजद भी यहां अपने मजबूत जनाधार की बदौलत इस सीट पर अपना उम्मीदवार खड़ा करना चाहेगा. इस क्षेत्र से जदयू प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने के लिए वर्तमान में पुलिस अधिकारी रवि ज्योति का नाम भी चर्चा में है. जब कि सत्यजीत पासवान भी राजद प्रत्याशी के रूप में चुनावी टिकट के लिए सक्रिय हैं.
इस सीट पर कांग्रेस को मौका मिला तो श्यामदेव राजवंशी की मजबूत दावेदारी रहेगी. पर्यटन नगरी राजगीर से जुड़े इस विधान सभा क्षेत्र में विकास के लिए कई स्त्रोतों से राशि उपलब्ध करायी जाती है. इसमें विदेशी फंड के साथ पर्यटन विभाग का फंड भी शामिल है. जहां तक सड़क, पुल-पुलिया का सवाल है इस क्षेत्र में पिछले पांच सालों में काफी अच्छी उपलब्धि रही है. सकरी नदी पर दो बड़े पुल निर्माण से इस क्षेत्र के हजारों की आबादी को काफी राहत मिली है. यहां बिजली की स्थिति में भी काफी सुधार हुआ है. श्री आर्य के विधायक मद की अनुशंसित योजनाओं में से वर्ष 2011-12 में 24, 2012-13 में 35, 2013-14 में 54 योजनाओं की स्वीकृति मिली है. तथा उनमें से सड़क, गली, नाली, सामुदायिक भवन आदि दर्जनों योजनाओं कार्य पूरा कर लिया गया है. नये समीकरण मे महागठबंधन में शामिल दलों के बीच सीट बंटवारे के बाद हीं प्रत्याशियों के नाम तय किये जायेंगे. इसके बाद ही चुनाव की तस्वीर साफ होगी.
अब तक
यह क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है. वैसे यहां के प्रत्याशी के भाग्य का फैसला भूमिहार जाति के लोग ही करते आ रहे हैं.
इस क्षेत्र से सात बार सत्यदेव नारायण आर्य प्रतिनिधित्व कर चुके है. इनके पूर्व चंद्रदेव प्रसाद हिमांशु यहां से भाकपा से विधायक रहे चुके हैं.
इन दिनों
जदयू-राजद गंठबंधन से यहां एनडीए को इस बार कड़ी टक्कर मिलने की उम्मीद है. वहीं भाजपा ने जनसंपर्क अभियान तेज कर दिया है.जबकि जदयू भी घर-घर दस्तक और परचा पर परिचर्चा कार्यक्रम चला कर जनाधार को मजबूत करने में जुटी हुई है.
बाढ़ की समस्या से जूझता है क्षेत्र
हरनौत
हरनौत विधानसभा क्षेत्र पूरी तरह से टाल क्षेत्र में आता है और दलहन-तिलहन के लिए यह टाल क्षेत्र मशहूर है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजनीतिक कॅरियर इसी हरनौत से शुरू हुआ था. टाल क्षेत्र को मुद्दा बना कर उन्होंने राजनीति में कदम रखा था. यह विधानसभा क्षेत्र पहले चंडी विधानसभा क्षेत्र कहलाता था, लेकिन परिसीमन के बाद हरनौत प्रखंड और चंडी प्रखंड को मिला कर हरनौत विधानसभा क्षेत्र बनाया गया. इस विधानसभा क्षेत्र से गुजर कर फोरलेन रजाैली तक जुड़ने जा रहा है, जो बख्तियारपुर से रजाैली राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 31 फोरलेन के निर्माण के लिए कार्य इस वर्ष से शुरू होने वाला है. बाढ़ से यह विधानसभा क्षेत्र काफी प्रभावित रहता है. पिछले वर्ष आयी भीषण बाढ़ में कम से कम 60 से 70 स्थानों पर कटाव हो गया था, जिस पर काम अभी भी पूरा नहीं हो पाया है. परिसीमन के बाद हुए पहले चुनाव में जदयू की ओर से हरिनारायण सिंह ने जीत हासिल की थी. अब राजनैतिक हालात बदल चुके हैं. बीते चुनाव में दूसरे स्थान पर रही लोजपा का अब भाजपा से तालमेल तय है. चूंकि लोजपा एनडीए का घटक बन चुकी है. चर्चा के अनुसार इस सीट पर लोजपा अपने पुराने रिकॉर्ड के आधार पर अपना दावा जाहिर करेगी. दूसरी ओर महागंठबंधन की ओर से इसके जदयू खाते में रहने की संभावना जतायी जा रही है.
गंठबंधनों में ठनी लड़ाई
नालंदा
नालंदा विधान सभा क्षेत्र कृषि प्रधान क्षेत्र रहा है. यहां कृषि के क्षेत्र में अभी भी विकास की असीम संभावनाएं है. चुनाव के वक्त प्रत्याशियों से आम मतदाताओं की कृषि से संबंधित ज्यादा अपेक्षाएं रहती है. इस क्षेत्र में महागंठबंधन की ओर से बिहार सरकार के काबिना मंत्री सह स्थानीय विधायक श्रवण कुमार को टिकट मिलना तय माना जा रहा है. इस सीट पर श्री कुमार का पिछले पांच बार से कब्जा रहा है. वह पहली बार समता पार्टी एवं इसके बाद से जदयू प्रत्याशी के रूप में इस क्षेत्र से जीत हासिल करते रहे हैं. हालांकि बदले हुए समीकरण में चुनावी परिदृश्य भी बदला-बदला नजर आ रहा है.
कल तक जिस जाति के लोग उनके साथ थे, नये गंठबंधन बन जाने के बाद वे अलग-थलग दिखाई पड़ रहे हैं. वहीं राजद व कांग्रेस का समर्थन मिलने से इस सीट पर जदयू की दावेदारी और मजबूत हो गयी है. इस सीट पर लोजपा की ओर से रामनरेश सिंह सिंह चुनाव मैदान में उतरेंगे. एनडीए गंठबंधन के तहत भाजपा ने भी नालंदा विधानसभा क्षेत्र में अपना जनाधार मजबूत करने के लिए जनसंपर्क का एक चरण पूरा कर लिया है. चुनावी हलचल के बाद सभी संभावित प्रत्याशी अपने क्षेत्र में दिखने लगे हैं. इस सीट पर राजद की ठीक-ठाक मौजूदगी मानी जाती है. लेकिन पांच चुनावों से यह सीट जदयू के खाते में है. दूसरी ओर, भाजपा की भी इस सीट पर नजर है.
अब तक
पांच बार से इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व श्रवण कुमार करते आ रहे हैं. इसके पूर्व दो बार रामनरेश सिंह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीत चुके हैं.
इन दिनों
भाजपा के जनसंपर्क अभियान का एक चरण पूरा हो गया है. जदयू का हर घर दस्तककार्यक्रम क्षेत्र में चलाया गया.भाजपा के लिए परेशानी बना हुआ है. भाजपा भी इस क्षेत्र में अपनी जीत पक्की करने के लिए जनसंपर्क का पहला चरण कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित कर पूरा कर लिया है.
बाढ़ की समस्या से जूझता है क्षेत्र
हरनौत
हरनौत विधानसभा क्षेत्र पूरी तरह से टाल क्षेत्र में आता है और दलहन-तिलहन के लिए यह टाल क्षेत्र मशहूर है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजनीतिक कॅरियर इसी हरनौत से शुरू हुआ था. टाल क्षेत्र को मुद्दा बना कर उन्होंने राजनीति में कदम रखा था. यह विधानसभा क्षेत्र पहले चंडी विधानसभा क्षेत्र कहलाता था, लेकिन परिसीमन के बाद हरनौत प्रखंड और चंडी प्रखंड को मिला कर हरनौत विधानसभा क्षेत्र बनाया गया. इस विधानसभा क्षेत्र से गुजर कर फोरलेन रजाैली तक जुड़ने जा रहा है, जो बख्तियारपुर से रजाैली राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 31 फोरलेन के निर्माण के लिए कार्य इस वर्ष से शुरू होने वाला है.
बाढ़ से यह विधानसभा क्षेत्र काफी प्रभावित रहता है. पिछले वर्ष आयी भीषण बाढ़ में कम से कम 60 से 70 स्थानों पर कटाव हो गया था, जिस पर काम अभी भी पूरा नहीं हो पाया है. परिसीमन के बाद हुए पहले चुनाव में जदयू की ओर से हरिनारायण सिंह ने जीत हासिल की थी. अब राजनैतिक हालात बदल चुके हैं. बीते चुनाव में दूसरे स्थान पर रही लोजपा का अब भाजपा से तालमेल तय है. चूंकि लोजपा एनडीए का घटक बन चुकी है. चर्चा के अनुसार इस सीट पर लोजपा अपने पुराने रिकॉर्ड के आधार पर अपना दावा जाहिर करेगी. दूसरी ओर महागंठबंधन की ओर से इसके जदयू खाते में रहने की संभावना जतायी जा रही है.
बदलते रहे हैं प्रतिनिधि
हिलसा
नक्सलग्रस्त हिलसा विधानसभा क्षेत्र का पश्चिमी इलाका अब भी विकास से वंचित है. लोकाइन नदी के कहर से इस क्षेत्र की जनता परेशान रही है. लोकाइन नदी का तटबंध हर साल टूटता है और दर्जनों गांव टापू में बदल जाते हैं. हिलसा विधान सभा क्षेत्र में सड़कों की स्थिति खराब है. बाइपास बनाने की मांग हिलसा वासी कई वर्षो से करते आ रहे हैं. इसके लिए आंदोलन भी चला मगर बाइपास आज तक नहीं बना. विधानसभा चुनाव में खराब सड़कें और तटबंधों की बदहाली चुनावी मुद्दे होंगे.
इस सीट से 1990 के दशक में भाकपा माले के केडी यादव चुनाव जीते थे. मगर कुछ समय बाद ही वे राजद में शामिल हो गये थे. उसके बाद इस विधान सभा पर राजद का कब्जा रहा और पार्टी के बैजू यादव कई बार चुनाव जीते. इसके बाद समता पार्टी से रामचरितर प्रसाद चुनाव जीते. जदयू का इस सीट पर दो बार कब्जा रहा है. 2010 में इस विधानसभा क्षेत्र से जदयू के टिकट पर प्रो. उषा सिन्हा चुनाव जीतीं. इसबार भी उन्हें टिकट मिलने के आसार हैं. बीते चुनाव में लोजपा ने रीना देवी को उम्मीदवार बनाया था. अब लोजपा, भाजपा के साथ है. ऐसे में यह सीट तालमेल में किसके खाते में जाती है, यह अहम सवाल है. एनडीए की ओर से चाहे जो दल अपना उम्मीदवार दे, मुकाबला जदयू से ही होगा.
अब तक
रणजीत सिंह राजद छोड़ भाजपा में शामिल हुए हैं. नयी पार्टी में टिकट के दावेदारी पेश कर रहे हैं.
इन दिनों
जदयू हिलसा में जी-तोड़ मेहनत कर रहा है. दो प्रखंडों में कार्यकर्ता सम्मेलन हो चुके हैं. लोजपा व भाजपा की ओर से संपर्क हो रहा है.
बागी हुए जदयू के विधायक
इस्लामपुर
जिले के नक्सलग्रस्त विधानसभा क्षेत्र इस्लामपुर में विकास के कार्य तो बहुत हुए हैं लेकिन इस क्षेत्र के लोगों की कई मांगें आज भी पूरी नहीं हो सकी हैं. मसलन क्षेत्र की जनता पिछले कई वर्षो से इस्लामपुर को अनुमंडल बनाने, खुदागंज व तेल्हाड़ा को प्रखंड बनाने की मांग करती रही है. अगर विकास की बात करें तो इस क्षेत्र में चार पावर सब स्टेशन, 30 बेड का अत्याधुनिक सरकारी अस्पताल एवं 38 करोड़ की लागत से 18 आहर – पइन सहित 111 करोड़ की लागत से इस्लामपुर, तेल्हाड़ा व औंगारी नहर का निर्माण कार्य चल रहा है. साथ ही प्राइमरी व मिड्ल स्कूलों के लिए 1500 कमरों, एक एएनएम स्कूल सहित गांवों को जोड़ने वाली दर्जनों सड़कों का निर्माण पूरा हो चुका है जबकि कई सड़कों का निर्माण कार्य प्रगति पर है.
इस बार जदयू इस विधानसभा क्षेत्र से नये प्रत्याशियों की तलाश कर रही है. 2010 में इस सीट से जदयू के राजीव रंजन विजयी हुए थे, जिन्हें पार्टी विरोधी कार्य के लिए जदयू ने पार्टी से निष्कासित कर दिया.पार्टी से निकाले जाने के बाद विधायक राजीव रंजन ने हम का दामन थाम लिया. जदयू अपनी इस परंपरागत सीट को बरकरार रखने व कद्दावर नेता को उतारने का जुगाड़ कर रहा है.
अब तक
जदयू के विधायकराजीव रंजन की बगावत से विपक्ष के हौसले बुलंद हैं. 1990 के दशक में इस सीट पर भाकपा का कब्जा रहा है.
इन दिनों
सीट पर कब्जा के लिए जदयू महागंठबंधन व भाजपा का एनडीए गंठबंधन पूरा जोर लगाये हुए है. दोनों ओर से कार्यक्रम हो रहे हैं.
घर – घर जाकर मतदाताओं से संपर्क साधा जा रहा है. भाजपा के एनडीए गठबंधन भी इस मामले में पीछे नहीं है. कार्यकर्ता सम्मेलनों के माध्यम से प्रखंड स्तर से लेकर बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं की संख्या बढ़ायी जा रही है एवं उन्हें बूस्ट अप किया जा रहा है.
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