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सरोवर में स्नान करने से असाध्य रोग हो जाता है ठीक

द्वापरकालीन है हंडिया सूर्यनारायण मंदिर

नारदीगंज. आज के वैज्ञानिक युग में भी छठ प्रकृति पूजा का सर्वोत्तम उदाहरण है. प्रकृति की संरक्षण और अपनी आस्था को जताने का यह अनोखा अवसर है. इस मौके पर खासकर राज्य में यह महापर्व धूमधाम से मनाया जाता है. सूर्योपासना के लिए देश के विभिन्न स्थानों पर समय-समय पर मंदिरों की स्थापना की गयी है. ऐसा ही एक अत्यंत प्राचीन सूर्य मंदिर नारदीगंज प्रखंड के हंडिया में स्थित है. विभिन्न राज्यों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि यह मंदिर धरती पर जीवन के प्रमुख स्रोत व संरक्षक के रूप में चिह्नित भगवान सूर्य के प्रति आस्था का निरंतर संचार करता रहा है. हंडिया के सूर्य नारायण मंदिर को द्वापर युगीन संरचना मना जाता है. दूर-दूर तक इसकी ख्याति फैली हुई है. रोगमुक्ति व वंश प्राप्ति के लिए इस मंदिर में आते हैं. पूजा-अर्चना करते हैं. उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होने पर मुंडन संस्कार भी करने आते हैं. मंदिर के गर्भगृह में सात घोड़े के रथ पर सवार भगवान भास्कर की काले पत्थरो से निर्मित प्रतिमा आकर्षण का केंद्र है. मान्यता है की द्वापर युग में मगध सम्राट जरासंध की पुत्री राजकुमारी धन्यवाती इस स्थल पर सूर्यनारायण की पूजा करने आती थीं. ऐसी धारणा है की एक बार धन्यवाती भी कुष्ट रोग से पीड़ित हो गयी थी, वह हंडिया सूर्य नारायण मंदिर के पास स्थित तालाब में प्रतिदिन स्नान करके सूर्यनारायण की पूजा-अर्चना किया करती थी. यहां हर रविवार को बड़ी संख्या में विभिन्न रोगों से पीड़ित पहुंचते हैं. यहां के सरोवर में स्नान करने मात्र से हीं कुष्ट जैसे असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं. चलंत शौचालय की व्यवस्था करने की मांग: चैती छठ व कार्तिक छठ में काफी संख्या में छठवर्ती पहुंचते हैं. बच्चों के मनोरंजन के लिए झूले आदि भी लगाये गये है. स्थानीय लोग पूरे आयोजन की देख-रेख करते है. छठवर्ती को कोई दिक्कत नहीं हो, इसका पूरा ख्याल रखते हैं. रहने सहने का सारी व्यवस्था करते हैं. व्यवस्थापक संतोष कुमार, रौशन कुमार, अभिषेक कुमार, अविनाश कुमार, विकास कुमार, रवि कुमार, कौशल कुमार समेत अन्य लोग कहते हैं कि यहां आठ चापाकल हैं. सभी के सभी खराब हैं. प्रशासन की ओर से अगर चलंत शौचालय की व्यवस्था हो जाती, तो बेहतर होता.

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