बिहारशरीफ : फाइलेरिया से बचाव के लिए नवंबर माह में अभियान चलाया जायेगा. इस अभियान को सफल बनाने की तैयारी जिला फाइलेरिया विभाग द्वारा शुरू कर दी गयी है.
यह अभियान एक सप्ताह तक चलेगा. माइक्रो प्लान के तहत जांच अभियान चलाया जायेगा. फाइलेरिया बीमारी को आम तौर पर हाथी पांव का रोग कहा जाता है. यह बीमारी अमूमन सभी उम्र के लोगों में होती है.
हाइड्रोसील भी फाइलेरिया बीमारी का ही रूप है. हाइड्रोसील का सहज रूप से ऑपरेशन कर ठीक कर दिया जाता है, लेकिन हाथ-पैर एवं शरीर के अन्य अंग प्रभावित होने पर ऑपरेशन करना सहज नहीं हो पाता है. यानी कठिन कार्य हो जाता है.
बच्चे होते है माइक्रो फाइलेरिया से ज्यादा प्रभावित : माइक्रो फाइलेरिया बीमारी के शिकार सबसे ज्यादा बच्चे होते है. 6-7 साल तक के बच्चे इस बीमारी की चपेट में आम तौर पर होते हैं.
इन बच्चों को बचाने के लिए नवंबर माह में अभियान चलाने का कार्यक्रम तय किया गया है. इस उम्र के बच्चों के खून के सैंपल की जांच की जायेगी. जांच में अगर फाइलेरिया के जीवाणु पाये जाते है तो संबंधित बच्चे की चिकित्सा कर उसे दवा उपलब्ध करायी जायेगी.
प्रशिक्षित हो चुके हैं फाइलेरिया कर्मी : माइक्रो फाइलेरिया से बचाव के लिए जिला फाइलेरिया विभाग के कर्मियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है. इन कर्मियों को बीमारी के लक्ष्य व उपचार के गुर पिछले दिनों बताये गये थे.
प्रशिक्षित कर्मी अब इस अभियान को सफल बनाने की रणनीति में जुट गये हैं. पिछले दिनों भारत सरकार के फाइलेरिया विभाग की टीम नालंदा आयी थी. केंद्रीय टीम के अधिकारियों ने कर्मियों को बीमारी के लक्षण, उससे बचाव आदि के बारे में जानकारी दी थी.
साथ ही अभियान को सफल बनाने के लिए मास्टर प्लान बनाने की हिदायत जिला फाइलेरिया अधिकारी को दी थी. यह अभियान जिले के हर पीएचसी के चयनित सब सेंटर के गांवों में सघन रूप से चलाया जायेगा.