रमजान पर पहली बार रोजा रख रहे बच्चों में त्योहार को लेकर उत्साह

वारिसलीगंज : रमजान एक पाक महीना है. इस माह में सारे मुसलमान पर रोजा फर्ज होता है. चाहे वह 14 साल का बच्चा हो या 60 वर्ष का बुजुर्ग. रमजान के पहले दिन से ही बच्चों में इसका उत्साह देखने को मिलता है. ऐसे में वह बच्चे जिन्होंने पहली बार रोजा रखा, उनकी खुशी और […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 8, 2018 5:34 AM

वारिसलीगंज : रमजान एक पाक महीना है. इस माह में सारे मुसलमान पर रोजा फर्ज होता है. चाहे वह 14 साल का बच्चा हो या 60 वर्ष का बुजुर्ग. रमजान के पहले दिन से ही बच्चों में इसका उत्साह देखने को मिलता है. ऐसे में वह बच्चे जिन्होंने पहली बार रोजा रखा, उनकी खुशी और अनुभव की बात ही कुछ और होती है.सुबह-सुबह उठना, सेहरी करना, अम्मी या अब्बू के साथ नमाज अदा करना, शाम होते ही किचेन में सारे पकौड़े और शरबत देख इफ्तार का इंतजार करना, इफ्तार का वक्त हो तो सबसे पहले आकर दस्तखान पर बैठ जाना. ये सारी बाते नन्हे रोजेदार को साल भर याद रहती है. नन्हे रोजेदार नौमान खान के पुत्र कामरान, साबिर खान के पुत्र जाकिर खान,अहमद कुरैसी के पुत्र समीम कुरैशी, फिरोज खान के पुत्र हसनैन सभी मुड़लाचक मोहल्ला निवासी समेत अन्य मासूमों के होठ प्रतिदिन सुख जाते हैं. इतनी ताकत नहीं बचती है कि और दिनों की तरह बाहर जाकर दोस्तों के साथ खेलकूद कर सके.

लेकिन यह बच्चे हिम्मत नहीं हारते. पूरे दिन अम्मी व अब्बू से पूछा करते हैं,अम्मी कब होगी शाम प्यास लगी है. रोजेदार का मासूम चेहरा देख अम्मी-अब्बू, नाना-दादा का कलेजा मुंह को आ जाता है. लेकिन, उनलोगों को इस बात की खुशी रहती है कि अल्लाह के हुक्म से मासूम ने खाना-पीना छोड़ा और इफ्तार के लिए अजान होने का इंतजार करते हैं. वहीं, घर के सारे सदस्य बच्चे रोजेदार को दिलासा देते रहते हैं. इस बीच अल्लाह हो अकबर की आवाज कानों तक पहुंचती है. तब बच्चे रोजदारों के मुंह से सहसा निकल पड़ता है, अम्मी शाम हो गयी. इतना सुनते ही अम्मी ने भी अपने जिगर के टुकड़े को पसंद का इफ्तार सामने रखती है. तब जाकर बच्चे रोजेदारों के चेहरे पर थोड़ा ताजगी दिखती है. थोड़ा इफ्तार खाया, शरबत पी और निहाल हो गया. वहीं, बड़ों ने भी उनके साथ इफ्तार कर अल्लाह का शुक्रिया अदा किया करते हैं.

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