दु:ख की घड़ी में भी विचलित न हों
दु:ख की घड़ी में भी विचलित न हों वारिसलीगंज. सुख का क्षण तो आनंदमयी होता ही है. सुख की घड़ी में ज्यादातर लोग दुख को भूलकर दुखी प्राणी पर दया नहीं दिखाते. वहीं, दुख की घड़ी में ज्यादातर लोग विचलित हो जाते हैं. जबकि, सुख-दुख दोनों सहोदर भाई है. सुख का क्षण चाहे जितना तुक्ष […]
दु:ख की घड़ी में भी विचलित न हों वारिसलीगंज. सुख का क्षण तो आनंदमयी होता ही है. सुख की घड़ी में ज्यादातर लोग दुख को भूलकर दुखी प्राणी पर दया नहीं दिखाते. वहीं, दुख की घड़ी में ज्यादातर लोग विचलित हो जाते हैं. जबकि, सुख-दुख दोनों सहोदर भाई है. सुख का क्षण चाहे जितना तुक्ष हो, उसे बड़ा समझना चाहिए. साथ ही दुख का क्षण चाहे जितना बड़ा हो, उसे छोटा समझना चाहिए. यह बातें सोमवार को सियाराम किला के संत श्रीश्री 108 प्रभंजनानंद जी महाराज ने नौ दिवसीय रामकथा के तीसरे दिन कहीं. उन्होंने कहा कि जीवन के प्रत्येक परास्थिति में जुड़े रहने व अनुकूल भाव में भी भगवान पर विश्वास करने वाला व्यक्ति बुद्धिमान कहलाता है. जबकि, सदा धैर्य रखने वाला व विचलित नहीं होने वाला व्यक्ति को परमात्मा की प्राप्ति अवश्य होती है. सुख में हंसने की जरूरत नहीं व दुख में रोने की आवश्यकता बिल्कुल नहीं है. जरूरत है तो सिर्फ प्रभु पर अटूट विश्वास का. महाराज ने कहा कि संसार में प्रत्यक्ष रूप से चार को भगवान माना गया है. जिसमें माता, पिता, गुरू व अतिथि मुख्य है. इन चारों भगवान की पूजा दिल से करने वाला व्यक्ति कभी दुखी नहीं हो सकता. जबकि, इनका अपमान करने वाला व्यक्ति धनवान होते हुए भी सुखी नहीं रह सकता. क्योंकि, मानवता की सेवा ही प्रभु सेवा है. भगवान राम ने स्वयं माता-पिता व गुरू का सम्मान में कोर कसर नहीं छोड़ती. मौके पर उपस्थित श्रद्घालुओं ने शांतचित से सुनने को आतुर दिखे. कार्यक्रम को डॉ गोविंद जी तिवारी, डॉ हरेराम, कार्यानंद शर्मा, शंकर कुमार आदि ने सफल बनाने में तत्पर दिखे.