मछली पालन में है रोजगार की असीम संभावनाएं

बरसात से पहले मछली पालन के लिए तैयारी की जरूरत

By Prabhat Khabar News Desk | April 24, 2024 11:19 PM

बाहर के राज्यों से जिला में होती है अधिकतर मछली की आपूर्ति

फोटो

कैप्शन – मछली पालन के लिए बना तालाब

प्रतिनिधि, नवादा सदर

मछली पालन में रोजगार की बहुत अधिक संभावनाएं हैं. सरकारी योजनाओं को धरातल पर उतारकर जरूरतमंद लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया जाये, तो इसका लाभ स्थानीय लोगों को मिलेगा. मछली पालन के कई आयाम है इन सभी आयामों का समन्वित रूप से विस्तार और विकास करना होगा. मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए सरकार की योजनाओं के बारे में जानकारी होना आवश्यक है. मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र और राज्य सरकार के द्वारा सभी वर्ग के लोगों को मदद पहुंचाने के लिए योजना शुरू की गई है. मछली पालन के लिए अधिक से अधिक तालाब बनाने को लेकर सरकारी स्तर पर कई सब्सिडी की योजनाएं हैं. मछली पालन के लिए मछली बीज बनाने की व्यवस्था, बेचने के लिए वाहन की उपलब्धता, आइस फैक्ट्री जैसे कई प्रोजेक्ट में मदद की जाती है. विभिन्न मछली उत्पादन से जुड़े कार्यों के लिए आवेदन लिए जाते हैं. ऑनलाइन तरीके से होने वाले इस आवेदन में नए तालाब का निर्माण, पुराने तालाब का जीर्णोद्धार, मछली के विपणन को लेकर 3 पहिया, दोपहिया और चार पहिया वाहनों की खरीदारी, आइस प्लांट जैसे अन्य कार्यों के लिए एससी एसटी एवं महिला आवेदकों को 60% तथा सामान्य और ओबीसी कोटि के लोगों को 40% अनुदान दिया जाता है.

अन्य माध्यमों से भी बने हैं तालाब

जिला में लघु सिंचाई विभाग के द्वारा भी लगभग 100 से अधिक बड़े तालाबों का निर्माण किया गया है. जहां पर मछली उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा. जिला मत्स्य पालन विभाग के माध्यम से प्रधानमंत्री संपदा योजना के तहत दिए जाने वाले लाभ का आवेदन ऑनलाइन लिया गया है. इस योजना के तहत अधिकतम 2 हेक्टेयर तथा न्यूनतम 1 एकड़ जमीन पर तालाब बनाने के लिए सब्सिडी दी जाती है. यदि प्रशिक्षित युवक के पास अपना जमीन नहीं है तो लीज या पट्टा पर नौ सालों के लिए जमीन लेकर तालाब बनाकर मछली पालन किया जा सकता है. इसके अलावा प्रथम वर्ष इनपुट योजना के तहत एक हेक्टेयर के तालाब में डेढ़ लाख रुपए का लोन दिया जाता है. इसमें भी सब्सिडी दी जाएगी. कम जमीन पर तालाब बना कर रोजगार शुरू करने की योजना रखने वाले लोगों के लिए बायो फ्लॉक यूनिट के तहत पांच यूनिट बनाने के लिए 13 लाख रुपए का लोन उपलब्ध कराया जाएगा. इसमें प्रत्येक यूनिट को 10 गुणे 10 या 20 गुणे 10 का सीमेंट टैंक से बनाया जाएगा. इसमें मछली पालन के लिए सामान्य कोटि के लोगों को 50% तथा एससी एसटी कोटि के लोगों को 75% सब्सिडी दिया जाना है.

मांग के अनुरूप नहीं होती है मछली का उत्पादन

मछली उत्पादन के मामले में जिला काफी पीछे है. मांग के अनुरूप यहां एक तिहाई मछली का भी उत्पादन नहीं हो पा रहा है. स्थानीय बाजार पूरी तरह से दूसरे राज्यों से आने वाले मछलियों पर निर्भर करता है. स्थानीय स्तर पर हो रहे मछली उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए पशुपालन विभाग के द्वारा कई गतिविधियां चलाई जा रही है बावजूद जल संचयन की क्षमता कम होने के कारण यहां मछली का उत्पादन काफी कम मात्रा में होती है. वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार किये गये आकलन के अनुसार जिला में लगभग एक करोड़ 22 लाख 5 हजार 303 किलोग्राम मछली का खपत प्रति वर्ष है. लेकिन जिला में महज 4.5 मीट्रिक टन मछली का उत्पादन हो पाता है. शेष मछली उत्पादन के लिए जिला के लोगों को बाहर से आने वाली मछलियों पर निर्भर करना पड़ता है. ध्यान रहे कि यह आंकड़ा पुरानी जनगणना के अनुसार ही है जबकि नए स्थिति में आबादी बढ़ने के साथ मांग और भी अधिक बड़ी है, लेकिन जिला में संसाधनों के अभाव के कारण ही इस मांग की आपूर्ति नहीं हो पाती है.

मछली पालन में है बेहतर कैरियर

किसानों के लिए अपनी खेती के साथ मछली पालन तथा पशुपालन एक बेहतर विकल्प है जो कि उनकी आमदनी को बढ़ा सकता है. मत्स्य पालन विभाग के दावे को माने तो सरकार द्वारा कई प्रकार के अनुदान तथा अन्य लाभ की योजनाएं दी जाती है जिनका लाभ मछली पालक किसानों को दिया जाता है. नया तालाब बनाने, मछली पालन के इच्छुक लोगों को ट्रेनिंग देने, उन्हें अनुदान उपलब्ध कराने आदि के कामों में विभाग द्वारा मदद किये जाने का दावा किया जाता है.

496 सरकारी तालाब, वर्षा जल पर है निर्भर

मत्स्य विभाग द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार जिले में 496 सरकारी तालाब, आहर, पाइन है. इसका कुल क्षेत्रफल 786.77 हेक्टेयर तथा प्राइवेट स्तर पर कुल 1004 तालाब है जिसका क्षेत्रफल 1560 हेक्टेयर है. तालाब के सही रखरखाव नहीं होने के कारण कई स्थानों पर इसका अतिक्रमण भी हो गया है सरकारी स्तर पर जो समितियां बनी हुई है वहां तो सभी तालाबों का टेंडर होता है लेकिन कई ऐसे स्थान है जहां पर टेंडर भी नहीं हो पाता. विभाग की रिपोर्ट के अनुसार तालाबों का टेंडर हुआ है जो कि तीन सालों के लिए निबंधित किया जाता है. जिला में तालाबों के रखरखाव के लिए पानी की सबसे बड़ी समस्या है. सुखाड़ क्षेत्र होने के कारण वर्षा जल पर पूरी तरह निर्भरता होती है इसके अलावा कई प्राइवेट स्तर पर मछली पालन करने वाले लोग मोटर पानी का भी इस्तेमाल करते हैं

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Next Article

Exit mobile version