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बीच सड़क पर बच्ची का जन्म, मदद को नहीं आया समाज

अस्पताल के बरामदे पर बैठी प्रसूता. सिमरी : एक प्रसूता को अनुमंडल मुख्यालय के ब्लॉक चौक के पास बीच सड़क पर खुले में ही बच्चे को जन्म देना पड़ा. प्रसूता की सास बीच सड़क पर अपनी बहू का प्रसव कराती रही. लोग आते-जाते रहे. लेकिन किसी ने एक अदद साड़ी का घेरा लगाना उचित नहीं […]

अस्पताल के बरामदे पर बैठी प्रसूता.

सिमरी : एक प्रसूता को अनुमंडल मुख्यालय के ब्लॉक चौक के पास बीच सड़क पर खुले में ही बच्चे को जन्म देना पड़ा. प्रसूता की सास बीच सड़क पर अपनी बहू का प्रसव कराती रही. लोग आते-जाते रहे. लेकिन किसी ने एक अदद साड़ी का घेरा लगाना उचित नहीं समझा. प्रसव के बाद भी खून से लथपथ उसे एक ठेले पर लाद कर ही अस्पताल ले जाया गया. लेकिन किसी ने सुरक्षित गाड़ी की व्यवस्था कराने में मदद नहीं की. प्रसव की इस कहानी ने समाज को एक बार फिर शर्मसार कर दिया.
बीच सड़क पर…
25 मिनट तक चिल्लाती रही पीड़िता : बरियारपुर निवासी सूबेदार शर्मा व सुखिया देवी की गर्भवती पतोहू को सोमवार की सुबह प्रसव पीड़ा हुई तो ऑटो में बहू को बिठा कर अपनी पत्नी के साथ अस्पताल के लिए चले. ब्लॉक चौक के करीब पहुंचते ही प्रसव पीड़िता का दर्द असहनीय और तेज हो गया. उसके सास-ससुर किंकर्तव्यविमूढ़ हो गये. सास से बहू की छटपटाहट देखी नहीं गयी और उसने वहीं उसे ऑटो से उतार लिया. ऑटो से उतरते ही प्रसव पीड़िता सड़क पर सो गयी और दर्द से चिल्लाने लगी.
सास मदद की निगाह से इधर-उधर देखती रही. लेकिन आसपास के घरों से या आते-जाते लोगों से किसी तरह की मदद की कोई उम्मीद नहीं दिखायी दी. इधर पीड़िता का दर्द और चीख बढ़ता ही जा रहा था.
आनन-फानन में सास ने वहीं सड़क के बीचोंबीच बहू का प्रसव कराया. लगभग 20 से 25 मिनट तक सड़क पर चीखने-चिल्लाने व कराहने का दौर चलता रहा. लेकिन मदद के लिए न तो कोई महिला बाहर आयी और न ही समाज के किसी पुरुष ने अपनी सामाजिक व नैतिक जिम्मेवारी निभायी. बच्ची के जन्म देने व उसकी किलकारी गूंजने के दस मिनट के बाद पड़ोस से दो महिलाएं साड़ी लेकर निकली. लेकिन तब तक नवजात कपड़े में लपेटी जा चुकी थी और प्रसूता का तन ढका जा चुका था.
खून से लथपथ पहुंची अस्पताल
समाज का अनदेखापन यहीं समाप्त नहीं हुआ. बच्ची को जन्म देने के बाद भी जारी रक्तस्त्राव से उसका दर्द बना रहा. ससुर गाड़ी की खोज में इधर-उधर भटकते रहे. लेकिन अब भी किसी ने उसकी मदद नहीं की. अंत में उधर से गुजर रहे एक ठेला को रोक उसी पर जच्चा-बच्चा को लिटा अस्पताल ले गये. वहां भी उसकी सुधि लेने वाला कोई नहीं था.
उसे वहीं बरामदे पर घंटों बिठाये रखा गया. खून से सनी महिला के अस्पताल पहुंचने पर भी किसी डॉक्टर या नर्स ने देखना मुनासिब नहीं समझा. दर्द से कराह रही महिला अस्पताल के बरामदे पर बच्चे के साथ पड़ी रही. काफी विनती के बाद उसे बेड व इलाज मयस्सर हो सका.
कहां जा रहा है समाज
लोग आते-जाते रहे पर, किसी ने एक साड़ी का घेरा तक नहीं डाला
बगल से गुजरी पुलिस की जीप, पर देख कर भी किया अनदेखा
ठेले पर खून से लथपथ पहुंची अस्पताल, वहां भी बरामदे पर बिठाये रखा
एंबुलेंस की हड़ताल चल रही है. इसलिए परेशानी हुई है. मामले की जांच की जा रही है.
डॉ शशिभूषण प्रसाद, अपर स्वास्थ्य उप निदेशक

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