नालंदा : मंत्री, इंस्पेक्टर, वर्कर व डॉन लगा रहे जोर
नालंदा जिला का राजनीतिक रसूख सबसे अलग है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह जिला होने के कारण इस जिले के चुनावी जंग पर सबकी नजरें टिकी हैं. अब तक नालंदा में नीतीश कुमार का सिक्का चलता रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव में यहां की सात सीटों में से छह पर जदयू और एक पर भाजपा […]
नालंदा जिला का राजनीतिक रसूख सबसे अलग है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह जिला होने के कारण इस जिले के चुनावी जंग पर सबकी नजरें टिकी हैं. अब तक नालंदा में नीतीश कुमार का सिक्का चलता रहा है.
पिछले विधानसभा चुनाव में यहां की सात सीटों में से छह पर जदयू और एक पर भाजपा ने कब्जा किया था. लेकिन, इस बार राजनीतिक और सामाजिक समीकरण बदला हुआ है.कई सीटों पर जद यू के नेता पाला बदल चुके हैं. आइए, जानते हैं नालंदा की सभी सात सीटों का ताजा हाल.
मिथिलेश
नालंदा जिला इस बार चुनावी समर में हॉट क्षेत्र बना हुआ है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह क्षेत्र होने के नाते जहां उनकी प्रतिष्ठा से जोड़ कर इस जिले के चुनावी समर को देखा जा रहा है, वहीं सरकार के वरिष्ठ मंत्री श्रवण कुमार की साख भी दावं पर लगी है. हिलसा से रंजीत डॉन की पत्नी दीपिका कुमारी लोजपा से प्रत्याशी हैं.
राजगीर सीट पर पुलिस इंस्पेक्टर की नौकरी छोड़ आये रवि ज्योति भी चुनाव मैदान में हैं. बिहारशरीफ की सीट पर फिल्म कारोबार से जुड़े डॉ सुनील उम्मीदवार हैं. नालंदा की सभी सीटों पर वाम दलों के भी प्रत्याशी चुनाव मैदानमें हैं. वहीं पप्पू यादव की पार्टी जन अधिकार पार्टी के भी सभी सीटों पर उम्मीदवार हैं.
महागंठबंधन की ओर से नीतीश और लालू प्रसाद की सभाएं आयोजित हो रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 25 अक्तूबर को बिहारशरीफ हवाई में जन सभा को संबोधित करेंगे. 2010 के चुनाव में जिले की सात सीटों पर तत्कालीन एनडीए का कब्ज रहा था. उस समय भाजपा और जदयू साथ-साथ थे. इस बार परिस्थितियां और समीकरण बदले हुए हैं. जदयू के साथ राजद और कांग्रेस खड़ी है. वहीं, भाजपा के साथ लोजपा, रालोसपा और हम है.
इसलामपुर में महागंठबंधन और एनडीए दोनों ने जमीनी कार्यकर्ता को अपना उम्मीदवार बनाया है. यहां जदयू से चंद्रसेन प्रसाद हैं, जो पार्टी के पुराने कार्यकर्ता रहे हैं. उनकी उम्मीदवारी से जहां जदयू का बेस वोट बंधा हुआ है. यहां यादव, मुसलिम और स्थानीय कुरमी जाति के वोट किसी भी समीकरण को बदल सकते हैं.
महागंठबंधन को इसी समीकरण से उम्मीद है. दूसरी ओर एनडीए ने अंतिम समय में राजीव रंजन की जगह जमीनी कार्यकर्ता वीरेंद्र गोप को उतारा है, जो 2010 के चुनाव में राजद से उम्मीदवार थे. उन्हें 32 हजार से अधिक वोट मिले थे. बिहारशरीफ में जदयू और भाजपा आमने-सामने है. 2010 के चुनाव में जदयू से जीते डॉ सुनील भाजपा के प्रत्याशी हैं. जदयू ने अजगर शमीम को उतारा है.
(इनपुट : बिहारशरीफ से निरंजन)
अस्थावां
त्रिकोणीय मुकाबले की तसवीर
अस्थावां विधानसभा सीट पर इस बार दिलचस्प मुकाबला है. महागंठबंधन ने यहां से वर्तमान विधायक जितेंद्र कुमार को प्रत्याशी बनाया है. श्री कुमार चौथी बार विधानसभा पहुंचने के लिए मुकाबले में खड़े हैं. एनडीए ने उनकी टक्कर में छोटे लाल यादव (लोजपा)को उम्मीदवार बनाया है. जन अधिकार पार्टी ने प्रमोद कुमार को खड़ा किया है. श्री कुमार जदयू उम्मीदवार के स्वजातीय हैं और इसके पहले दो बार चुनाव मैदान में भाग्य आजमा चुके हैं.
बिहारशरीफ
चेहरा पुराना, पार्टी नयी
बिहारशरीफ में त्रिकोणात्मक संघर्ष के आसार दिख रहे हैं. यहां एनडीए ने 2010 के चुनाव में जद यू के टिकट पर जीते डॉ सुनील कुमार को अपना प्रत्याशी बनाया है. वहीं, महागंठबंधन से अजगर शमसी हैं.
जन अधिकार पार्टी ने यहां से पूर्व विधायक पप्पू खान की पत्नी आपफरीन सुलताना को उम्मीदवार बनाया है. वह 2010 में राजद की उम्मीदवार थी और उन्हें 54167 वोट मिले थे. महागंठबंधन को अपने आधार मतों पर भरोसा है. पीएम की यहां रैली होने वाली है.
राजगीर (सु)
इंस्पेक्टर ने लड़ाई को दिलचस्प बनाया
पुलिस इंस्पेक्टर की नौकरी से राजनीति में आये रवि ज्योति के कारण मुकाबला दिलचस्प हो गया है. राजगीर भाजपा की परंपरागत सीट मानी जाती है. यहां से सत्यदेव नारायण आर्य नौवीं बार विधायक बनने के लिए चुनाव मैदान में हैं.
एनडीए की सरकार में वह मंत्री रह चुके हैं. महागंठबंधन मे ंयह सीट जदयू के खाते में आयी है. पासवान जाति से आने वाले रवि ज्योति मूलत: दरभंगा जिले के निवासी हैं. लेकिन, नालंदा में इनकी पकड़ को देखते हुए महागंठबंधन ने उम्मीदवार बनाया है. यहां भाकपा ने अमित पासवान को अपना उम्मीदवार बनाया है.
इस्लामपुर
जमीनी कार्यकर्ताओं की जंग
इसलामपुर में इस बार के चुनाव में एनडीए और महागंठबंधन ने जमीनी कार्यकर्ता को उम्मीदवार बनाया है. 2010 के चुनाव में जदयू ने राजीव रंजन को अपना उम्मीदवार बनाया था.
बाद के दिनों में राजीव रंजन ने जदयू का साथ छोड़ दिया और हम के करीब हो गये. चुनाव के पहले वह भाजपा में शामिल हो गये लेकिन, टिकट मिला वीरेंद्र गोप को. वीरेंद्र गोप को जमीनी कार्यकर्ता माना जाता है. 2010 के चुनाव में वह राजद के टिकट पर उम्मीदवार थे. महागंठबंधन ने चंद्रसेन को प्रत्याशी बनाया है.
हरनौत
नीतीश की साख का सवाल
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह क्षेत्र होने के कारण हरनौत की खास अहमियत है. महागंठबंधन से मौजूदा विधायक हरिनारायण सिंह हैं, वहीं एनडीए ने अरुण बिंद पर दावं लगाया है. अरुण बिंद 2010 के चुनाव में लोजपा के उम्मीदवार थे. हरनौत में भाकपा माले ने राम दास अकेला को उम्मीदवार बनाया है. इस सीट पर कब्जा के लिए जदयू घर-घर मतदाताओं को अपने पक्ष में गोलबंद कर रहा है. वहीं एनडीए कार्यकर्ता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 25 अक्तूबर के संभावित दौरे से उत्साहित हैं. दोनों ही गंठबंधन इस सीट को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ कर देख रहा है. कड़ा मुकाबला है.
हिलसा
मुनि के मुकाबले डॉन की पत्नी
हिलसा में रंजीत डॉन की पतनी दीपिका कुमारी का मुकाबला राजद के शक्ति सिंह यादव उर्फ अतरी मुनि से है. 2010 के चुनाव में हिलसा से जदयू की उषा सिन्हा जीती थीं. इस बार उनकी जगह लालू प्रसाद के करीबी राजद के अतरी मुनि उर्फ शक्ति सिंह यादव महागंठबंधन के प्रत्याशी हैं. यहां लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की कई चुनावी सभाएं हो चुकी हैं. महागंठबंधन को यहां अपने सामाजिक आधार पर, तो एनडीए को भाजपा, रालोसपा, लोजपा और हम की ताकत पर भरोसा है.
नालंदा
कड़े मुकाबले में मंत्री
नालंदा विधानसभा सीट पर इस बार नीतीश सरकार के मंत्री श्रवण कुमार की साख दावं पर है. महागंठबंधन से वहउम्मीदवार हैं. 1995 से लगातार चुनाव जीत रहे हैं. उनके मुकाबले एनडीए ने कौशलेंद्र कुमार को अपना उम्मीदवार बनाया है. कौशलेंद्र कुमार को भाजपा के अतिरिक्त लोजपा, रालोसपा और जीतन राम मांझी की पार्टी हम की ताकत पर भरोसा है. इस बार के चुनाव में नालंदा विधानसभा सीट से 12 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं.