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बिहार से दूसरी बार संसद पहुंचेंगे नक्सलवादी धारा के दो चेहरे

लोकसभा चुनाव 2024 में भाकपा (माले-लिबरेशन) के दो सदस्य बिहार की दो सीटों से जीतकर संसद पहुंचेंगे. एक आरा से सुदामा प्रसाद, दूसरे कारकार से राजराम सिंह. 1989 के बाद यह दूसरा मौका है जब नक्सलवादी धारा के चेहरे बिहार से संसद पहुंचे हैं.

By Anand Shekhar | June 8, 2024 6:34 PM

अजय कुमार

संसद में इस बार बिहार से नक्सलवादी धारा के दो चेहरे होंगे. हथियारबंद राजनीति से वोट की राजनीति के जरिये संसद पहुंचने वाले ये सांसद हैं आरा से सुदामा प्रसाद और काराकाट से राजाराम सिंह. संसदीय राजनीति में नक्सलवादी धारा से जुड़े लोगों का चुनाव जीतकर संसद पहुंचना दूसरी बार हो रहा है. 1989 के संसदीय चुनाव में इसी धारा के रामेश्वर प्रसाद पहली बार आरा सीट से जीतकर संसद पहुंचे थे.

1989 में जब नक्सली धारा से गहरा जुड़ाव रखनेवाले रामेश्वर प्रसाद आरा से लोकसभा पहुंचे थे, तब भाकपा (माले-लिबरेशन) भूमिगत होकर काम करती थी, हालांकि पार्टी कभी प्रतिबंधित नहीं रही है. भोजपुर में सामंती शक्तियों के खिलाफ हुए संघर्ष ने गरीबों में आत्म सम्मान का भाव पैदा किया था. सत्तर के दशक के उस संघर्ष ने व्यापक हलचल पैदा कर दी थी. बड़ी संख्या में युवाओं का समूह इस आंदोलन में कूद पड़ा था. इनमें मेडिकल और इंजीनियरिंग के छात्र भी थे. खुद इसके महासचिव विनोद मिश्र जादवपुर यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग के छात्र थे.

इस संसदीय चुनाव ने इतिहास की पुनरावृत्ति की है. इस बार जब उसके दो प्रतिनिधि संसद पहुंचेंगे, तब पार्टी खुली अवस्था में है. मालूम हो कि 22 दिसंबर 1992 को लिबरेशन ने कोलकाता में भूमिगत राजनीति का त्याग कर खुली राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने का फैसला किया था. इसके पहले 1990 में हुए विधानसभा के चुनाव में इंडियन पीपुल्स फ्रंट के सात विधायक पहली बार विधानसभा में पहुंचे थे.

लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा, गरीबों की प्रतिष्ठापूर्ण जिंदगी की लड़ाई के क्रम में एक दौर में मध्य बिहार का पूरा इलाका अशांत रहा. एक तरफ सामंती ताकतें थीं, तो दूसरी ओर गरीबों की ताकत. 1989 के चुनाव में दलितों ने जब वोट देने के अपने अधिकार के प्रति जिद की, तो उन पर हमले किये गये. 22 दलितों और अति पिछड़ी जाति के वोटरों की हत्या भोजपुर जिले के बिहटा में बूथ पर ही कर दी गयी थी. वोट देने के लोकतांत्रिक अधिकार पर सामंतों की पहरेदारी थी. गरीब लिबरेशन के झंडा तले गोलबंद होकर उस अधिकार को लेने की लड़ाई लड़ रहे थे.

बहरहाल, इस चुनाव में काराकाट से जीते राजाराम सिंह पहली बार 1995 में विधायक बने थे. वह दो बार विधानसभा के चुनाव में निर्वाचित हो चुके हैं. फिलहाल वह पार्टी की किसान सभा के प्रमुख हैं. आरा से जीते सुदामा स्थानीय सांस्कृतिक संस्था युवानीति से लंबे समय तक जुड़े रहे. लोगों में जनचेतना जगाने के लिए गांव-गांव में युवानीति की टीम के साथ नाटक किये. लिबरेशन के पूर्णकालिक कार्यकर्ता सुदामा पहली बार 2015 में तरारी सीट से विधानसभा पहुंचे थे. पिछले विधानसभा चुनाव में भी इस सीट से उनकी जीत हुई थी.

नक्सलबाड़ी के संघर्ष की गौरवपूर्ण यात्रा रही है. 22 अप्रैल 1969 को माकपा से अलग होकर चारु मजूमदार ने जब नयी पार्टी बनायी. इसने गरीबों के हर-अधिकार की लड़ाई लड़ी. हमारे कई साथियों को शहादत देनी पड़ी. हमारे सामने आज बाबा साहेब के संविधान को बचाने और गरीबों के घर तक विकास की रोशनी पहुंचाने की चुनौती है.

दीपंकर भट्टाचार्य, महासचिव, भाकपा (माले-लिबरेशन)

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