उद्योग को ले सरकार गंभीर नहीं: राजीव

राज्य सरकार भाषण की जगह काम करके दिखाये बिहारशरीफ : पूर्व विधायक व भाजपा नेता राजीव रंजन ने कहा कि बिहार की आर्थिक स्थिति दिन पर दिन खराब होती जा रही है. अब समय आ गया है कि सरकार भाषण के स्थान पर काम करके दिखाये.आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण बिहार सरकार को अब […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 13, 2016 4:09 AM

राज्य सरकार भाषण की जगह काम करके दिखाये

बिहारशरीफ : पूर्व विधायक व भाजपा नेता राजीव रंजन ने कहा कि बिहार की आर्थिक स्थिति दिन पर दिन खराब होती जा रही है. अब समय आ गया है कि सरकार भाषण के स्थान पर काम करके दिखाये.आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण बिहार सरकार को अब वेतन देने में भी तकलीफ होने लगी है.
विकास की बात ही छोड़ दीजिए. राज्य में शिक्षक और लाइब्रेरियन को पिछले छह महीने से वेतन नहीं मिला है. ऐसी स्थिति में कोई शिक्षक बच्चों को पढ़ायेगा या अपने परिवार के भरण पोषण का इंतजाम करने में लगेगा. पहली तिमाही में पिछड़ी जातियों से जुड़ी कल्याण विभाग ने एक कौड़ी भी खर्च नहीं की.
एससी एसटी के छात्रों को सरकार पढ़ाई छोड़ने को मजबूर कर दिया है. सरकार ने पूरी फीस देने का वायदा कर तकनीकि कॉलेजों में नामांकन तो करा दिया. उसके बाद फीस की सीमा को घटा कर 15000 रुपये करा दी. सरकार अब 15000 रुपये की छात्रवृत्ति पर भी रोक लगा दी हैं. ऐसी स्थिति में मजबूरन ये गरीब के बच्चे अपनी पढ़ाई छोड़ देेंगे. राज्य सरकार में खाद्य आपूर्ति को लागू करने वाला खाद्य आपूर्ति विभाग पहले तिमाही में एक फूटी कौड़ी खर्च नहीं कर पायी है.
श्री रंजन ने कहा कि र्केद्र सरकार अपनी तरफ से चावल पर 28 रुपये और गेहूं पर 22 रुपये देती है ताकि गांव के गरीबों को कम दाम पर अनाज मिल सकें. केंद्र सरकार के कारण ही तीन रुपये किलो चावल और दो रुपये किलो गेहूं गरीबों को कार्ड पर उपलब्घ होती हैऋ ग्रामीण इलाके में सङक बनाने वाली ग्रामीण विकास विभाग का ,
खर्च बीते साल की तुलना में 32 फीसदी ही खर्च कर पाया है. दूसरी तरफ 2016 के उद्योग नीति के तहत जो उद्योग लगानेे के लिए 20से 35 फीसदी तक राशि मुहैया कराया जाता था, को बंद कर दिया गया है. बिहार सरकार कोई उद्योग लगाना नहीं चाहती. सरकार की स्थिति खराब होने के कारण दिन व दिन अनुदान और रियायतों को समाप्त करती जा रही है. सरकार के कमजोर आर्थिक स्थिति का असर उनके मंत्रियों पर नहीं पड़ रहा है. हर मंत्री को हर साल उनके मकान के देखरेख के लिए तीन लाख रुपये दिये जाते है.

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