नवादा कार्यालय. बिहार में डबल इंजन की सरकार जनता को धोखा दे रही है. केंद्र की सरकार बिहार को जो पैकेज देती है, उसमें गरीबों के लिए कहीं कुछ नहीं होता है. बिहार को आगे बढ़ाने के लिए शांति और भाईचारे की जरूरत है. उक्त बातें भाकपा माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने प्रेसवार्ता के दौरान कहीं. उन्होंने बताया कि बदलो बिहार न्याय यात्रा 16 अक्त्तूबर से नवादा से शुरू होगी. यह यात्रा 25 अक्तूबर चलेगी. इसके अलावा राज्य के चार अन्य स्थानों से यह यात्रा निकाली जा रही है. नवादा से निकलने वाली यात्रा में हम तीन विधायकों और अन्य लोगों के साथ चलेंगे. नवादा से पटना के लिए जारी यात्रा में विधायक गोपाल रविदास, अरवल विधायक महानंद, कोसी विधायक रामबली के साथ जेएनयू के छात्र संघ अध्यक्ष बिहार गया से धनंजय और एमएलसी शशि यादव के साथ अन्य लोग शामिल रहेंगे. कृष्णा नगर से शुरू होगी यात्रा : उन्होंने कहा कि न्याय के साथ विकास वाली डबल इंजन की सरकार करीब दो दशकों से बिहार की जनता पर डबल बुलडोजर चला रही है. दलितों, गरीबों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों पर जारी हमले सुशासन की पोल खोल रहा है. नवादा जिले में मांझी व रविदास जाति के गरीबों के 32 घरों को जलाये जाने की घटना हुई है, जो राष्ट्रीय चर्चा का विषय बनी है. यात्रा की शुरुआत कृष्णा नगर नवादा से होगी, जहां पीड़ित परिवारों से मिला जायेगा. राज्य में जारी लगातार हिंसा में दलित मंत्रियों को मंत्री पद पर बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है. इसी तरह एक तरफ अतिपिछड़ों की हिमायती होने का दिखावा करते हुए भाजपा के मंत्री चंद्रवंशी ललकार सम्मेलन कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ अपराधी लोकप्रिय नेता सुनील चंद्रवंशी की हत्या कर रही है. 94 लाख गरीब परिवार कर रहे गुजर-बसर : बिहार में हुए जाति आर्थिक सर्वेक्षण के बाद राज्य की एक तिहाई यानी 94 लाख गरीब परिवार 200 की दैनिक पारिवारिक आमदनी पर गुजर-बसर करने को मजबूर हैं. लघु उद्यमी योजना के तहत करीब साढ़े 94 लाख परिवारों को रोजगार के लिए दो लाख देने का वादा भी जुमलेबाजी साबित हो रहा है. सरकार ने एक वर्ष में 40000 परिवारों को पहली किस्त दी है. इस रफ्तार से सभी गरीबों को राशि देने में दो सौ साल से भी ज्यादा लगेगा. यही हालत भूमिहीन परिवारों को पांच डिसमिल जमीन और पक्का मकान देने में है. 2024 के केंद्र के पैकेज में बिहार की गरीबी दूर करने के लिए कोई राशि अलॉट नहीं की गयी है. जीविका दीदियां लंबे समय से हड़ताल पर हैं. माइक्रो फाइनेंस की मकर जाल में फांसी स्वयं सहायता समूह की महिलाएं सरकार ने उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया है. बंधुआ मजदूर बना दिया गया है और छात्र व युवाओं के शिक्षा रोजगार के मुद्दे से सरकार मुंह मोड़ रही है. बाढ़-सुखाड़ की स्थायी समाधान नहीं हुआ है. विकास के नाम पर पुल टूट रहे हैं. तटबंध ध्वस्त हो रहे हैं. 16 जिलों में बाढ़ की तबाही मची है और सरकार राहत के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति कर रही है. जातीय गणना के बाद बिहार सरकार ने आरक्षण को बढ़ाकर 65% किया था, लेकिन कोर्ट ने उसे पर रोक लगा दी. केंद्र सरकार अगर उसे संविधान की नौवीं अनुसूची में डाल देती, तो कोर्ट इस पर कोई कदम नहीं उठा सकता था़ केंद्र ने इस मांग को अनसुना कर दिया. बिहार को विशेष राज्य का दर्जा और पूरे देश में जातीय गणना की मांग को भी केंद्र सरकार ने ठुकरा दिया है.
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