Navratri को लेकर बिहार के प्रमुख शक्तिपीठ थावे में मां सिंहासिनी का दरबार सज-धज कर तैयार हो गया है. नवरात्र के पहले दिन सोमवार की सुबह चार बजे मंगला आरती के साथ ही दर्शन शुरू हो जायेगा. मां के दर्शन मात्र से भक्तों के सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं. नेपाल से लेकर यूपी, दिल्ली, झारखंड के लाखों भक्तों की अास्था का केंद्र बना हुआ है. मां के दरबार में बारिश के बीच साधकों और पंडितों के द्वारा अनुष्ठान की तैयारी शुरू कर दी गयी है.
मंदिर के पूजारी पं सुरेश पांडेय बताते हैं कि एक बार इलाके में भीषण अकाल पड़ा था. जब भीषण अकाल में भी इस किसान की खुशहाली की सूचना इस राज्य के राजा मनन सिंह को मिली तो उन्होंने किसान को अपने दरबार में बुलाया. किसान ने बताया कि मां कामाख्या का एक भक्त है रहसु, उसके कारण जनता को अनाज मिल रहा है. दरबार में आते ही राजा मनन सिंह ने रहसु भगत से भीषण अकाल में भी धान की अच्छी पैदावार करने और खेती की जानकारी ली. लोगों ने बताया कि मां का एक भक्त रहसु हैं. उनके कारण लोगों में अनाज बंट रहा है.
राजा ने जानना चाहा कि कैसे रहसु भगत उस समय धान की खेती करते थे. तो पता चला कि वे बाघ के गले में विषैले सांपों का रस्सी बनाकर धान की दवरी करते थे. खेती-बारी से समय मिलते ही रहसू भगत देवी मां की आराधना में लीन हो जाते थे. वे मां की परम कृपा से खुशहाल जीवन जी रहे थे. राजा मनन सिंह ने जब रहसु भगत से कहा कि वे अपनी आराधना से देवी कामाख्या माता को यहां बुलाए. तब रहसु भगत ने राजा मनन सिंह को ऐसा नहीं करने की सलाह दी. मगर जब राजा नहीं माना तो उन्होंने मां को बुलाया, इससे राजा का महल टूट गया और उसकी मृत्यु हो गयी.
मंदिर के मुख्य पुजारी पं सुरेश पांडेय ने बताया कि मंगला आरती के साथ ही दर्शन शुरू होगा, जो रात के 10 बजे तक अनवरत जारी रहेगा. शयन आरती के साथ मंदिर बंद होगा. नवरात्र के पहले दिन मां को सफेद वस्त्र और सफेद फूल और सफेद भोग चढ़ाने चाहिए. साथ ही सफेद बर्फी का भी भोग लगाना चाहिए. नारियल व चुनरी मां को चढ़ाने की परंपरा है. मां के इस पहले स्वरूप को जीवन में स्थिरता और दृढ़ता का प्रतीक माना जाता है. शैल का अर्थ होता है पत्थर और पत्थर को दृढ़ता की प्रतीक माना जाता है.