गुलशन कश्यप
जमुई जिले का भौगोलिक परिवेश अपने अंदर कई ऐसे इतिहास समेटे हुए है जो आज भी कई प्रश्नों के उत्तर ढूंढ रहा है तो कई प्रश्नों का जवाब भी अपने अंदर निहित किए है. भगवान महावीर की जन्मस्थली के रूप में जाना जाने वाले इस जिले का इतिहास केवल चार सौ नब्बे साल पुराना ही नहीं है. बल्कि आज से करीब छब्बीस सौ साल पहले 600 ईसा पूर्व में जब देश में महाजनपद काल का अभ्युदय हुआ और सोलह महाजनपद बनाए गए तब भी जमुई उन सोलह महाजनपदों में से एक व काफी प्रमुख माना जाता था.
जमुई जिले के खैरा प्रखंड क्षेत्र के घनबेरिया गांव के समीप नौलखा गढ़ के नाम से जीर्ण-शीर्ण अवस्था में एक किला मौजूद है जिसके बारे इतिहासकार दावा करते हैं कि पूरे देश में एकमात्र कौशांबी का किला ही इतना प्राचीन है जितना नौलखा गढ़ है.
इतिहासकार बताते हैं कि 600 ईसा पूर्व में जिन सोलह महाजनपद का अभ्युदय हुआ उनमें से एक था चेदि महाजनपद. जिसकी राजधानी गृहबृज या तत्कालीन राजगीर में स्थित थी. चेदि महाजनपद के राजा हुए वसु, जिनके पांच पुत्र थे. बृहद्रथ उनमें से सबसे बड़ा था और जरासंध बृहद्रथ के ही पुत्र हुए जिन्होंने बाद में मगध साम्राज्य की नींव रखी थी.
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वसु के बाद वृहद्रथ ही चेदि महाजनपद के राजा हुए. लेकिन उनके चार अन्य भाई प्रत्याग्रह, मणिवाहन, मवेला और यदु को भी उसी महाजनपद में अलग अलग छोटे जनपद का राज दिया गया था. बताया जाता है कि उन्हीं में से एक के लिए यहां एक महल बनवाया गया था. वर्तमान में जिस नौलखा गढ़ का अवशेष खैरा प्रखंड क्षेत्र में मौजूद है, वो चेदि महाजनपद के राजा का शस्त्रागार हुआ करता था.
इतिहासकार की माने तो शेरशाह सूरी जो बाद में दिल्ली का शासक बना था, 1530 के दशक में वह बंगाल अभियान पर आया था. इस दौरान उसने चेदि महाजनपद के उसी शस्त्रागार को अपने सैनिक के छावनी के रूप में इस्तेमाल करने का मन बनाया था. बंगाल अभियान के दौरान जब उसे के सैनिकों को रुकने की जगह चाहिए थी, तब उसने जीर्ण शीर्ण अवस्था में पड़े नौलखा गढ़ के इसी किले को छावनी के रूप में विकसित करना शुरू कर दिया था.
थोड़े दिनों के बाद जब उसका निर्माण कार्य आगे बढ़ा तब अपने किसी सलाहकार के सलाह के बाद उसने महल की सुरक्षा व्यवस्था को जांचने का मन बनाया और आसपास की पहाड़ियों के ऊपर एक तोप रखकर उसके ऊपर उसका गोला दागा. जिसके बाद वह किला तोप के गोले के निशाने में आ गया और उसने सैनिक छावनी बनाने का काम रोक दिया था. तब से ही यह किला उसी अवस्था में पड़ा है.
इतिहासकार डॉ रविश बताते हैं कि इतिहासकार हेमचंद्र राय चौधरी ने अपने रिसर्च में चेदि शासनकाल को वर्तमान में उत्तर प्रदेश के बांदा में बताया है. जबकि इतिहासकार दिलीप कुमार चंद्रवंशी ने इसे मध्य प्रदेश के रीवा में बताया है. उन्होंने कहा कि आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पहले डायरेक्टर जनरल कनिंघम और उनके सहायक जोसेफ डेविड ने वर्ष 1878 में अपने रिसर्च की थी. जिसके अनुसार चेदि महाजनपद शक्तिमति नदी के किनारे पर अवस्थित था. इस कारण उसे शक्ति मती के नाम से भी बुलाया जाता था.
आदि पर्व विष्णु पुराण के अनुसार चेदि वंश के राजा की शादी कोलाहल एवं कोंड पहाड़िया तथा शक्ति मति की पुत्री के साथ हुआ था. कोलाहल एवं कोंड को वर्तमान में कौआकोल के नाम से जाना जाता है. जबकि गृहब्रिज को राजगीर और शक्ति मति नदी को वर्तमान में सकरी नदी के नाम से जानते हैं. उन्होंने यह भी बताया कि इतिहास में ऋषिकुल्य और कुमारी नदी का भी वर्णन है. ऋषिकुल्य को वर्तमान में किऊल तथा तथा कुमारी नदी को करहरी नाम से जाना जाता है.
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दरवाजे: 4
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सीढियां: 8
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दीवार की ऊंचाई : 38 फीट
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जमुई मुख्यालय से दूरी: 10 किलोमीटर
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जंगली क्षेत्र: गिद्धेश्वर हिल रेंज
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पंचायत: गोपालपुर
Posted By: Thakur Shaktilochan