2014 में शुरू हुआ पहला बैच, विदेशों से आये छात्र
बिहारशरीफ : प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय करीब 823 वर्ष बाद एक बार फिर से इतिहास दोहराने की राह पर है. लगभग आठ दशक बाद फिर से नालंदा विश्वविद्यालय से शिक्षा की मंद-मद बयार बहने लगी है. पांचवीं सदी में स्थापित इस विश्वस्तरीय शिक्षा के केंद्र को तीन बार विदेशी आक्रमणकारियोंने तहस-नहस किया और अब 21 वीं […]
बिहारशरीफ : प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय करीब 823 वर्ष बाद एक बार फिर से इतिहास दोहराने की राह पर है. लगभग आठ दशक बाद फिर से नालंदा विश्वविद्यालय से शिक्षा की मंद-मद बयार बहने लगी है. पांचवीं सदी में स्थापित इस विश्वस्तरीय शिक्षा के केंद्र को तीन बार विदेशी आक्रमणकारियोंने तहस-नहस किया और अब 21 वीं सदी में नालंदा एक बार फिर से अपनी खोयी हुई गरिमा को स्थापित करने के प्रयास में हैं.
प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर से करीब 10 किलोमीटर दूर राजगीर के पिलखी गांव में 445 एकड़ क्षेत्र में इसे दोबारा विकसित किया जा रहा है.
इस विश्वविद्यालय के बिल्डिंग का निर्माण 2021 तक पूरा हो जाने की उम्मीद है. एशिया के साथ ही पूरे विश्व के विद्यार्थियों के लिए शिक्षा का यह सबसे बड़ढ़ केंद्र होगा. प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का नया स्वरूप नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय का होगा. दुनिया के कई देश इसके निर्माण में रुचि दिखा रहे हैं और वित्तीय सहायता मुहैया करा रहे हैं. नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय का बिल्डिंग नहीं बनने के बावजूद 2014 में यहां पढ़ाई शुरू हो गयी है. इसके लिए फिलहाल राजगीर के अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन हॉल का इस्तेमाल किया जा रहा है.
इस विश्वविद्यालय के पहले बैच में विभिन्न देशों के 15 विद्यार्थी ने दाखिल लिया था. इस विश्वविद्यालय में सिंगापुर, शिकागो, स्वीडन, कोरिया व न्यूजीलैंड के शिक्षक पदस्थापित हैं. यह विश्वविद्यालय न केवल शिक्षा का बल्कि शोध का ीाी प्रमुख केंद्र बनोगा. जापान के छात्र अकीरो नाका मोरा ने बताया कि यहां के लोगों का प्रेम और व्याख्याताओं के स्नेह ने उन्हें अभिभूत कर दिया है. दो साल तक यहां पढ़ाई करने के दौरान उसने अपने दिल में एक से बढ़ कर स्मरण संजोकर रखे हैं.