प्रतिनिधि, वारिसलीगंज
प्रेम और सद्भाव की प्रतीक मड़ही पूजा कार्तिक द्वितीया को वर्ष 1974 से अनवरत शाहपुर पंचायत स्थित बाली गांव में होते आ रही है. इस वर्ष यह पूजा 19 व 20 अक्त्तूबर को निर्धारित है. इस अवसर पर जाति, धर्म, मजहब की दीवार ढह जाती है. सभी वर्ग एक होकर इस पूजा में शामिल होते हैं. साथ ही आध्यात्मिक सुख को ग्रहण करते हैं. दूर-दराज से हजारों लोग इस वारसी दर पर आते हैं. मनौतियां मांगते हैं. मनौतियां पूरा होने पर प्रसाद और चादर चढ़ाते हैं. पूजा की शुरुआत बाली गांव में बनारस जी ने शुरू की थी. अब यह पूजा वृहत रूप ले चुकी है. दो दिनों तक चलने वाली इस पूजा में दूर-दराज लोग आकर अपनी हाजरी लगाते हैं. 19 अक्त्तूबर को दोपहर 3:30 बजे के बाद ब्रह्म मुहूर्त में परम सत्ता का अह्वान सनातन तरीके से किया जायेगा. दूसरे दिन 20 अक्त्तूबर की सुबह नौ बजे के बाद मुंडन संस्कार संपन्न होगा. यह कार्यक्रम चार बजे शाम तक चलेगा. रात भर यहां गीत, संगीत व कव्वाली का कार्यक्रम चलता रहता है. पूजा को लेकर ग्रामीण जनता में उल्लास का माहौल है. सभी लोग पूजा की तैयारी में जुटे हैं. पूजा के व्यवस्थापक देवाश्रय कुमार चंचल ने बताया कि इस पूजा में लोगों का आना जाना पूर्णिमा से ही शुरू हो जाता है. करवा चौथ के दिन मालिक की गद्दी उठायी जाती है. वहीं, खिचड़ी रूपी महाप्रसाद को खिलाकर सबों की विदाई की जाती है. बताया गया कि बाली में सरकार वारिस पाक की गद्दी है, जहां सभी आकर चादर चढ़ाते हैं. अपने समय में वारिस पिया वाजिदपुर जाने के क्रम में यहां विश्राम करने के लिए रुका करते थे. वहीं आज चादर पेशी होती है. यहां के महंथ जी (बनारस बाबू) को पांडेगगौट के पंचवदन बाबू का भी आशीर्वाद प्राप्त है. उन्होंने ही भविष्यवाणी की थी कि जो मैं कर रहा हूं, वही यहां भी होगा. पूजा के आरती के बाद प्रसाद वितरण का कार्यक्रम होता है, जो लगभग चार बजे सुबह से अनवरत चलता रहता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है