अबरक लदे ट्रैक्टर को वन विभाग ने किया जब्त, प्राथमिकी दर्ज
सवैयाटांड़ में दर्जनों जगहों पर अबरक का अवैध खनन जारी
रजौली़ प्रखंड क्षेत्र की सुदूरवर्ती पंचायत सवैयाटांड़ में दर्जनों जगहों पर वन विभाग के नाकों के नीचे अवैध खनन बेरोकटोक जारी है. ग्रामीणों ने कहा कि पर्व-त्योहार के नजदीक आने पर छापेमारी का भय दिखाकर छोटे से लेकर बड़े खनन माफियाओं से वनकर्मियों को वसूली करने में आसानी होती है. बताते चलें कि बीते शनिवार की रात सवैयाटांड़ के बसरौन गांव से वनकर्मियों ने माइका लदे एक ट्रैक्टर को जब्त किया. रेंजर मनोज कुमार ने बताया कि बसरौन गांव में माइका लदा हुआ ट्रैक्टर है. गुप्त सूचना के सत्यापन व आवश्यक कार्रवाई के लिए वनपाल पंकज कुमार, वनपाल रवि कुमार, वनरक्षी राहुल कुमार व विकास कुमार के अलावा अन्य लोगों को स्थल पर भेजा गया. छापेमारी के दौरान बसरौन गांव में ट्रैक्टर पर लदे माइका को जब्त कर वन परिसर कार्यालय रजौली लाया गया है. जब्त ट्रैक्टर व माइका को लेकर प्राथमिकी दर्ज कर ली गयी है. अवैध अभ्रक खनन में झारखंड व बिहार के माफिया सक्रिय वन परिक्षेत्र सवैयाटांड़ पंचायत में खजाना लूट रहा है और जिम्मेदारों को इसकी भनक तक नहीं है. उन्नत किस्म के अबरक खादान के लिए प्रसिद्ध रजौली के सवैयाटांड़ व सपही के पहाड़ी क्षेत्रों के बीच जंगलों में भी अबरक का भंडार है. इस भंडारण पर माफियाओं की काली नजर दशकों से लगी है और अवैध उत्खनन कर खजाने को लूटा जा रहा है. नतीजतन सरकार को लाखों के राजस्व का चूना लग रहा है. यहां के ललकी,फगुनी, कोरैया, बोकवा, सेठवा, करोड़वा,मुरगहवा, बसरौन आदि माइंस सहित अन्य इलाकों से स्थानीय लोगों व माफियाओं की मिलीभगत से अबरक की अवैध खुदाई कर तस्करी की जा रही है. कहा तो यह भी जाता है कि काली कमाई में नक्सली गतिविधियों से जुड़े लोग भी हिस्सेदार हैं. यही वजह है कि यह धंधा यहां लंबे अरसे से बेहद गुप्त तरीके से वृहद पैमाने पर जारी है. झारखंड के कई बड़े माफिया इस अवैध धंधे से जुड़े हुए हैं. बच्चों से कराया जाता है खनन मिली जानकारी के अनुसार, अवैध खुदाई में स्थानीय गरीब मजदूरों व उनके नाबालिग बच्चों को लगाया जाता है. यह मजदूर कठिन परिश्रम और मेहनत से अबरक की खुदाई करते हैं. तदुपरांत उसे स्थानीय दलालों के जरिये पांच रुपये किलो खरीद कर तस्करों को दी जाती है. बदले में दलालों को चार पांच हजार रुपया प्रति गाड़ी भुगतान किया जाता है. स्थानीय धंधेबाज भोले-भाले गरीब मजदूरों को बरगला कर जंगली इलाके से उत्कृष्ट गुणवत्ता युक्त इस खनिज की अवैध खुदाई करा कर ऊंची कीमतों पर उन्हें बाहरी प्रदेशों में बेच रहे हैं. माफिया उसे हाइवा और ट्रकों में भरकर जंगली और मुख्य रास्ते से झारखंड के गिरिडीह, कोडरमा, तीसरी, हजारीबाग के इलाके में ले जाकर ऊंची कीमतों में बेचा देते हैं.खुदाई से हरी भरी पेड़ों की भी बर्बादी हो रही है. जानकार बताते हैं कि इस इलाके मेें सैंकड़ों एकड़ जमीन में अबरक का विशाल भंडार है. इसमें न जाने कितने मजदूरों की लाशें दफन हो गयी होंगी. रंधेर में खनन कराते है माफिया, खतरा माफियाओं के द्वारा खनन करने के लिए रात के अंधेरे का उपयोग किया जा रहा है. माफियाओं के द्वारा पहले डेटोनेटर व जिलेटिन के जरिये ब्लास्ट कराने के उपरांत मशीनों व मजदूरों को अबरक चुनने के लिए लगाया जाता है. इससे कहीं बार कमजोर पड़ चुकी सुरंगों की चाल धसने से खनन करने वाले मजदूरों को मिट्टी में दबकर जान गवानी पड़ती है. उसके बाद घटना की लीपापोती हजार से लाख रुपये तक देकर कराया जाता है. इस तरह से पुलिस में बहुत कम हीं मामले पहुंच पाते हैं. जब पुलिस को घटना की जानकारी होती है, तो उन्हें चुप कराने के लिए अच्छी खासी रकम व सफेद पोसों की मदद से रफा-दफा कराकर मामले को शांत कराया जाता है. इधर, वन विभाग के पदाधिकारियों का कहना है कि उन्हें इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है. बहरहाल लोगों के मानें तो सफेद खनिज से काली कमाई में स्थानीय स्तर के अधिकारियों व कर्मियों की भी हिस्सेदारी से इन्कार नहीं किया जा सकता है.
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