हिरण्य पर्वत पर बनेगा वाटरलेस शौचालय
पहाड़ पर पानी की कमी को देखते हुए डीएम ने की पहलबिहारशरीफ : बिहारशरीफ के अमूल्य धरोहर हिरण्य पर्वत पर लोगों द्वारा यत्र-तत्र मल-मूत्र त्याग देने से वहां दिनों-दिन गंदगी फैलती जा रही है. हिरण्य पर्वत पर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए योजना पर कार्य चल रहा है. ऐसे में पर्वत पर फैली गंदगी […]
पहाड़ पर पानी की कमी को देखते हुए डीएम ने की पहल
बिहारशरीफ : बिहारशरीफ के अमूल्य धरोहर हिरण्य पर्वत पर लोगों द्वारा यत्र-तत्र मल-मूत्र त्याग देने से वहां दिनों-दिन गंदगी फैलती जा रही है. हिरण्य पर्वत पर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए योजना पर कार्य चल रहा है.
ऐसे में पर्वत पर फैली गंदगी से योजना पर बुरा असर होने की संभावना को देखते हुए जिला पदाधिकारी कुंदन कुमार ने अधिकारियों से रायशुमारी के बाद सिस्टमेटिक एग्रो बेस्ड रिसर्च इंस्टीच्यूट (साबरी), बिंद से संपर्क करने के बाद हिरण्य पर्वत पर वाटरलेस प्रोडक्टिव सामुदायिक शौचालय के निर्माण की स्वीकृति प्रदान की है. साबरी के मैनेजिंग डायरेक्टर संजीव कुमार ने बताया कि हिरण्य पर्वत पर वाटरलेस शौचालय के दो यूनिट लगाये जायेंगे.
इन दोनों यूनिटों में छह-छह सीट लगे होंगे. इस शौचालय का निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया है. उन्होंने बताया कि एक आदमी साल भर में 50 लीटर मल का त्याग करता है. शौचालय में किये गये मल को साफ करने में एक व्यक्ति साल भर में 15 हजार लीटर पानी बरबाद करता है.
मल में रोग फैलाने वाले खतरनाक जीवाणु होते हैं, जिससे फायलेरिया, पोलियो, डायरिया, हेपेटाइटिस रोग पैदा होते हैं. वाटरलेस प्रोडक्टिव शौचालय में फ्लश के लिए पानी की जरूरत नहीं होती है, फिर भी शौचालय दरुगध रहित व स्वच्छ रहता है. 100 आदमी के लिए बनने वाले इस शौचालय के पूरा हो जाने पर प्रति वर्ष 15 लाख लीटर पानी की बचत होगी.
कैसे कार्य करता है शौचालय
इस शौचालय का मुंह आठ से 10 इंच का होता है. इससे मल सीधे टंकी में चला जाता है. टंकी के अंदर एक कीड़ा एसीनिया फंटीडा (चेरा) डाल दिया जाता है, जो मल को खाकर उसे पानी में बदल देता है. इससे शौचालय गंधमुक्त रहता है.
टंकी के अंदर एरोविक रिएक्शन होता रहता है. मानव द्वारा उत्सर्जित मल को खाकर कीड़ा उसे अमोनिया मल के रूप में बाहर निकालता है, जो फसल के लिए बहुत उपयोगी है. शौचालयसे निकलने वाले तरल पदार्थ हमारे खेतों के लिए फायदेमंद है.विकसित देशों में इसका उपयोग खेती में पहले से ही किया जा रहा है.
पानी की जरूरत नहीं
हिरण्य पर्वत पर पानी की समस्या है. पहाड़ पर गड्ढा कर शौचालय नहीं बनाया जा सकता है. ऐसे में यह सिस्टम बहुत ही उपयोगी है. शौचालय का मुंह बड़ा होने के कारण इसमें मल साफ करने के लिए पानी की जरूरत नहीं पड़ती है, केवल एक लोटा पानी से काम चल जाता है.
बिना सफाई के करेगा काम
परंपरागत शौचालय की अपेक्षा इसके निर्माण के लिए कम जगह की जरूरत पड़ती है. निर्माण पर खर्च भी काफी कम पड़ता है. इस शौचालय की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके निर्माण के बाद 50 साल तक इसकी सफाई की जरूरत नहीं पड़ती है.
फंडिंग करेगी स्टॉक होम की संस्था
इस शौचालय के निर्माण के लिए फंडिंग स्टॉक होम का इन्वायरोमेंटल इंस्टीच्यूट करेगा, जबकि सपोर्ट वास इंस्टीच्यूट, पटना द्वारा किया जायेगा. इस योजना को धरातल पर उतारने का काम सिस्टमेटिक एग्रो बेस्ड रिसर्च इंस्टीच्यूट (साबरी), बिंद द्वारा किया जा रहा है.
– अरुण कुमार –