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पगडंडियों पर चलने को मजबूर है तीन गांवों के निवासी, आक्रोश

परेशानी. जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों की मनमानी से रोषप्रभात खबर डिजिटल प्रीमियम स्टोरीSpies In Mauryan Dynasty : मौर्य काल से ही चल रही है ‘रेकी’ की परंपरा, आज हो तो देश में मच जाता है बवालRajiv Gauba : पटना के सरकारी स्कूल से राजीव गौबा ने की थी पढ़ाई अब बने नीति आयोग के सदस्यUPS: पुरानी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 8, 2016 4:28 AM

परेशानी. जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों की मनमानी से रोष

राज्य में सरकार सड़कों का जाल बिछाने की बात करती रही है. यहां तक की गांवों के बाद अब तो गलियों में पक्की नाली एवं पीसीसी ढलाई करने की बात कर रही है, लेकिन इन तीन गांवों में न जाने किसकी नजर लग गयी कि आज तक किसी जनप्रतिनिधि या अधिकारी ने सड़क के लिए ध्यान तक नहीं दिया. यहां के लोग स्थानीय विधायक, सांसद, सड़क मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक अपनी फरियाद कर चुके हैं, लेकिन आज तक इन तीनों गांव की समस्या पर कोई पहल नहीं किया गया.

यहां खाट ही करती है एंबुलेंस का काम

विधायक से लेकर सीएम से लगा चुके हैं गुहार

हरनौत : मुख्यमंत्री के गांव कल्याण बिगहा से महज दो किलोमीटर की दूरी पर महमूदपुर बलवा, कारीमचक बलवा एवं गंगा बिगहा के लोगों को आजादी के इतने वर्षों बाद भी पक्की सड़क नसीब नहीं हुई है. आज केंद्र व बिहार सरकार छोटे-छोटे गांवों को पक्की सड़क से जोड़ने की बात कह रही है. राज्य में सरकार सड़कों का जाल बिछाने की बात करती रही है. यहां तक की गांवों के बाद अब तो गलियों में पक्की नाली एवं पीसीसी ढलाई करने की बात कर रही है,
लेकिन इन तीन गांवों में न जाने किसकी नजर लग गयी कि आज तक किसी जनप्रतिनिधि या अधिकारी ने सड़क के लिए ध्यान तक नहीं दिया. यहां के लोग स्थानीय विधायक, सांसद, सड़क मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक अपनी फरियाद कर चुके हैं, लेकिन आज तक इन तीनों गांव की समस्या पर कोई पहल नहीं किया गया.
यहां बरसात के दिनों में खाट ही एंबुलेंस का काम करती है. स्कूली बच्चों को अभिभावक बैग और चप्पल जूते टांग कर पहुुंचाते हैं. बरसात के दिनों लोग दूसरे गांवों में साइकिल व बाइक रखते हैं. एक बुजुर्ग ने बताया कि हमरा तो लगलो की सगरो रोड बन रहतो ह त हमरो गमा में बनतो, लेकिन अब लग हको की हमर जिंदगी में रोड नहिएं बनतो.
एक महिला ने तो यहां तक कहा कि बहरी मेहमान तो दूर नई नवेली दुल्हन भी बरसात के दिनों में आना नहीं चाहती है और यहां आ जाती है तो बरसात भर जाना नहीं चाहती है. एक युवक ने कहा कि महज डेढ़ किलोमीटर पक्की सड़क के लिए तीन गांवों के हजारों लोगों को आने-जाने के लिए बरसात के दिनों में दिन में ही तार झलकने लगती है. इसके लिए तीन गांवों के लोग एकजुट होकर लोकसभा चुनाव में वोट बहिष्कार भी किया था.

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