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रोज 11 हजार रुपये की आमदनी

नवादा : राज्य पथ परिवहन निगम धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोता जा रहा. 45 वर्ष पहले व अब में आसमान जमीन का अंतर हो गया है. उन दिनों प्रतिदिन 18 हजार रुपये का आय था. बावजूद व्यवस्था इतनी चुस्त-दुरुस्त थी कि यात्री निगम की बसों में यात्र करने को प्राथमिकता देते थे. परंतु, अभी लोग निगम […]

नवादा : राज्य पथ परिवहन निगम धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोता जा रहा. 45 वर्ष पहले व अब में आसमान जमीन का अंतर हो गया है. उन दिनों प्रतिदिन 18 हजार रुपये का आय था. बावजूद व्यवस्था इतनी चुस्त-दुरुस्त थी कि यात्री निगम की बसों में यात्र करने को प्राथमिकता देते थे.

परंतु, अभी लोग निगम को लगभग भूल चुके हैं. बावजूद इन दिनों निगम को प्रतिदिन करीब 11 हजार रुपये का आय हो रहा है. लेकिन, अपनी गाड़ी की कमी है, जो कुछ आय हो रहा है है व इसके नियंत्रण में चलने वाली बसों से हो रहा है.

निगम का अपना तीन स्टैंड है. इसमें डीपो, पार नवादा व नवादा-जमुई पथ पर रेलवे क्रॉसिंग बस पड़ाव शामिल है. 1965 में निगम का अपना भवन डीपो से बना था, जो आज जजर्र हो चुका है. उन दिनों डीपो को अपना वर्कशॉप, डीजल पंप, कैंटिन, टी स्टॉल, बुक स्टॉल व यात्रियों के लिए तीन जगह पेयजल व अन्य व्यवस्था हुआ करती था.

1971 में निगम की 31 गाड़ियां डीपो से संचालित होती थी. दो गाडी हमेशा रिजर्व रहती थी ताकि यात्रियों को वाहन के कारण परेशानी नहीं हो सके. इसके अलावा डीपी होकर 84 गाड़ियां 24 घंटे चलती थी.

यहां से रांची, धनबाद, बोकारो, चाइबासा, गया, पटना, जमुई मुंगेर, भागलपुर, रक्सौल आदि शहरों के लिए गाड़ियां चलती थी. उन दिनों डीपो में 94 कर्मचारी कार्यरत थे. परंतु, अभी 20 कर्मचारी व एक सुपरिटेंडेंट ही कार्यरत हैं. इसमें एक प्रधान लिपिक, एक रोकड़ पाल, दो समय पाल, दो पत्रक शाखा, एक पकरीबरावां समय पाल, सात सहायक मैकेनिक, पांच चालक व एक सांख्यिकी शामिल है.

अभी और 35 कर्मचारियों की जरूरत है. यहां के कर्मचारियों को आज भी चौथे वेतनमान के मुताबिक की वेतन दिये जा रहे हैं.

निगम का अपना सात एकड़ जमीन है. इसमें व्यवहार न्यायालय के भवन निर्माण को लेकर दो एकड़ 46 डिसमिल जमीन दिया गया था. लेकिन, 15 वर्षो के बाद भी इस जमीन के बदले निगम को न ही कोई जमीन मुहैया करायी गयी और न ही किसी प्रकार के रुपये का भुगतान ही किया गया है.

यह जानकारी डीपो के सुपरिटेंडेंट सुरेश प्रसाद सिंह ने दी. 65 के दशक में प्रति स्टॉपेज 55 पैसे भाड़ा लगता था, लेकिन चार रुपये लगता है.

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