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नालंदा विवि दीक्षांत समारोह में बोले राष्ट्रपति, प्राचीन गौरव को फिर से करेंगे हासिल

राजगीर से कौशिक रंजन नालंदा (राजगीर) : राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने राजगीर स्थित नालंदा अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह को शनिवार को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि करीब 1200 वर्ष पुराना यह विश्वविद्यालय ज्ञान के एेतिहासिक धरोहर को फिर से स्थापित करने का सबसे बेहतरीन माध्यम है. इसके पुराने उद्देश्यों और विचारों का समावेश […]

राजगीर से कौशिक रंजन

नालंदा (राजगीर) : राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने राजगीर स्थित नालंदा अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह को शनिवार को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि करीब 1200 वर्ष पुराना यह विश्वविद्यालय ज्ञान के एेतिहासिक धरोहर को फिर से स्थापित करने का सबसे बेहतरीन माध्यम है. इसके पुराने उद्देश्यों और विचारों का समावेश इस नये विश्वविद्यालय में किया जाना चाहिए. जिस प्रकार प्राचीन काल में ग्रीक, इंडियन, चीनी और परसियन, इन चार महान सभ्यताओं का यह संगम था, उसी प्रकार इसे दुनिया की अलग-अलग संस्कृतियों का समावेश- स्थल बनाया जा सकता है. राष्ट्रपति ने कहा कि यह सुखद है कि इस प्रोजेक्ट को विदेश मंत्रालय सीधे तौर पर देख रहा है. उन्होंने उम्मीद जतायी कि जल्द ही इस प्रोजेक्ट के बाकी कार्य को पूरा कर लिया जायेगा. उन्होंने कहा कि वे विदेश मंत्रालय से इस प्रोजेक्ट को जल्द पूरा कराने की पहले करेंगे.

राज्य के पहल की सराहना की

राष्ट्रपति ने कहा कि यह विश्वविद्यालय अंतर्राष्ट्रीय संस्कृति आदान-प्रदान का बड़ा माध्यम होगा. उन्होंने इस प्राचीन विश्वविद्यालय को फिर से स्थापित करने में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रयासों की सराहना की. उन्होंने कहा कि बिहार सरकार ने इसके लिए कड़ी मेहनत की है. इनका योगदान और सहयोग उल्लेखनीय है.

पुराने गौरव को प्राप्त करने की पहल हुई शुरू

राष्ट्रपति ने कहा कि प्रथम बैच के छात्रों के सफलतापूर्वक अपनी पढ़ाई पूरी करने के साथ इस विश्वविद्यालय ने अपने पुराने गौरव को प्राप्त करना आरंभ कर दिया है. उन्होंने इसे गौरवशाली परंपरा की फिर से शुरुआत की संज्ञा दी. उन्होंने कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय का विध्वंस की घटना जापान के नागाशााकी और हिरोशिमा में पैदा किये गये मानव निर्मित प्रलय जैसा ही था. दोनों विध्वंसकारी घटनाएं भौगोलिक रूप से भले अलग-अलग स्थानों और काल खंडों में हुईं, लेकिन दोनों की प्रकृति एक समान ही थी. उन्होंने इस विश्वविद्यालय को ज्ञान और बौद्धिक विकास का महान स्थल बताया और आशा व्यक्त की कि यहां से निकलने वाले छात्र पूरी दुनिया को विशिष्ट संदेश देंगे.

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