मैट्रिक में फर्स्ट डिविजन आने के बाद भी नालंदा के छात्र ने की आत्महत्या, इस बात से था परेशान

नालंदा में मैट्रिक परीक्षा के परिणाम से असंतुष्ट एक छात्र ने फांसी का फंदा लगा कर आत्महत्या कर ली. उसके कमरे से उसकी लाश बरामद की गई.

By Anand Shekhar | April 1, 2024 6:33 PM

बिहार के नालंदा जिले के सिलाव थाना क्षेत्र के सुरूमपुर गांव में एक छात्र ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. मृतक की पहचान नागेंद्र सिंह के 16 वर्षीय पुत्र साहिल कुमार के रूप में की गयी है. साहिल कुमार ने सिलाव श्री गांधी द्वितीय उच्च विद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा दी थी. 31 मार्च को बिहार बोर्ड मैट्रिक परीक्षा का रिजल्ट आया जिसमें मृतक साहिल कुमार प्रथम श्रेणी में पास हुआ. लेकिन वह अपने रिजल्ट से संतुष्ट नहीं था.

उम्मीद से कम आए नंबर

इस घटना के संबंध में मृतक के परिजनों ने बताया कि साहिल पढ़ाई में काफी अच्छा था. लेकिन जब मैट्रिक की परीक्षा में उसके अंक उम्मीद से कम आये तो साहिल डिप्रेशन में चला गया. रविवार की रात खाना खाने के बाद वह सोने चला गया जहां उसने गले में फांसी का फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली.

सुबह जब साहिल की मां उसे चाय पीने के लिए जगाने गई तो देखा कि उसके कमरे का दरवाजा अंदर से बंद है. काफी आवाज देने के बाद भी जब अंदर से कोई आवाज नहीं आई तो मां को अनहोनी की आशंका हुई. इसके बाद आसपास के लोगों को बुलाया गया और कमरे का दरवाजा तोड़ा गया तो अंदर का नजारा देख सभी अवाक रह गये.

पंखे से लटक कर साहिल ने की आत्महत्या

कमरे में पंखे में साहिल का शव लटक रहा था, देखते ही देखते माता पिता और परिजन में कोहराम मच गया. किशोर के शव को पंखे से नीचे उतारा गया और पुलिस को इस बात की जानकारी दी गई. घटना के सूचना मिलते ही, सिलाव पुलिस घटना स्थल पर पहुंच कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.

साहिल तीन भाइयों में सबसे बड़ा था. उसकी मौत के बाद परिवार का माहौल गमगीन है. लोगों का कहना है कि साहिल पढ़ने में अच्छा था और उसे उम्मीद थी कि वो अच्छे नंबरों से पास होगा.

आत्महत्या कोई उपाय नहीं

इस बात का ध्यान रखना भी जरूरी है कि परीक्षा में फेल-पास होना तो लगा रहता है. रिजल्ट खराब अथवा आशा के अनुरूप नहीं होने के एक नहीं, अनेक कारण हो सकते हैं. ऐसे में विद्यार्थियों को शांत रहने की कोशिश करनी चाहिए और किसी भी प्रकार के आत्मघाती विचार से सर्वथा बचना चाहिए. ऐसा इसलिए कि जीवन से बड़ा कुछ भी नहीं है. अभिभावकों को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वो अपने बच्चे के साथ भावनात्मक रूप से खड़े रहें, उन्हें प्यार करें, उनकी क्षमता पर भरोसा जताएं. रिजल्ट खराब होने की वजह से अगर किसी बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर असर पर रहा हो तो उसे किसी विश्वसनीय व्यक्ति या किसी एक्सपर्ट से सलाह लेनी चाहिए.

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