नवादा : सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर बैन लगाने का जो फैसला लिया है यह एक ऐतिहासिक और स्वागत योग्य फैसला है. महिलाओं को कठपुतली की तरह इस्तेमाल करने पर अब प्रतिबंध लग गया है. इस फैसले से कई मुस्लिम महिलाओं का घर उजड़ने से बच गया है.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का हम दिल से सम्मान करते हैं. यह बातें व्यवहार न्यायालय के मुस्लिम महिला अधिवक्ता उजमा नसीम ने कही. उन्होंने बताया कि इस तीन तलाक को मुस्लिम धर्म के पुरूषों ने मजाक बना कर रख दिया था. पति शराब के नशे में आकर तीन तलाक कह दे तो बेचारी पत्नी का गृहस्थ जीवन ही उजड़ जाता है. ऐसे कई कारण है कि मुस्लिम महिलाएं आज भी भुगत रही हैं.
14 सौ साल पुरानी तीन तलाक की परंपरा ने तोड़ दिया दम : देश की आजादी का जश्न अभी जेहन से उतरा भी नहीं था कि सुप्रीम कोर्ट के तीन तलाक पर बैन की घोषणा ने उन मुस्लिम विवाहित महिलाओं को दाम्पत्य जीवन जीने की ऐतिहासिक आजादी मिल गई है.
पिछले 14 सौ सालों से तीन तलाक की परंपराओं के गुलाम बनकर रह रही मुस्लिम महिलाओं के लिये सचमुच आजादी के जश्न से कुछ कम नहीं है. मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के अचानक दोपहर में आयी सूचना ने विवाहित मुस्लिम महिलाओं को ही नहीं बल्कि उन बालिकाओं के लिये भी खुशी का पल साबित हुआ है. जिनके जेहन में यह डर लगा रहता था कि शादी के बाद उनका जीवन तीन तलाक के नाजुक डोर पर लटका रहेगा. यह फैसला उन माता पिता के लिये भी खुशी का संदेश लेकर आया है, जिन्हें तीन तलाक के डर से दामाद के हर सितम को सहने के लिये मजबूर रहना पड़ता था.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला सर्वमान्य होता है. हम इसकी इज्जत करते हैं अब यह देखना होगा कि कोर्ट ने अपने ऑर्डर में क्या कहा है. शरीयत के अनुसार क्या मामला बनता है, यह देखना होगा. वैसे पहले से टेलीफोन,खत आदि के द्वारा जो तलाक दिये जाते थे, वह निश्चित ही गलत था. फैसले के बारे में और अधिक जानकारी के मिलने के बाद ज्यादा बेहतर तरीके से टिप्पणी करना अच्छा रहेगा.
सलमान रागीब मुन्ना, विधान पार्षद
इस्लाम में तीन तलाक को कुरान और नबी साहब ने लागू किया है इसलिए कोर्ट के कोई भी फैसला इसे बदले यह उचित नहीं है. यह एक मजहबी मामला है और इसमें इस्लाम के कानून की बात ही माना जायेगा. ट्रिपल तलाक पर शरीयत जो कहता है उस पर इस्लाम मानने वाले अमल करेंगे. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से शरीयत कानून में फर्क नहीं पड़ेगा. हर सूरते हाल में कौम के कानून को ही अपनाना मुनासिब होगा.
नसीरउद्दीन मजाहिरी, जनरल सेकेट्री, जमायते -ए-उलेमा हिन्द, नवादा
पति के आवेश से तीन तलाक होते-होते बचा
अधिवक्ता उजमा ने बताया कि हमारे पड़ोस में इस तीन तलाक का दुरुपयोग होते जो देखा है,वह आज भी याद कर रोंगटे खड़े कर देते हैं. उन्होंने उसका नाम नहीं बताने के शर्त पर बताया कि पड़ोस में एक परिवार रहता है जिसका दांपत्य जीवन हंसी-खुशी गुजर रहा था.
लेकिन एक दिन छोटी सी बात को लेकर विवाद हुआ और गुस्से में आकर उस महिला के पति ने तीन तलाक बोल दिया. परंतु जैसे ही दो बार पति के मुंह से तलाक का शब्द निकला और तीसरे तलाक का शब्द निकलने से पूर्व ही उस महिला ने अपना कान दोनों हाथों से बंद कर घर से बाहर निकल गयी. कहा जाता है कि पति द्वारा तीन तलाक कहे जाने पर जब पत्नी के कान में सुनाई पड़ जाती है तो वह तीन तलाक कबूल माना जाता है. इस घटना को देखकर आज भी समाज के इस दकियानूस परम्परा को देखकर तरस आता है कि हम महिलाओं के जीवन का कोई मोल नहीं है.
परंतु सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले ने कई घरों को उजड़ने से बचा लिया है. उन्होंने कहा कि यह केवल उन औरतों के लिये ही फायदेमंद नहीं है बल्कि उन मर्दों के लिये भी फायदेमंद है जिन्होने जवानी में तीन तलाक आसानी से कह कर पत्नी से अलग हो जाते है. जब यही तीन तलाक उनके बेटी के साथ होती है तब समझ में आता है कि तीन तलाक कितना कष्टकारी शब्द है. वैसे इस परम्परा पर बैन लग जाने से किसी को लाभ पहुंचे या नहीं पर मुस्लिम महिलाओं के लिये यह एक वरदान केसमान है.